नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की बजाय अब ख़ुद को प्रधानमंत्री के रूप में ही प्रस्तुत करने लगे हैं। दूरदर्शन तक ने उनका साक्षात्कार कुछ इसी अंदाज़ में लिया। फैसला तो ख़ैर 16 मई को आएगा पर एक दिलचस्प बात यह है कि 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर बैठने से पहले भी गुजरात के भूकम्प ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
2001 से पहले 6 साल तक मोदी दिल्ली में थे और भारतीय जनता पार्टी का काम देख रहे थे। वो एक तरह से गुजरात से निर्वासित थे। उस गुजरात से जहाँ उन्होंने 20 साल से ज़्यादा समय संघ प्रचारक और एबीवीपी नेता के रूप में बिताया। वो गुजरात जो उनकी कर्मभूमि रहा।
एक तरफ तो उनको पार्टी ने दिल्ली बुलाया दूसरी ओर संघ में ही उनसे प्रतिद्वंदिता रखने वाले संजय जोशी ने अपनी पैठ मजबूत कर ली। वो मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के करीबी हो गए। इसी कारण नरेंद्र मोदी के लिए अपने प्यारे गुजरात में जाने की एक तरह से मनाही हो गई।
गुजरात लौटने का मौका नरेंद्र मोदी को मिला 26 जनवरी 2001 के उस भयावह भूकम्प के बाद जिसने गुजरात को लगभग तबाह कर दिया। केशुभाई इस आपदा से निपटने में नाकाम दिखाई दे रहे थे। इसके पहले स्थानीय निकायों में भाजपा की बुरी पराजय का धब्बा भी उन्हीं पर लगा था। इसीलिए भाजपा और संघ ने नरेंद्र मोदी को गुजरात भेजने का निर्णय लिया।
अब अमित शाह कह रहे हैं कि मोदी की देश में जो लहर थी वो वाराणसी से उनके नामांकन के बाद सुनामी में बदल गई है। तो क्या भूकम्प के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुँचने वाले नरेन्द्र मोदी अब सुनामी पर सवार होकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुँच जाएँगे?