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Written By WD

लालकृष्ण आडवाणी

लालकृष्ण आडवाणी -
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भाजपा की तरफ से लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी भले प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में न हों, लेकिन पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं।

इस बार भी आडवाणी अपनी परंपरागत सीट गांधीनगर से लोकसभा के चुनाव मैदान में हैं। आडवाणी चार बार राज्यसभा के और पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में भी वे गुजरात के गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के सांसद हैं।

नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने पर भी आडवाणी रूठ गए थे, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मान-मनौव्वल के बाद वे वापस आ गए। जनवरी 2008 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने लोकसभा चुनावों को आडवाणी के नेतृत्व में लड़ने का तथा जीत होने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की थी।

भाजपा के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी। आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी।

8 नवंबर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में लालकृष्ण आडवाणी का जन्म हुआ था। उनके पिता केडी आडवाणी और मां ज्ञानी आडवाणी थीं। विभाजन के बाद भारत आ गए आडवाणी ने 25 फरवरी, 1965 को कमला आडवाणी को अपनी अर्धांगिनी बनाया। आडवाणी के दो बच्चे हैं।

लालकृष्ण आडवाणी की शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई पर बाद में भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक किया। आज वे भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं। गांधी के बाद वो दूसरे जननायक हैं, जिन्होंने हिन्दू आंदोलन का नेतृत्व किया और पहली बार बीजेपी की सरकार बनवाई, लेकिन पिछले कुछ समय से वे अपनी मौलिकता खोते हुए नजर आ रहे हैं।

जिस आक्रामकता के लिए वो जाने जाते थे, उस छवि के ठीक व‍िपरीत आज वो समझौतावादी नजर आते हैं और ऐसा लगता है कि वे प्रधानमंत्री पद को लेकर बहुत अधीर हैं। हिन्दुओं में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले आडवाणी में लोग नब्बे के दशक का आडवाणी ढूंढ रहे हैं। अपनी बयानबाजी की वजह से उनकी काफी फज़ीहत हुई। अपनी किताब और ब्लॉग से भी वो चर्चा में आए। आलोचना भी हुई।

वर्ष 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की। तब से लेकर सन 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे। वर्ष 1973 से 1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने संभाला।

इसी दौरान वर्ष 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में ही गिरफ्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है, उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है।

लालकृष्ण आडवाणी तीन बार भाजपा के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। वर्ष 1977 से 1979 तक पहली बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व संभाला। आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मंत्री रहे।

आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद संभाला है वह है एनडीए शासनकाल के दौरान उपप्रधानमंत्री का। लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्रीय गृहमंत्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून, 2002 को उपप्रधानमंत्री पद का दायित्व भी सौंपा गया।

भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए। आडवाणी किताबों, संगीत और सिनेमा में खासी रुचि रखते हैं।