गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By ND

मंत्रोच्चार बनाए स्वास्थ्य

मंत्रोच्चार बनाए स्वास्थ्य -
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सकारात्मक ध्वनियाँ शरीर के तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं जबकि नकारात्मक ध्वनियाँ शरीर की ऊर्जा तक का ह्रास कर देती हैं। मंत्र और कुछ नहीं बल्कि सकारात्मक ध्वनियों का समूह है जो विभिन्न शब्दों के संयोग से पैदा होते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में मंत्रों के महत्व को स्वीकार किया गया है। जिस तरह मुस्लिम संप्रदाय में कुरान की आयतों को मंत्रों के रूप में भी स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है उसी तरह ईसाई समाज भी बाईबिल के सूत्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं।

इस ब्रह्मांड में प्रत्येक पदार्थ निरंतर दोलायमान अवस्था में है। छोटे से छोटे डीएनए से लेकर बड़े से बड़े ग्रह तक सभी एक निश्चित गति से कंपायमान हैं जिससे इतनी सूक्ष्म ध्वनि निकल रही है जो मानवीय कानों को कभी सुनाई नहीं देती। बीत चुके युगों में यह ध्वनि ऋषियों और मुनियों को ध्यान अवस्था में जाने पर सुनाई देती थी। उन्होंने यह जान लिया था कि विशेष तरह की ध्वनि मस्तिष्क के विशेष हिस्से को उत्तेजित करने में सक्षम थी। इसी से अद्वितीय शक्तियाँ भी जागृत होती थीं जिन्हें सिद्धि भी कहा जाता है।

मंत्रों का हमारे शरीर और मस्तिष्क पर दो कारणों से गहरा प्रभाव पड़ता है। पहला यह कि ध्वनि की तरंगें समूचे शरीर को प्रभावित करती हैं। दूसरा यह कि लगातार हो रहे शब्दोच्चार के साथ भावनात्मक ऊर्जा का समग्र प्रभाव हम तक पहुँचता है। मंत्रों से हमारे शरीर का स्वस्थ रहने से सीधा संबंध है। मंत्रों से निकली ध्वनि शरीर के उन सेलों के संवेगों को ठीक करने में सक्षम है जो किसी कारण अपनी स्वाभाविक गति या लय खो बैठते हैं। सेलों के अपनी गति से हट जाने से ही हम बीमार होते हैं। मंत्रों की ध्वनि से हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। हमारे शरीर को घेरने वाला रक्षा कवच या 'औरा' पर भी इसका ऐसा ही प्रभाव पड़ता है। हम जैसे ही कोई शब्द सुनते हैं, उसके प्रति भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम उस शब्द से मानवीय समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से परिचित हैं। उदाहरण के तौर पर 'माँ' शब्द से निकलने वाली ध्वनि से भावनात्मक ऊर्जा व्यवस्थित हो जाती है।

ओंकार ध्वनि 'ॐ' को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है। यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्व से सभी परिचित रहे हैं। शास्त्रों में ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। कई बार मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है। तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ,होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

क्या करें ?

* ओम- प्रातः उठकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा।

* ओम नमो- ओम के साथ नमो शब्द के जुड़ने से मन और मस्तिष्क में नम्रता के भाव पैदा होते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा तेजी से प्रवाहित होती है।

* ओम नमो गणेश- गणेश आदि देवता हैं जो नई शुरुआत और सफलता का प्रतीक हैं।

शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ा

शब्दों से उत्पन्न ध्वनि से श्रोता के शरीर और मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बोलने वाले के मुँह से शब्द निकलने से पहले उसके मस्तिष्क से विद्युत तरंगें निकलती हैं। इन्हें श्रोता का मस्तिष्क ग्रहण करने की चेष्टा करता है। उच्चारित शब्द श्रोता के कर्ण-रंध्रों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचते हैं। प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।