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Written By WD

कान का दर्द कुछ कहता है

कान का दर्द कुछ कहता है -
-रामकिशोर पारच

कई बार कानों को बहुत जोर लगाकर साफ करने और बार-बार कोई भी कान की दवा का प्रयोग करने के भी विपरीत परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि कानों की नसों की जड़ों में होने वाले विषाणु संक्रमण से शायद ही कभी संक्रमण होता हो जिसे हर्पिस जोस्टर ओटियस कहते हैं, जिसके कारण कान में असहनीय दर्द होता है। यह सिर में चक्कर, मुँह के पक्षाघात, बहरेपन और झनझनाहट से जुड़ा हो सकता है। यह उसी विषाणु के कारण होता है जो चेचक के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस रोग का उपचार दर्द निवारक और विषाणुरोधी औषधियों द्वारा किया जाता है।

हो सकता है कि बहुत से लोगों के लिए कान का दर्द आम बात हो। लेकिन कई बार यह कान का दर्द जान को आ जाता है। यह दर्द तेज, पुराना, हल्का, असहनीय और कई तरह का हो सकता है। इस दर्द का कारण कोई दुर्घटना भी हो सकती है। यह अचानक भी हो सकता है। जरूरी नहीं कि दोनों कानों में दर्द हो ही। किसी भी उम्र का व्यक्ति इससे पीड़ित हो सकता है। कुछ मामलों में कान दर्द को बिलकुल ठीक किया जा सकता है और वह केवल कुछ घंटों तक रहता है। अन्य गंभीर मामलों में यह लंबे समय तक रह सकता है। गंभीर इतना कि कई मामलों में तो यह हमारी नींद भी खराब कर सकता है क्योंकि कान का दर्द अक्सर रात को ही अधिक होता है।

वैसे तो कोई भी बाहरी, मध्य या आंतरिक परेशानी कान के अंदर या चारों ओर ही दर्द का कारण बन सकती है परंतु इनमें से कुछ कारण ज्यादा खतरनाक होते हैं। कई बार कान के भीतर बड़ी मात्रा में मैल या कान में अपरदन के कारण छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं, जिसके कारण कान में त्वचा इकट्ठी हो जाती है जिसे 'केरेटोसिस ओब्टूरंस' कहते हैं। यह बहुत ही कष्टदायक स्थिति होती है और इस स्थिति में कोई भी एंटीबायोटिक या दर्द निवारक उपचार काम नहीं करता। ऐसी स्थिति में रोगी को बेहोश करके कान की पूरी तरह से सफाई करने से ही आराम मिल सकता है। हालाँकि प्रकृति ने कान को बाहरी मैल से बचाने के लिए उसके बाहरी भाग में ही अपनी बनावट ऐसी विकसित की है, जो उसे धूल से बचाती रहती है। कान की मैल ही कान के बाहरी भाग की बाहरी तत्वों से भी रक्षा करती है।

आमतौर पर कान में बनी मैल हमारे निचले जबड़े के हिलने और नहाने से ही निकल जाती है और कान की मैल को निकालने के लिए बड्स या अन्य किसी भी प्रकार के औजार की तुरंत आवश्यकता नहीं पड़ती। बहुत ही कम मामलों में, जब या तो कान की अंदरूनी बनावट बहुत पतली हो या जो लोग बार-बार बाहरी चीजों से अपने कान साफ करते रहते हों, उनके कानों में मैल एकत्र होने की संभावना अधिक होती है। यद्यपि ऐसा करने से किसी प्रकार का दर्द, रुकावट या बहरापन आसानी से नहीं होता, फिर भी ऊपर से कान में पानी चला जाए तो, ऐसा हो सकता है। यदि असावधानी या जानबूझकर कोई भी गैरजरूरी चीज कान में चली जाए तो फिर रोगी को बेहोश करके माइक्रोस्कोप और दूसरे उपकरणों की सहायता से ही उसे निकालना पड़ता है। कई बार कानों के भीतर किसी प्रकार के द्रव या 'फंगी' के संक्रमण के कारण भी कानों में दर्द हो सकता है, ऐसा कानों में नमी और बार-बार पानी जाने के कारण होता है जो तैराकों और गोताखोरों या लापरवाही से कान की दवाइयों का प्रयोग करने वालों के साथ हो सकता है।

