गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By WD

भूखे लोग और चाँद पर कदम...

देश में आपदाओं व भुखमरी के बीच चंद्रयान पर उठे सवाल

भूखे लोग और चाँद पर कदम... -
अरविन्दुब
देश में चारों तरफ खुशहाली फैली है, लहलहाती फसलों से किसानों की चाँदी हो रही है, आतंकवाद का नामोनिशां नहीं है, देश की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है...ऐसे हालातों के बीच अगर 386 करोड़ रुपए खर्च कर चंद्रमा पर चंद्रयान भेजा जाए तो बात समझ में आती है, लेकिन क्या हमारे देश के हालात ऐसे हैं? नहीं। फिर क्या ऐसे समय में चंद्रमा पर उपग्रह भेजना उचित है?

जरूरी है, मगर... : माना कि देश के विकास में अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण का भी बड़ा हाथ होता है। इससे जाहिर होता है कि देश तकनीक के मामले में भी दूसरे देशों की बराबरी कर रहा है

इसरो ने कल चंद्रयान-1 के दीदार देश को कराए। इसरो इस पर लंबे समय से काम कर रहा था और यह उसकी महती योजना का हिस्सा था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब पहली बार इस योजना का खुलासा किया था, तब विश्व बिरादरी को भरोसा नहीं था कि भारत ऐसा कर पाएगा, लेकिन आखिर हम उस मुकाम पर पहुँच ही गए, जहाँ से देश अपना पहला चंद्रयान भेजेगा।

पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीइकल) चंद्रयान को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इसकी तिथि तय नहीं की गई है, लेकिन 22 से 26 अक्टूबर के बीच इसे छोड़ा जाएगा।

आधुनिकता की मिसाल : चंद्रमा के बारे में जानकारियाँ जुटाने के लिए चंद्रयान में उच्च तकनीक वाले यंत्र मौजूद हैं। इसके प्रक्षेपण के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देते हुए इसरो के सैटेलाइट केंद्र के निदेशक डॉ. टीके एलेक्स ने बताया कि यह चंद्रमा के बनने की प्रक्रिया के बारे अहम जानकारी भेजेगा।

इसके माध्यम से चंद्रमा की सतह पर प्रयोग भी किए जाएँगे। यह दो साल के दौरान चाँद की सतह का पूरा नक्शा भेजेगा।


परीक्षण अभी बाकी : बहरहाल, चंद्रयान को अभी-भी कुछ अहम परीक्षणों से गुजरना है। बेंगलुरु में यह जाँच की जाएगी। सफल रहने पर ही इसका प्रक्षेपण घोषित तिथि को हो सकेगा, वरना 5 महीने देरी से पूरी हुई यह योजना कुछ और समय ले सकती है।

इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया है कि कम्पन और ध्वनि को लेकर चंद्रयान के अहम टेस्ट अभी बाकी हैं। स्पेसक्राफ्ट को पहले भारी कम्पन और फिर चार जेट विमानों के बराबर ध्वनि पर परखा जाएगा।

जीवन की संभावना तलाशेगा : इसरो के परियोजना प्रमुख डॉ. अन्ना दुराई ने बताया कि चंद्रयान चंद्रमा पर जीवन की संभावनाएँ भी तलाशेगा। हालाँकि तकनीकी परेशानियों के चलते यह चंद्रमा की सतह पर उतर नहीं सकेगा, लेकिन उसके आसपास मँडराएगा। इससे भी कई अहम जानकारी हासिल होगी।

चंद्रयान-2 को भी हरी झंडी : इधर, चंद्रयान-1 के बारे में जानकारी दी जा रही थी और उधर सरकार चंद्रयान-2 को हरी झंडी देने में लगी थी। कल कैबिनेट ने इस आशय का फैसला लिया। इस योजना पर 425 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

देश की सचाई : भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को देखकर लगता है कि यहाँ नागरिकों की मूलभूत जरूरतें पूरी चुकी हैं और देश आंतरिक तौर पर किसी बड़ी परेशानी से नहीं जूझ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। देश पर कई विपदाएँ मँडरा रही हैं, जिनका हल पहले खोजा जाना चाहिए।

हाल ही में बिहार में अब तक की सबसे भीषण बाढ़ ने कहर बरपाया है। 20 लाख से अधिक लोग बेखर हो चुके हैं। 1000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी कम लग रही है। इस प्राकृतिक आघात के निशान शायद बिहार के मानचित्र से मिट ही न पाएँ।

अब सौराष्ट्र जैसे दूसरे क्षेत्रों में बाढ़ का पानी भरता जा रहा है। बेबस किसानों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बताते हैं कि असम में बाढ़ का खतरा बना हुआ है।

आतंकवाद को सरकार रोक नहीं पा रही है। आतंकियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे पहले से घोषणा कर धमाके कर रहे हैं। हर बार सरकार का रवैया वही रहा है...जाँच की जाएगी, कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा, मुकदमा चलेगा, लेकिन फैसला कुछ नहीं हो पाएगा। लाखों लोगों की जिंदगी आतंकवाद के चलते नर्क हो गई है।

प्राथमिकता क्या है?
सरकार भले ही ‘मिशन मू’ को लेकर अपनी पीठ थपथपाए, लेकिन सवाल उठाए जा रहे हैं कि उसकी प्राथमिकता क्या है...नागरिकों की परेशानियाँ दूर करना, भूखों को रोटी खिलाना, आतंकियों को रोकना या चाँद पर जीवन की तलाश करना? जहाँ जीवन है, उसकी परवाह नहीं की जा रही है।