गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By Author जयदीप कर्णिक

उन नौजवानों को सलाम...!

उन नौजवानों को सलाम...! -
तो तरुण तेजपाल की अग्रिम जमानत की अर्जी नामंजूर हो गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तेजपाल जेल में कैसे रहेंगे, क्या महसूस करेंगे, पुलिस उनके ख़िलाफ कितना मजबूत केस बना पाती है, दोषी पाए जाने पर उन्हें कितनी सजा हो पाएगी इस सब पर रिपोर्टिंग होती रहेगी।

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वे इतने रसूखदार न होते और इस मामले में राजनीतिक समीकरण न जुड़े होते तो भी क्या इतनी ही त्वरित कार्रवाई होती... ये सवाल भी बाद में। अभी तो सबसे पहले उन नौजवानों को सलाम जिन्होंने दिल्ली में इंडिया गेट के सामने लाठियां खाकर और पानी की बौछार सहकर भी निर्भया के लिए और इस तरह के अत्याचार से गुजरने वाली किसी भी अन्य महिला के लिए न्याय की आवाज बुलंद की।

इस दुनिया में होने वाले हर बुरे काम की स्याह सच्चाई, चीख और सिसकियां उन आलीशान 'कालीनों के नीचे' दबा दी जाती थीं। 23 साल की एक बहादुर पत्रकार द्वारा कालीन खींच लेने के बाद सामने आई सच्चाई को आईने में देखकर पूरा का पूरा सफेदपोश समाज डर गया। वो अब ऐसे
आवाज की वो बुलंदी जिसके पीछे सारा देश भी आंदोलित हो गया। याद कीजिए मुंह में दही जमाए बैठे राजनेताओं को - किसी में हिम्मत नहीं थी सड़क पर जाकर उन युवाओं से बात करने की। याद कीजिए दिल्ली पुलिस के उस वक्त के कमिश्नर नीरज कुमार की वो वाहियात दलीलें।

उस सबके बाद भी जनता की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि सरकार को मजबूरी में कड़ा कानून बनाने का निर्णय लेना पड़ा। निर्भया तो चली गई पर उसकी मौत के बाद अपनी साख बचाने के लिए सरकार को ये कानून लाना पड़ा।

उस वक्त ये भी दलीलें दी गईं थी कि केवल कानून बना देने से क्या होगा या ये कि इस कानून में भी कई विसंगतियां हैं, लेकिन आज जब तरुण तेजपाल के वकीलों की दलीलें कानून की दीवारों में सुराख ढूंढ कर तेजपाल को बचाने की कोशिश कर रही थीं तो इस नए कानून की धार ने ही उनकी तमाम मोर्चेबंदी की धज्जियाँ उड़ा दीं।

विडंबना देखिए कि जिस पत्रिका 'तहलका' ने इस कानून को महिला अधिकारों का बड़ा रक्षक माना उसी पत्रिका के प्रधान संपादक तरुण तेजपाल के इसी तरह के मामले में फंसने पर वो ख़ुद और उनके वकील पूरी बेशर्मी के साथ इस कानून को कुछ 'ज्यादा ही सख़्त' और 'कठोर' बता रहे हैं!!

जब तक आप दूसरों पर ऊंगली उठाने और उन पर हंस सकने की स्थिति में होते हैं, आपको कुछ बुरा नहीं लगता, आपको दरअसल उस पीड़ा का अहसास भी नहीं होता जिससे कोई पीड़ित लड़की गुजरी होगी। पर जब सारी ऊंगलियां आपकी ओर उठती हैं, मीडिया के वे कैमरे जो अब तक आप दूसरों की तरफ घुमाते आए थे जब आप की तरफ घूम जाते हैं तो आपको समझ आता है कि इस सबके मायने क्या हैं।

दरअसल निर्भया कांड ने समूची कानून व्यवस्था की कलई खोल दी थी। कानून और पुलिस के बीच मौजूद तमाम दरारों को उभार कर रख दिया गया था। तब बलात्कार और यौन उत्पीड़न में बड़ा फासला था। बलात्कार हो जाना मानने के लिए जबर्दस्ती संभोग की प्रक्रिया को आवश्यक माना गया था, लेकिन नए कानून में इसे और कठोर बनाते हुए स्त्री के यौनांग से छेड़छाड़ को भी बलात्कार माना गया है।

पीड़ित लड़की के बयान के मुताबिक तेजपाल ने ऐसा ही कुछ किया था और इसीलिए लड़की ने ख़ुद भी अपने ताजा बयान में कहा है कि कानून की नई परिभाषा के मुताबिक इसे बलात्कार ही माना जाएगा और इसीलिए मेरे साथ बलात्कार ही हुआ है।

