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Written By WD

रामभक्तों की आसुरी सेना का तांडव

गुंडागर्दी से तार-तार हुईं मानवीय संवेदनाएँ

रामभक्तों की आसुरी सेना का तांडव -
- विनय छजलान
गुजरी 12 सितम्बर को देशभर में 'रामसेतु' के मुद्दे को लेकर जिस तरह बंद का तमाशा हुआ, उसने एक ऐसा बदनुमा दाग चस्पा कर दिया, जो लंबे समय तक नहीं धुल पाएगा। कहीं बुजुर्गो के साथ बदसलूकी हुई तो कहीं महिलाओं को अपमानित होना पड़ा।

दशहतगर्दी की हद तो तब हो गई जब एक युवक प्रसव वेदना से तड़प रही अपनी पत्नी को अस्पताल तक नहीं पहुँचा सका और किसी तरह परदा करके उस महिला को सड़क पर ही अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा।

इसमें कोई शक नहीं कि 'राम' के नाम पर की गई गुंडागर्दी ने मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर दिया। लोगों का आक्रोश जाहिर है कि आखिर कब तक राजनैतिक स्वार्थो के लिए आम आदमियों को उसकी कीमत चुकानी होगी?

दशहतगर्दी की हद तो तब हो गई जब एक युवक प्रसव वेदना से तड़प रही अपनी पत्नी को अस्पताल तक नहीं पहुँचा सका और किसी तरह परदा करके उस महिला को सड़क पर ही अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा
रामसेतु के लिए 12 सितम्बर को सुबह 8 बजे से 11 बजे के बीच किए गए तमाशे और गुंडाराज से मध्यप्रदेश की औद्योगिक और सांस्कृतिक राजधानी इंदौर भी अछूती नहीं रही। उस रोज देवी अहिल्या की नगरी इन्दौर में जो कुछ हुआ, उसकी काली तस्वीर यहाँ प्रस्तुत है-

दृश्य एक : अपने परिवार के साथ ड्राइंग रूम में बैठकर हम कसमसा रहे हैं कि कब 11 बजे, हमारे शहर के चौराहे कब स्व-नामधारियों के कब्जे से मुक्त हों और कब हम अपने दफ्तर में तय की गई जरूरी बैठक में पहुँच सकें।

दृश्य दो : एक महिला डॉक्टर को किसी केसरिया दुपट्टे वाले को बताना पड़ रहा है कि वह सचमुच डॉक्टर है और उसे जाने दिया जाए।

दृश्य तीन : एक वृद्ध सज्जन गिड़गिड़ा रहे हैं कि उनका इस चौराहे के उस पार पहुँचना बहुत जरूरी है, लेकिन उनकी गाड़ी फोड़ दी गई।

दृश्य चार : एक दूधवाले की कोठी से सारा दूध ढोल दिया गया और उसे जमकर पीटा गया।

दृश्य पाँच : एक भद्र पुरुष द्वारा कार से नीचे उतरकर विनती करने और उनके ड्राइवर द्वारा कार साइड में लगा लेने के बावजूद उनकी कार के काँच फोड़ दिए और उन्हें भी पीटा गया। उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया।

दृश्य 6, 7 और पता नहीं कितने : एक महिला को घेरकर केसरिया दुपट्टा वाले कुछ तथाकथित रामभक्त बहुत बेहूदा तरीके से 'जय-जय सियाराम' के नारे लगा रहे हैं। एक साइकल सवार को रोका और पीटा गया, एक महिला का स्कूटर तोड़ दिया गया, एक बच्ची तक के साथ अभद्र व्यवहार किया गया।

इन सब दृश्यों में पुलिस की भूमिका : मूक दर्शक।
नतीजा : शहर फिर दहशत, सांप्रदायिक तनाव और अशांति की गिरफ्त में।

इन दुपट्टाधारियों का खौफ इतना कि सचमुच हनुमान भी आ जाएँ तो उन्हें भी न जाने दें। ...यह कैसी दहशतगर्दी है? रामसेतु के नाम पर दिलों के पुल और मानवीयता के दायरे ध्वस्त करने का अधिकार किसने दिया?
घरों से निकलने को बेताब लोग और चौराहे पर तैनात कथित रामभक्त। इन दुपट्टाधारियों का खौफ इतना कि सचमुच हनुमान भी आ जाएँ तो उन्हें भी न जाने दें। ...यह कैसी दहशतगर्दी है? रामसेतु के नाम पर दिलों के पुल और मानवीयता के दायरे ध्वस्त करने का अधिकार किसने दिया?

