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Written By WD

कोई फिक्र नहीं उड़ती है इस धुएं में

हेमंत पाल

विश्व तंबाकू निषेध दिवस
ND
नशा करने वालों को कोई न कोई बहाना चाहिए होता है। खुशी हो या गम वे हर स्थिति में नशे का बहाना गढ़ लेते हैं। बात चाहे सिगरेट की हो या शराब की फर्क नहीं पड़ता, दोनों ही नशे हैं। सिगरेट फूंकने वाले भी मौके और बहाने के इंतजार में रहते हैं। मूड ठीक नहीं है तो सिगरेट, मूड अच्छा है तो सिगरेट, टाइम पास करना है तो सिगरेट और व्यस्तता ज्यादा है तो भी सिगरेट! लेकिन, चंद मिनटों की है मुँह से धुआँ उड़ाने की लत अब जानलेवा बन गई है।

पूरी दुनिया में इस बात पर चिंता की जाने लगी है कि आदत से मजबूर लोगों को इस लत से कैसे निजात दिलाई जाए! लेकिन, इस फिक्र को धुएं में नहीं उड़ाया जा सकता, क्योंकि कुछ तथ्य मामले की गंभीरता का खुलासा कर रहे हैं।

तंबाकू उद्योग के विरोध के बावजूद 27 जनवरी 2005 को "धूम्रपान विरोधी संधि" लागू की गई थी। भारत, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 57 देशों में इस संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी। संधि के तहत पाँच साल में इन देशों को तंबाकू के विज्ञापन, सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध और इसे बढ़ावा देने के प्रयोजनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना थी। लेकिन अब तक इस दिशा में गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाए गए। अमेरिका समेत 51 देशों ने तब इस तरह की किसी भी संधि की पुष्टि नहीं की। संधि की पुष्टि करने वाले देशों में वे ही सिगरेट बेची जा सकेंगी जिनके पैकेट पर चेतावनी लिखी होगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी तंबाकू पर नियंत्रण की रूपरेखा तैयार की। इसे "फ्रेमवर्क कन्वेंशनल आन टोबैको कंट्रोल" कहा गया है। संगठन ने चबाए जाने वाले, सूँघे जाने वाले तंबाकू उत्पादों तथा हुक्कों में उपयोग किए जाने वाले तंबाकू को भी नियंत्रण में लेने की माँग की है।

एक सर्वे के मुताबिक योरप के 86 फीसद लोग दफ्तरों और सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध करने के पक्ष में हैं। 61 फीसद लोग शराबखानों में भी धूम्रपान पर पाबंदी लगाना चाहते हैं।