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Written By ND

शादी से पहले 'सेहत-कुंडली' मिलाएँ

डॉ. आरके मालोत

Tips for Youth | शादी से पहले ''सेहत-कुंडली'' मिलाएँ
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चिकित्सकों के अनुसार विवाह पूर्व मेरिज-काउंसलिंग होना जरूरी है। एक-दूसरे के विचारों, व्यवहारों, पसंद-नापसंद के अतिरिक्त स्वास्थ्य दृष्टि से शारीरिक गुणों में भी मिलान होना जरूरी है।

विवाह एक सामाजिक संस्कार है, जो दो दिलों का मिलन है। विवाह-संस्था के द्वारा परिवार के रूप में कुटुम्ब परंपरा आगे बढ़ती है। शादी से पहले अभिभावक दूल्हा-दुल्हन की जन्मपत्री का मिलान कराते हैं। जन्मपत्री में ग्रह के उपयुक्त मिलान होने पर ही शादी तय होती है।

चिकित्सकों के अनुसार विवाह पूर्व मेरिज-काउंसलिंग होना जरूरी है। एक-दूसरे के विचारों, व्यवहारों, पसंद-नापसंद के अतिरिक्त स्वास्थ्य दृष्टि से शारीरिक गुणों में भी मिलान होना जरूरी है। यदि कोई भी युवक-युवती किसी अनजाने रोग से ग्रसित है तो वह अपने जीवनसाथी को तो रोग देगा/देगी ही, साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी रोग से ग्रसित कर सकता/सकती है।

अतः चिकित्सकों के अनुसार जन्म-कुंडली के साथ स्वास्थ्य-कुंडली का मिलान होना जरूरी है, जो सुखी-समृद्ध वैवाहिक जीवन की सबसे पहली शुरुआत होगी। कई रोग पारिवारिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं जैसे मधुमेह, थैलेसीमिया, मोटापा, हृदयरोग, हिमोफीलिया, कलर ब्लाइंडनेस, गंजापन आदि। यदि पति-पत्नी दोनों को मधुमेह है तो आशंका यह व्यक्त की जाती है कि आधी संतानों को 40 वर्ष की वय के उपरांत मधुमेह कभी भी उभर सकता है।

आज के आधुनिक जीवन में कई युवक-युवतियाँ विवाह-पूर्व असुरक्षित यौन-संबंधों के जाल में उलझ जाते हैं। उनकी थोड़ी-सी लापरवाही एड्स जैसे गंभीर रोग को आमंत्रण दे सकती है। ऐसे संबंधों से अन्य संक्रमण जैसे सिफीलिस, गोनोरिया, हरपीज होना भी आम है। ये सभी रोग विवाह के बाद एक जीवनसाथी से दूसरे जीवनसाथी को 'गिफ्ट' के रूप में मिल जाते हैं तथा बच्चों को भी पैदा होते ही घेर लेते हैं। ऐसे संक्रमणों और आत्मघाती रोगों से बचने के लिए स्वास्थ्य-पत्री मिलान अत्यंत जरूरी है। यह स्वास्थ्य-पत्री 6 हिस्सों में हो सकती है :

एड्स-पत्री : विवाह पूर्व युवक-युवतियों को एड्स का संक्रमण है या नहीं, इस हेतु एचआईवी टेस्ट करा लेना चाहिए। एड्स एक लाइलाज रोग है, इसका बचाव ही उपचार है।

सिफीलिस-पत्री : यह रोग सर्पकीट ट्रेपोनेमा से होता है। यह यौन संचारित रोग है। भारत में हर 25 में से 1 व्यक्ति को यह रोग है। यह रोग स्वयं को तो नुकसान पहुँचाता है, साथ ही आने वाली पीढ़ी जन्मजात सिफीलिस रोग लेकर पैदा होती है। इससे जन्मजात हृदयरोग भी हो सकता है तथा कई युवतियों में यह बार-बार गर्भपात हो जाने का कारण भी बनता है।

थैलेसीमिया-पत्री : थैलेसीमिया मेजर एक ऐसा रोग है जिसमें बच्चे का खून स्वतः समाप्त होता जाता है। बच्चे को नियमित रूप से रक्त चढ़ाना पड़ता है। अतः थैलेसीमिया मेजर न हो, इस हेतु भावी पति-पत्नी को एचबीए-2 नामक हिमोग्लोबिन का टेस्ट कराना चाहिए जिससे थैलेसीमिया माइनर होने का पता लग जाए। यदि दूल्हा-दुल्हन दोनों एचबीए-2 पॉजीटिव हैं तो विवाह तय नहीं करना चाहिए।

हेपेटाइटिस बी एवं सी-पत्री : हेपेटाइटिस बी एवं सी लीवर को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोग हैं, जो कालांतर में व्यक्ति की जान ले सकते हैं। यह रोग शारीरिक संपर्क से फैल सकता है अतः इस रोग का पता विवाह पूर्व हो जाना जरूरी है। भारत की कुल आबादी के 4-5 प्रतिशत लोग हेपेटाइटिस-बी से प्रभावित हैं।

ब्लड ग्रुप-पत्री : यदि महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पुरुष का पॉजीटिव है तथा इसके चलते बच्चे का ब्लड ग्रुप भी पॉजीटिव है तो समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं अतः ब्लड ग्रुप का मिलान भी विवाह पूर्व हो जाए तो बेहतर है।

टॉर्च-पत्री : टॉर्च गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करने वाला 4 रोगों का समूह है जिनमें टॉक्सोप्लाज्मोसिस, सायटोमेगालोवायरस, रुबेला एवं हरपिज शामिल हैं। ये रोग युवतियों में विवाह पूर्व होने पर भावी संतान मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग पैदा हो सकती है अतः विवाह पूर्व टॉर्च टेस्ट करा लेना चाहिए।