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Written By WD

सेहत खरीदी नहीं जाती

स्वास्थ्य और सुख दैवीय तत्व हैं

Health Article | सेहत खरीदी नहीं जाती
-डॉ. सुनील कुमार शर्मा
NDND
जो स्वास्थ्य और शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं, सुख की कामना करते हैं उन्हें 'धन' को जीवन जीने का साधन मानना चाहिए 'साध्य' नहीं। बहुत से लोगों को यह भ्रम है कि स्वास्थ्य, शक्ति, सुख और आनंद के लिए धन एक अत्यंत आवश्यक वस्तु है, लेकिन वास्तव में इसका मन से अधिक संबंध है।

यदि हमारे विचारों, अभिलाषाओं और हमारे अंतःकरण में इनकी प्राप्ति के लिए दृढ़निश्चय है तो इन्हें प्राप्त करने में धन की कमी हमारे लिए बाधक नहीं हो सकती। स्वास्थ्य और सुख ऐसे दैवीय तत्व हैं, जो संसार के विषम और कलुषित वातावरण से बहुत ऊँचे हैं।

धन से सुंदर, स्वादिष्ट पकवान, मिठाई, भोजन खरीदा जा सकता है, किंतु 'भूख' नहीं। धन से दवाइयाँ खरीदी जा सकती हैं, किंतु 'स्वास्थ्य' नहीं। धन से शानदार सुविधापूर्ण बिस्तर खरीदा जा सकता है, किंतु 'नींद' नहीं। धन से चश्मा खरीदा जा सकता है, किंतु 'दृष्टि' नहीं।

दुनिया में ऐसा कोई पैमाना नहीं है, जिससे आनंद, स्वास्थ्य, विवेक, प्रेम, निद्रा और शक्ति इत्यादि दैवीय तत्वों का मूल्यांकन किया जा सके। जिन्हें स्वास्थ्य और सुख प्राप्त करना है, उन्हें विशेष रूप से आवश्यकता है सादा भोजन, स्वच्छ/ स्वास्थ्यवर्धक वातावरण, प्रसन्नता, सदाचार और व्यायाम की। भोजन ताजा और निर्दोष होने के अतिरिक्त उसे सुरुचिपूर्ण बनाने के साथ स्नेह भी होना चाहिए।

भोजन शाकाहारी तथा सलाद, हरी तरकारियों से युक्त होने पर लाभदायक होता है। संतुलित आहार स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। अधिक भोजन रोगों को बढ़ाने वाला, आयु को घटाने वाला होता है। सुख और स्वास्थ्य के लिए नियमित समय पर खूब चबा-चबाकर, शांतिपूर्वक, सात्विक आहार लेने से शक्ति प्राप्त होती है।

दूसरी आवश्यकता स्वच्छ वायु एवं पर्याप्त प्रकाश की है। गंदी-दूषित वायु से बीमारियों के कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। आरोग्य, बल तथा उत्तम पाचन शक्ति चाहने वाले मनुष्य को घर में ताजी तथा शुद्ध हवा जितनी ज्यादा हो सके आने देना चाहिए। विशेषकर शयनकक्ष में हवा, प्रकाशयुक्त वातावरण होना चाहिए, क्योंकि व्यक्ति चौबीस घंटों में से एक तिहाई समय शयन में ही व्यतीत करता है। याद रखिए जिस घर में सूर्य का प्रकाश और धूप नहीं पहुँचती, वहीं डॉक्टर और वैद्यराज पधारा करते हैं।

धूप की किरणें लाखों डॉक्टरों से अधिक उपयोगी हैं। मनुष्य को इस बात का गर्व होना चाहिए कि उसका घर हवादार, स्वास्थ्यवर्धक है और उसमें पर्याप्त प्रकाश आता है। सदा शांत और प्रसन्न रहें। प्रसन्नता के प्रत्यक्ष और शीघ्रतम लाभ हैं। सदाचार भी महत्वपूर्ण है, जिनके जीवन में दुराचार है, उनके शरीर में स्वास्थ्य और जीवन में सुख का दर्शन नहीं हो सकता।

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सबसे ज्यादा जरूरी है व्यायाम, भ्रमण और ध्यान। ये हमें सदा नवजीवन, शक्ति और सुख प्रदान करता है। जिस प्रकार हमें खाने-पीने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार व्यायाम की भी आवश्यकता होती है। हमारे पास करोड़ों का धन हो, संसार हमारा आदर करता हो, परंतु यदि हम अस्वस्थ रहते हैं तो यह सब विष के समान है।

सुख धन से कम प्राप्त होता है, किंतु व्यायाम से सबसे अधिक। व्यायाम से दीर्घायु प्राप्त होने के साथ ही शरीर हल्का रहता है, पाचन शक्ति ठीक रहती है और फेफड़े मजबूत बनते हैं। व्यायाम से मन निरोगी, निर्विकारी और पुष्ट बनता है। इसी प्रकार के लाभ प्रातः या सायंकालीन भ्रमण से प्राप्त होते हैं।