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Written By WD

हेपेटाइटिस 'बी' खतरनाक रोग

jaan zahan | हेपेटाइटिस ''बी'' खतरनाक रोग
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हेपेटाइटिस 'बी' से पीलिया ना हो इस हेतु इस रोग के प्रति जनचेतना जगाना जरूरी है। इस रोग में रोगी को चारों ओर हर वस्तु पीली नजर आती है। रोगी भी पीले रंग से पोत दिया गया हो ऐसा लगता है। वह कमजोर हो जाता है। यह हेपेटाइटिस 'बी' का गहरा पीलिया है जिसे कई लोग जहरीला पीलिया भी कहते हैं।

हेपेटाइटिस बी एक डीएनए वायरस का संक्रामक रोग है, जो एक-दूसरे के शारीरिक संपर्क और रक्त से फैलता है। विश्व में 40 करोड़ लोग इस रोग के अलाक्षणिक संवाहक हैं। भारत में 4.5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी के वायरस को अपने शरीर में लिए हुए हैं। संक्रामक रोगों में हेपेटाइटिस बी मौत का तीसरा प्रमुख कारण है।

कैसे फैलता है
हेपेटाइटिस बी कोई दूषित जल और विष्ठा से नहीं फैलता है, वरन्‌ सघन शारीरिक संपर्क, रक्त से, शरीर के विभिन्ना स्रावों जैसे वीर्य, योनि स्राव, मूत्र, माताओं द्वारा बच्चों को स्तनपान कराने इत्यादि से फैलता है। साथ ही भूलवश इंजेक्शन लगाते वक्त सुई का चुभ जाना, एक ही हाइपोडर्मिक नीडल से विसंक्रमित तौर पर कई लोगों को इंजेक्शन लगाते रहना, टैटू बनवाना, नाक-कान को छिदवाना, रेजर ब्लड का सामूहिक उपयोग, दूसरे का टूथब्रश इस्तेमाल करना, असुरक्षित रक्तदान करना आदि भी इसका कारण बनता है।

कैसे पता लगाया जाए
करोड़ों लोग अलाक्षणिक रूप से इस रोग के संवाहक हैं, जो बाद में हेपेटाइटिस के दुष्परिणामों को भुगतते हैं। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को हेपेटाइटिस होने या न होने हेतु एचबीएसजी टेस्ट या ऑस्ट्रेलिया एन्टीजन टेस्ट की रक्त जाँच करा लेनी चाहिए।

पीलिया
हेपेटाइटिस बी शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि लीवर को प्रभावित करती है। लीवर एक अनोखा जैविक कारखाना है। इसमें एक हजार से ज्यादा एन्जाइम होते हैं। यह शरीर की चयापचय प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। अनगिनत लीवर कोशिकाओं से बनती है, जिन्हें हेपेटोसाइट कहते हैं।

यही हेपेटोसाइट हेपेटाइटिस बी वायरस से संक्रमित हो जाते हैं तथा निष्क्रिय हो जाते हैं जिससे लीवर में बनने वाला पित्त बिलीरूबीन निष्क्रिय न होकर सीधे ही रक्त में बहने लगता है। शरीर में इसकी मात्रा बढ़ जाने से कई शारीरिक विषमताएँ पैदा हो जाती हैं। लीवर सूज जाता है, मूत्र पीला आने लगता है, आँखें, चमड़ी, जीभ सभी पीली पड़ जाती हैं।

यही पीलिया रोग है। प्रारंभिक लक्षणों में हल्का बुखार, भूख न लगना, जी मचलाना, उल्टी होते रहना, अत्यधिक कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, जोड़ों में दर्द प्रमुख है। धीरे-धीरे गहरा पीलिया हो जाता है जो कई दिनों, महीनों तक रह सकता है। कई लोग गंभीर स्थिति में पहुँच जाते हैं तथा लीवर के काम न करने पर एक्युट लीवर फेलियर से मौत के ग्रास हो जाते हैं। ठीक होने के बाद भी हेपेटाइटिस के दीर्घकालिक दुष्परिणाम तलवार की तरह लटके रहते हैं जिनमें सिरोसिस ऑफ लीवर, जलोदर तथा प्राइमरी लीवर कैंसर प्रमुख हैं।

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उपचार
इस रोक का कोई ठोस उपचार आज तक नहीं आया है। मात्र आराम और पथ्य में परिवर्तन, लीवर को आराम, ग्लूकोजयुक्त द्रव जो रेडिमेड ऊर्जा के स्रोत हैं, विटामिन इत्यादि से लाक्षणिक उपचार ही संभव है।

कैसे बचें
हेपेटाइटिस बी से पीलिया न हो, इस हेतु इस रोग के प्रति जनचेतना जगाना जरूरी है। इसका बचाव ही इसका उपचार है। अतः आजकल उपलब्ध अत्यधिक प्रभावी रिकोम्बीटेंट वेक्सीन अपने चिकित्सक की देखरेख में लगवाना चाहिए।