अपने गले के दुपट्टे को शहर के गिरेबाँ में डालकर उसे अपने कब्जे में लेने के प्रयासों को क्या सफल होने देना चाहिए? राम ने तो वानर सेना लेकर राक्षसों को हराया था, पर इन लोगों ने तो राम के नाम पर आसुरी सेना तैयार कर ली है, जो आम आदमी को ही हराने पर तुली हुई है।

हर कोई परेशान था, भयाक्रांत था इन दृश्यों और उनसे उपजे नतीजों को देखकर। यों तो ये दृश्य पूरे देश में देखे गए, आम आदमी को परेशान किया गया पर इंदौर के बाशिंदों के लिए इसकी कसक बहुत गहरी है। पूरे शहर की फिजाँ ही बिगाड़कर रख दी है।

बंद की चित्रमय झलकियाँ
एक सिलसिला-सा चल पड़ा है शहर की शांति भंग करने का। ये तत्व स्कूल के मासूम बच्चों को भी पीटने से नहीं हिचकते और अपने ही शहर के, अपने ही देशवासियों के पैसे से बने एयरपोर्ट पर ऐसे शान से कब्जा करते हैं, मानो लाहौर या कंधार के एयरपोर्ट को कब्जे में ले लिया हो। क्या सोच है इन लोगों का? क्या चाहते हैं ये लोग? इन्हें शहर की फिजाँ बिगाड़ने का हक किसने दिया?

ये तत्व स्कूल के मासूम बच्चों को भी पीटने से नहीं हिचकते और अपने ही शहर के, अपने ही देशवासियों के पैसे से बने एयरपोर्ट पर ऐसे शान से कब्जा करते हैं, मानो लाहौर या कंधार के एयरपोर्ट को कब्जे में ले लिया हो
फिर एक बार पूरा शहर इनकी दया की भीख पर जिंदा था। ये तय करेंगे कि कौन, कब, कैसे, कहाँ आएगा और कहाँ जाएगा? और यह सब किसके नाम पर? रामभक्ति के नाम पर! क्या इन्होंने रामभक्ति का ठेका ले रखा है? क्या राम केवल इन्हीं की बपौती है? क्या आप और हम जब मिलते हैं तो एक-दूसरे से जय श्रीराम नहीं करते? क्या हमारी रामभक्ति में कोई खोट है?

दरअसल, ऐसा सब होते रहने में हमारा भी बहुत बड़ा हाथ है। हम यानी आम नागरिक जो इस सबका शिकार होने के बावजूद यह सब खामोशी से सहने को तैयार है। मुझे भी इस बात का अफसोस है कि मैं यह सब एक प्रतिक्रिया के तौर पर, एक रिएक्शन के रूप में लिख रहा हूँ। ऐसा न हो पाए, इसके उपाय तो हमें पहले से करने होंगे।

हमें प्रो-एक्टिव होना पड़ेगा। अब आपके और हमारे अलावा किसी और से उम्मीद भी नहीं की जा सकती। पुलिस और प्रशासन इन लोगों के आगे लाचार हैं। शायद कुंठित भी कि वे चाहकर भी पूरी जिम्मेदारी से अपनी भूमिका नहीं निभा पाते।

ऐसा प्रतीत होता है कि यह आजाद भारत की पुलिस नहीं, ब्रिटिश जमाने की पुलिस है, जहाँ अपने देशवासियों ने ब्रिटिश वर्दी पहनी हो और जुल्म होते देखना उनकी मजबूरी हो...। इससे अफसोसजनक और क्या हो सकता है? हमें ही संकल्प लेना होगा कि हम अपने इस प्यारे शहर का चेहरा नहीं बिगड़ने देंगे।

अपनी बात मनवाने का यह तो कोई तरीका नहीं हुआ। अगर आपको लगता है कि यह सब जन भावनाओं की अभिव्यक्ति है तो फिर यह जबर्दस्ती क्यों? रस्सियाँ बाँधकर चौराहे रोकने की क्या जरूरत है? अगर आपकी बात सही होगी तो जनता खुद उसमें शामिल होगी
अपनी बात मनवाने का यह तो कोई तरीका नहीं हुआ। अगर आपको लगता है कि यह सब जन भावनाओं की अभिव्यक्ति है तो फिर यह जबर्दस्ती क्यों? रस्सियाँ बाँधकर चौराहे रोकने की क्या जरूरत है? अगर आपकी बात सही होगी तो जनता खुद उसमें शामिल होगी। राम की आड़ में चल रही इस दादागिरी को रोकना होगा।

अगर आप लोग भी यही भावना रखते हैं और इन तथाकथित रामभक्तों की दादागिरी को रोकना चाहते हैं तो आपका समर्थन दर्ज करवाइए। अब घर बैठे रहने से काम नहीं चलेगा। इसमें कोई जबर्दस्ती नहीं है। आपकी राय आप नीचे दी गई वेबदुनिया बहस की लिंक का उपयोग कर दर्ज़ करवा सकते हैं।

रामसेतु और मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लेकर आम जनमानस की राय अपनी जगह है। आस्था को बहस का मुद्दा बनाने की आवश्यकता नहीं है। राजनीतिज्ञ कम से कम अपने स्वार्थो के लिए देश की आम जनता के साथ खिलवाड़ करना बंद करें।