कई बार कानों में दर्द सूजन के कारण भी हो सकता है, ऐसा अक्इस स्थिति में कान को 'हांगकांग कान' या 'सिंगापुर कान' के नाम से भी जाना जाता है। यदि कान में दर्द के साथ सनसनाहट-सी भी होती है तो यह हल्की-सी मगर नाजुक स्थिति हो सकती है। जिसमें यदि कान पर बाहरी तौर पर ऊपर अत्यधिक दबाव पड़ जाए तो यह नाजुक स्थिति गंभीर हो सकती है। चूँकि कान की त्वचा नीचे से 'कार्टीलेज' के साथ बहुत पास सटी होती है, इसलिए थोड़ी सी सूजन से भी भयंकर पीड़ा और गंभीर नाजुक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, लेकिन गर्म पानी से स्नान और दर्द निवारक से इस समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। इसमें एंटीबायोटिक्स की यदाकदा ही आवश्यकता पड़ती है। कान के अंदर बने मवाद को निकालने का भी कभी प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से कान के भीतर इन्फेक्शन हो सकता है। हालाँकि कानों में दर्द पैदा करने वाले ट्यूमर बहुत कम होते हैं और गौर किया जाए तो कान की भीतरी बनावट और कान के पर्दे पर किसी चोट से होने वाले दर्द और खून के रिसाव के लिए किसी भी स्थिति को यथास्थिति में बनाए रखना ही सबसे अच्छा उपाय होता है।

कई बार कानों को बहुत जोर लगाकर साफ करने और बार-बार कोई भी कान की दवा का प्रयोग करने के भी विपरीत परिणाम हो सकते हैं क्योंकि कानों की नसों की जड़ों में होने वाले विषाणु संक्रमण से शायद ही कभी संक्रमण होता हो जिसे हर्पिस जोस्टर ओटियस कहते हैं, जिसके कारण कान में असहनीय दर्द होता है। यह सिर में चक्कर, मुँह के पक्षाघात, बहरेपन और झनझनाहट से जुड़ा हो सकता है। यह उसी विषाणु के कारण होता है जो चेचक के लिए उत्तरदायी है। इस रोग का उपचार दर्द निवारक और विषाणुरोधी औषधियों द्वारा किया जाता है।

शिशुओं और बच्चों के कान में दर्द अधिकतर उनके मध्यम कान में संक्रमण के कारण होता है, जो ऊपरी साँस लेने की व्यवस्था के संक्रमण, दाँत निकलते समय और यूस्टेशियन नली में रुकावट के कारण होता है और जिसके फलस्वरूप मध्यम कान में मवाद और अन्य द्रव एकत्र हो जाते हैं। इसका इलाज दर्द निवारक दवाइयों और कान की सूजन कम करने वाली दवाइयों के द्वारा तुरंत हो जाता है। यदि संक्रमण गंभीर अवस्था में पहुँच चुका हो और उसके साथ अहसनीय दर्द तथा बुखार आदि के लक्षण भी हो तो सुन्न करके पर्दे में छेद करके उपचार किया जाता है, जिससे स्थाई बहरेपन या 'परफोरेशन' से बचा जा सके। इसके जख्म भी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।

इसी तरह 'टोंसीलेक्टोमी' टोंसिल की सर्जरी और 'एडेनायडेक्टोमी' (नाक के पीछे सर्जरी) द्वारा भी कान के दर्द की अगली कड़ियों को रोक सकते हैं। यदि कोई बच्चा मुँह से साँस लेता है और यदि बच्चे के कान में दर्द रहता हो तो टोंसिल्स को सर्जरी से निकलवा देना चाहिए। इसी तरह जिन लोगों को दूसरे रोग होते हैं और वे कान के दर्द से भी पीड़ित होते हैं, उन्हें कुछ अधिक समस्या और दर्द का सामना करना पड़ता है। जैसे अनियंत्रित मधुमेह से पीड़ित वयस्कों और वृद्धों के कान में दर्द तेज हो सकता है। कान में से मवाद निकलना और कुछ मामलों में चेहरे का पक्षाघात आदि लक्षण भी खतरनाक रोग 'ओटिटीस एक्सटर्ना' यानी कान के बाहरी संक्रमण के कारण हो सकते हैं।

यह एक ऐसा प्रतिरोधी संक्रमण है जिसे यदि शीघ्र ही उपचारित न किया जाए तो यह कान की तमाम संरचनाओं से होता हुआ हमारी खोपड़ी तक फैल सकता है जिसके कारण न केवल चेहरे का पक्षाघात बल्कि खोपड़ी की इंद्रियाँ भी पक्षाघात की शिकार हो सकती हैं। यदि ऐसा हो तो शल्य चिकित्सा से भी हमेशा बचना चाहिए क्योंकि उससे स्थिति बिगड़ सकती है। जब मस्तिष्क में किसी प्रकार का ट्यूमर या अवांछित वृद्धि बढ़ जाती है और अपने साथ मस्तिष्क की बाहरी परत को भी शामिल कर लेती है तो भी रोगी को बहुत तेज सिरदर्द और कान में दर्द होता है। भीतरी कान में संक्रमण के पुराने, कान बहने वाले रोगियों यानी 'सपरेटिव ओटिटीस मीडिया' के रोगियों को कान बहने पर आमतौर पर दर्द नहीं होता है। उन्हें केवल बहुत ज्यादा खराब अवस्था में होने पर ही कान में दर्द हो सकता है। कान के अंदर या उसके चारों ओर सिरदर्द के लगातार बने रहने पर भी यह महसूस होता रहता है कि संक्रमण पूरे कान की बनावट में फैल चुका है। इसके उपचार के लिए हमें तुरंत शल्य-चिकित्सा और कान विशेषज्ञ की मदद लेनी चाहिए। ऐसी भी कुछ स्थितियाँ हो सकती हैं जब हमारा कान जरूरत से ज्यादा सुनना चाहता हो, तो कान में दर्द हो सकता है।

