शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By WD

डेंटल इम्प्लांट बढ़ाए दाँतों की खूबसूरती

डेंटल इम्प्लांट बढ़ाए दाँतों की खूबसूरती -
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- डॉ. देशराज जै

दाँत एवं चेहरे की बनावट, रंग एवं उनके आकार का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अलग ही महत्व है। खासकर दाँतों का विशेष महत्व होता है। यदि मनुष्य के दाँतों का रंग, आकार-प्रकार एवं उनका विन्यास चेहरे के अनुरूप न हो तो व्यक्ति के व्यवहार, कार्यपद्धति, स्वास्थ्य एवं मनोविज्ञान पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसी तरह दाँतों का असमय निकालना या गिर जाना भी मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कार्यकलाप को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। आज के भौतिकवादी, उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक युग में किसी भी व्यक्ति के आंशिक या पूर्ण रूप से दंतविहीन रहने की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

आंशिक एवं पूर्ण रूप से दाँतविहीन व्यक्ति के लिए विभिन्न प्रकार की कृत्रिम दंत रोपण विधियाँ उपलब्ध हैं। अब एक्रेलिक निकालकर फिर लगाए जा सकने वाले दाँत अथवा सोने या अन्य धातुओं जैसे निकिल क्रोम कोबाल्ट, पैलेडियम, प्लेटिनम के कृत्रिम दाँत भी बनाए जाते हैं। ये कृत्रिम दाँत मसूड़े पर स्थिर रहते हैं तथा शेष दाँतों से अपना आधार ग्रहण करते हैं।

पार्शियल डेंचर (आंशिक बत्तीसी)
आंशिक दंतविहीन मरीजों के लिए आज के आधुनिक युग में दाँत के रंग के पदार्थ से कृत्रिम दाँत बनाए जाते हैं। ये सिरेमिक (चीनी मिट्टी) की तरह होते हैं। ये कृत्रिम दाँत मरीज के प्राकृतिक दाँतों के ऊपर आश्रित रहते हैं एवं दिखने में सुंदर तथा प्राकृतिक दाँत से अधिक मजबूत होते हैं। इनका रंग स्थिर रहता है तथा ये मुख स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इनकी सतह चिकनी होती है, जिससे खाद्य पदार्थ एवं कीटाणु जमा नहीं होते।

फुल डेंचर (पूरी बत्तीसी)
संपूर्ण दंतविहीन मरीजों के लिए आजकल विभिन्न प्रकार के कृत्रिम दाँतों की बत्तीसी उपलब्ध है। बत्तीसी निर्माण में उपयोग आने वाले पदार्थ प्राकृतिक दाँतों एवं मसूड़ों के रंग से मेल खाते हैं। ये बत्तीसी मजबूत तथा साफ-सफाई एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल होती है। इन्हें गिरने पर भी नहीं टूटने के लिए डिजाइन किया जाता है। इन्हें ऐसे पदार्थों से बनाया जाता है जो मुँह की नाजुक त्वचा के लगातार संपर्क में रहते हुए भी नुकसान नहीं पहुँचाते।

निकालने और लगाने वाले कृत्रिम दाँतों को बहुत आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी तरह प्राकृतिक दाँतों को घिसवाकर उनके ऊपर स्थायी दाँत लगाने में भी लोगों को ण्‍ेतराज होता है। निकालने और लगाने वाले दाँतों को रोज-रोज निकालकर साफ करना सहज नहीं होता और इसी तरह प्राकृत्रिक दाँतों को घिसवाने के लिए मरीज मानसिक रूप से तैयार नहीं होता, क्योंकि उसे लगता है कि एक या दो दाँतों को लगवाने के लिए दो अच्छे दाँतों को क्यों घिसवाएँ?

पार्शियल या फुल डेंचर दो तरह से लगाए जा सकते हैं। पहला निकाल सकने वाले कृत्रिम दाँत, दूसरे मुँह में शेष रहे प्राकृतिक दाँतों को घिसकर बैठाए गए स्थायी डेंचर। कई कारणों से मरीज इन दोनों तरह के कृत्रिम दाँतों से परेशानी महसूस करते हैं। इन्हें दूर करने के लिए अब दंत चिकित्सा जगत में डेंटल इम्प्लांट तकनीक उपलब्ध है। इम्प्लांट धातु से बना हुआ कृत्रिम दाँत होता है जो प्राकृतिक दाँत और रूट के समान आकार-प्रकार का होता है। इम्प्लांट के विभिन्न प्रकार होते हैं जैसे रूट एनालॉग, रूट इम्प्लांट आदि। इन्हें हड्डी के अंदर फिट कर दिया जाता है। एक अन्य प्रकार के दाँत को रूट इम्प्लांट के ऊपर कस दिया जाता है। बाजार में डेंटल इम्प्लांट विभिन्न साइज, आकार, प्रकार में उपलब्ध हैं जैसे सिलेंड्रिकल, ब्लंट टाइप, रूट टाइप, स्क्रू फार्म और थ्रेडेड टाइप।

डेंटल इम्प्लांट बनाने के लिए बॉयोकाम्पिटेबल मटीरियल जैसे टाइटेनियम, केल्शियम फास्फेट, सिरेमिक आदि इस्तेमाल किया जाता है। इन धातुओं से मुँह के अंदर विपरीत प्रतिक्रिया नहीं होती।

विशेषताए
* एक या एक से अधिक दाँत लगाने के लिए अन्य प्राकृतिक दाँतों को बिना घिसवाए लगाया जा सकता है।

* प्राकृतिक दाँतों की तरह इम्प्लांट पर आधारित दाँत भी स्थिर लगे रहते हैं।

कमिया
* इन्फेक्शन की वजह से हड्डी गल जाती है। इससे इम्प्लांट ढीला होकर निकल सकता है।

* इसमें मुँह की साफ-सफाई पर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है।