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Written By WD

हँसने के लिए क्लब क्यों जाना?

हँसने के लिए क्लब क्यों जाना? -
डॉ. राजेश अग्रवाल (एमडी)
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हँसना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिससे शरीर में सकारात्मक रासायनिक परिवर्तन होते हैं। स्वच्छ और निर्मल हँसी से स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। आज हमारे सामाजिक जीवन से स्वाभाविक हास्य नदारद होता जा रहा है

ग्रामीण क्षेत्रों ने भले ही अभी हास्य क्लबों की जरूरत महसूस न की हो, लेकिन शहरों में हास्य क्लब खुल गए हैं, जो हर सुबह किसी पार्क में कृत्रिम हास्य के झूठे ठहाके लगाने का शारीरिक परिश्रम करते हैं। यदि हँसी अंदर से फूटकर नहीं निकलती है तो वह हँसी का अभिनय कहलाता है, जिससे कोई फायदा नहीं होता है।

आप हँसने के लिए क्लब क्यों जाना चाहते हैं? आप जब चाहें, जहाँ चाहें, जैसे चाहें हँस सकते हैं। इसके लिए किसी कृत्रिम सहारे की क्या जरूरत है?

  एक फोन आया। वो बोला- कौन बोल रहे हो? मैं बोला- मैं बोल रहा हूँ? वो बोला- कमाल है, मैं भी मैं ही बोल रहा हूँ? लीजिए आ गई हँसी। फिर उसने अपना नाम बताया, मैंने अपना नाम बताया और दोनों ने मिलकर एक जोरदार ठहाका लगाया।      
एक फोन आया। वो बोला- कौन बोल रहे हो? मैं बोला- मैं बोल रहा हूँ? वो बोला- कमाल है, मैं भी मैं ही बोल रहा हूँ? लीजिए आ गई हँसी। फिर उसने अपना नाम बताया, मैंने अपना नाम बताया और दोनों ने मिलकर एक जोरदार ठहाका लगाया।

दिल खोलकर हँसिए वास्तविक हँसी-
सोचिए मुस्कुराना या हँसना कितना आसान है और कितना मुश्किल, आज किसी के लिए खुश होना, मुस्कुराना, हँसना इतना महँगा हो गया है कि एक वयस्क दिनभर में दस बार भी नहीं हँसता, जबकि एक मासूम दिन में कम से कम चार सौ दफा मुस्कुराता है, हँसता है,
खिलखिलाता है।

सामाजिक जटिलताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि जो हास्य पूरी दुनिया में कदम-कदम पर बिखरा पड़ा है उसे पाने के लिए लॉफ्टर क्लब का सहारा लेना पड़ रहा है।

जरा सोचिए जो व्यक्ति मन से प्रसन्न नहीं है, फिर भी वह हँसेगा तो उस हँसी में क्या वही मस्ती होगी जो वास्तविक प्रसन्नता से होती है ? जब वास्तविक हँसी आती है तो रोके नहीं रुकती है, हँसते-हँसते इंसान दोहरा हो जाता है तो लॉफ्टर क्लब की नकली हँसी में असली जैसा प्रभाव कहाँ से लाएगा?


स्वाभाविक हँसी के फायदे-
* स्वास्थ्य लाभ, ब्लडप्रेशर, हृदय रोग में कमी, मानसिक तनाव में कमी
* फेफड़ों के लिए सबसे अच्छा व्यायाम
* रक्त में कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा में कमी

वास्तविक प्रसन्नता से हमारे दिमाग में कुछ ऐसे लाभदायक हारमोन निकलते हैं जो हमें चुस्ती-स्फुर्ती से भर देते हैं। इन्हें एन्डोरफिन कहा जाता है। ये एन्डोरफिन हँसने की एक्टिंग करने से या कृत्रिम हँसी हँसने से नहीं निकल सकते हैं, क्योंकि वास्तविक हँसी में जहाँ मन की प्रसन्नता की भावना रहती है वहीं नकली हँसी में वह भाव आना मुश्किल होता है।

वास्तविक प्रसन्नता और कृत्रिम प्रसन्नता में बहुत अंतर है, वैसे ही जैसे शुद्ध घी और वनस्पति घी, वास्तविक प्रेम और कृत्रिम प्रेम में, असली हीरे और अमेरिकन डायमंड में होता है। जैसे आप पहले स्पंज का कृत्रिम गुलाब जामुन चाशनी में डुबोकर खाएँ और बाद में मावे का असली गुलाब जामुन खाएँ तो जो फर्क होगा वही फर्क वास्तविक प्रसन्नता और कृत्रिम प्रसन्नता में होगा।

हँसी कई प्रकार की होती है-
मुस्कुराहट- ये स्वाभाविक, आसानी से आ जाने वाली हँसी-विनोद या हाजिर जवाबी का छोटा स्वरूप है। ये कई दफा किसी पुरानी बात को याद करके अकेले बैठे किसी पुरानी स्मृति में खो जाने पर सहज ही देखी जा सकती है।

स्वाभाविक हँसी- ये आसानी से आ जाने वाली हँसी विनोद या हाजिर जवाबी से।
निश्छल या निर्मल हँसी- बच्चों द्वारा हँसी जाने वाली स्वाभाविक हँसी या गुदगुदी से होने वाली हँसी।
ठहाके- यानी दिल खोलकर जोर-जोर से हँसना जैसे शानदार चुटकुला सुनने पर।

इससे नहीं होगा फायदा-

व्यंग्यात्मक हँसी- यानी व्यंग्य से हँसना जैसे किसी की मृत्यु पर कोई रो रहा हो और कोई व्यंग्य से हँसते हुए कहे- देखो घड़ियाली आँसू बहा रहा है?
कुटिल हँसी- ताने के रूप में या उपहास उड़ाती या व्यंग्य करती हँसी।
विद्रुप हँसी- यह एक फीकी जबर्दस्ती की हँसी होती है।
अट्टहास- यानी जोर-जोर से भद्दे तरीके से हँसना जैसे राक्षस अट्टहास करते हैं। ये एक प्रकार की अहंकारी हँसी होती है। व्यंग्यात्मक, कुटिल या विद्रुप हँसी एवं अट्टहास से वास्तविक प्रसन्नता के फायदे नहीं मिलते। कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि इससे मन प्रसन्न नहीं होता और जब तक मन प्रसन्न नहीं हो, हँसने का अभिनय करने से या कृत्रिम हँसी हँसने से एन्डोरफिन नहीं निकल सकते।

डॉ. अग्रवाल वरिष्ठ डायबिटोलॉजिस्ट हैं। देश-विदेश की कई मेडिकल कॉन्फ्रेंस में शिरकत कर चुके हैं। उनके 300 से अधिक लेख देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।