यदि कोई व्यक्ति कान में दर्द की शिकायत करता है और सघन परीक्षण के बाद भी कोई कारण नहीं पता चलता है तो इस स्थिति को 'रिफर्ड ओटेल्जिया' कहा जाता है। यह एक आम समस्या है। इसका एक और उदाहरण यह है कि जब 'डायफ्राम' की बढ़ोतरी से पीड़ित व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसे दाएँ कंधे के ऊपर दर्द है। वास्तविकता यह है कि जब एक रोगी की एक विशेष स्नायु वाहिका दो अंगों या स्थानों पर जुड़ी होती है और जब दर्द की लहरें एक स्थान से मस्तिष्क को भेजी जाती हैं तो मस्तिष्क उसे दूसरे स्थान से आती लहरें समझ लेता है जबकि दर्द का कारण निचले जबड़े की पिछली दाढ़ है। परंतु जब वह स्नायु तंत्र के रास्ते से मस्तिष्क तक पहुँचती है तो मस्तिष्क इस पीड़ा का कारण कान को समझ लेता है। इसलिए रोगी समझता है कि उसे कान में दर्द है, जबकि इसका कारण दाँतों में छिपा होता है।

कान अपने स्नायु तंत्रों का प्रयोग ऊपरी और निचले दाँतों, मसूडों, गालों, जीभ, मुँह, टांसिल, साधारण सर्जरी, नाक, नाक के साथ खुलने वाले हिस्से (साइन्यूसिस वासोफेरिंक्स), लेरिंक्स (वायस बाक्स), लैरिंगोफेरिंक्स (खाना निगलते समय), सेलीवेरी ग्लैंड्स (थूक बनाने की प्रक्रिया), जबड़े के जोड़, गर्दन और रीढ़ की हड्डी और गले के कुछ अन्य भागों के साथ ही करता है। इन हिस्सों में किसी प्रकार की उत्तेजना, जोड़ों का दर्द या कोई भी नई बीमारी होने पर स्नायु तंत्रों के द्वारा वे लहरें मस्तिष्क को भेजी जाती हैं और मस्तिष्क इन्हें कान में दर्द के समान ही समझता है। इसीलिए टांसिल के ऑपरेशन के बाद या दाँत निकलवाने के बाद, गले का कैंसर होने की स्थिति में गले में दूसरे प्रकार के विकार होने, जोड़ों के दर्द या पीठ दर्द की व्यवस्था में भी रोगी कान के दर्द की शिकायत करते हैं।

चेहरे की मांसपेशियों में झिल्ली आना भी एक अन्य कारण है जब कान में दर्द हो सकता है। जब वह दोनों तरफ से मुँह न चला रहा हो, जिसका कारण दाँतों का बंद रहना, या जब जोड़ों के दर्द हो, ऐसे में एक विशेष तरफ चबाने से कान में दर्द हो सकता है। उदाहरण के लिए एक साधारण स्टेपीडेक्टोमी ऑपरेशन यानी कान की तीनों हड्डियों में से एक की सर्जरी के बाद रोगी अक्सर दाहिनी ओर से चबाना बंद कर सकता है, जिससे सिर के दाहिनी ओर की मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है और कान में दर्द शुरू हो सकता है।

कई बार लोग शिकायत करते हैं कि उनके गले में एक तरफ दर्द है और उसके साथ ही दूसरी ओर के कान में भी दर्द है। यह दर्द लहरों की तरह उठता है और कुछ चबाने या पीने से भी हो सकता है। इसका कारण जीभ का एक ओर होना होता है। साइलोकेन के घोल से बनी बेहोशी की साधारण दवा के स्प्रे से ही कानों और गले दोनों के दर्द को रोका जा सकता है। लेकिन जब बाहरी इलाज से फायदा न हो तो ऑपरेशन के पश्चात उस स्नायु को बाहर निकलवा देना चाहिए। लेकिन जब मस्तिष्क से आता दर्द ही गले और कान में दर्द का कारण हो तो ऑपरेशन के बाद उस जगह को भी निकलवा देना चाहिए। इस अवस्था को स्नायु का दर्द और स्टाइलॉइड यानी सिर का दर्द कहते हैं।