दूसरा बदलाव जो इस नए कानून में किया गया है वो है धारा 376 K -2 का। इसमें किसी प्रभावशाली व्‍यक्ति द्वारा अपने पद या ताकत का इस्तेमाल कर अपने कनिष्ठ पर किए जाने वाले अत्याचार को लेकर कड़े प्रावधान हैं। ये ही सब वो कारण हैं जिनकी वजह से तेजपाल अब तक पुलिस से बचते फिर रहे थे और उनके वकील एक हारी हुई लड़ाई को जीतने की भरसक कोशिश कर रहे थे। उनकी कोशिश नाकाम हुई। लेकिन जिस तरह की दलीलें गोवा कोर्ट में तेजपाल के वकीलों ने दी उनको सुनकर इस पूरे मामले को लेकर गुस्सा और बढ़ जाता है।

वकीलों ने कहा कि घटना के बाद लड़की पूरी तरह 'सामान्य' बनी रही। ये ही नहीं वो तो समुद्र तट पर घूमने भी चली गई। वो बार और रेस्तरां में भी गई। इसका मतलब ये कि वो घटना से आहत नहीं हुई थी और ये सब ख़याल उसे बाद में आए और उसने बाद में किसी और के बहकावे में आकर तेजपाल को फंसाने के लिए ये सब किया, इसलिए तेजपाल को लेकर कोर्ट को नरम रुख अपनाना चाहिए!!

इन दलीलों को हास्यास्पद कहें या शर्मनाक? क्या ये संभव है कि कोई भी लड़की तरुण तेजपाल जैसे रसूखदार के ख़िलाफ तुरंत शिकायत की हिम्मत जुटा ले? अपने करियर या बदनामी या लड़ाई के अंजाम को लेकर ना सोचे?

हमें इस 23 वर्षीय बहादुर पत्रकार को सलाम करना चाहिए कि उसने ना केवल अंजाम की परवाह किए बगैर तेजपाल के ख़िलाफ शिकायत की बल्कि किसी दबाव और प्रभाव के आगे भी नहीं झुकी। ये ही नहीं उसने इस लड़ाई के पीछे राजनीतिक साजिश होने की बात को पुरजोर तरीके से नकारा और ये भी कहा की वो ख़ुद अपने आप को बलात्कार पीड़ित कहलाने में बहुत दु:ख का अनुभव करेंगी पर फिर भी कानून की नई परिभाषा के मुताबिक उसके साथ जो हुआ उसे बलात्कार ही माना जाएगा और वो भी ऐसा ही चाहती है।

...और इसीलिए हमें उन बहादुर नौजवानों को, उन युवक युवतियों को सलाम करना चाहिए जिन्होंने निर्भया को लेकर इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी। उस वक्त के इंडिया गेट के सामने के दृश्यों को याद कीजिए। ऐसा लग रहा था कि हिन्दुस्तान के नौजवान फिर एक बार अंग्रेजों से लड़ रहे हों।

सरकार अपनी लग ही नहीं रही थी!! पर वो उस आवाज को नहीं दबा पाई जो निर्भया पर हुए अत्याचार के ख़िलाफ मुखर हुई थी। ये आवाज देश के हर शहर में फैल गई और नए कानून में तब्दील हो गई। आज उसी कानून ने पद और पैसे के मद में चूर तरुण तेजपाल को घुटनों पर रेंगने के लिए मजबूर कर दिया।

हालांकि अभी नाबालिग द्वारा किए जाने वाले बलात्कार को लेकर कानून को सख़्त करने जैसे और कई काम बाकी हैं पर सोचिए की अगर कानून मजबूत ना होता तो क्या तेजपाल के वकील उन्हें उन गलियों से बचाते हुए नहीं निकाल ले जाते जो पहले मौजूद थीं?

दरअसल, पूरे तेजपाल प्रकरण में हो ये रहा है कि बेहतरीन कारीगरी, उम्दा नक्काशी और आकर्षक डिजाइन में बने कालीन खींचे जा रहे हैं। वो कालीन जिनके ऊपर सजी दुनिया के लकदक चेहरे हर मंच, हर गतिविधि और हर वर्ग पर अपने 'प्रतिष्ठित' होने के दंभ के साज सजे रहते थे।

इस दुनिया में होने वाले हर बुरे काम की स्याह सच्चाई, चीख और सिसकियां उन आलीशान 'कालीनों के नीचे' दबा दी जाती थीं। 23 साल की एक बहादुर पत्रकार द्वारा कालीन खींच लेने के बाद सामने आई सच्चाई को आईने में देखकर पूरा का पूरा सफेदपोश समाज डर गया। वो अब ऐसे साबुन की तलाश में है जो इस कालिख को धो सके। ये कालिख इतनी आसानी से नहीं धुलने वाली, बल्कि अभी तो इस पत्रकार युवती से हौंसला लेकर कई सफेदपोश चेहरों के स्याह हो जाने का इंतजार किया जा सकता है।

बहरहाल, फिर एक बार उन नौजवानों को सलाम जिन्होंने निर्भया के साथ ही इस तरह के अत्याचार से गुजरने वाली तमाम महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ी। ये लड़ाई केवल निर्भया की कभी थी भी नहीं, ये लड़ाई अपने आप से भी है और समूची स्त्री अस्मिता की रक्षा के लिए भी है।