शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By संदीपसिंह सिसोदिया

भारत के वन्य जीवन का भविष्य

अस्तित्व पर छाया संकट

भारत के वन्य जीवन का भविष्य -
भारत के वन्य जीवों का भविष्य ठीक वैसा ही है, जैसा कि अन्य देशों के वन्य जीवों का होता है। भारत के जंगल व वन्य जीवों के समूह तथा उनके समुदाय भूमंडल के अन्य देशों के जीवों के समान हैं। यदि वन्य जीवों का वर्गीकरण किया जाए तो भारत के वन्य जीव भी उसी वर्गीकरण में आते हैं और लगभग समान परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

आज एशिया, अफ्रीका और अमेरिका जैसे महाद्वीप के अनेक जीवों के विषय में यह आशंका प्रकट की जा रही है कि यदि वर्तमान गति से उनका संहार जारी रहा तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा। अफ्रीका के सफेद गेंडे की संख्या बहुत कम रह गई है और यही स्थिति विश्व के अन्य देशों के वन्य जीवों की भी है। यूरोप के कई देशों से वन्य सूअर मिट चुके हैं। वन्य जीवों के विषय में भी 'यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' वाली बात लागू है। वन्य जीवों का जो संहार पैसे की खातिर, शिकार की खातिर, शौक की खातिर और खेती की रक्षा की खातिर हो रहा है, उस पर विशेषज्ञों को ही नहीं, प्रकृति-प्रेमियों और मानव-समाज के हित-रक्षकों को भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

वन्य जीवों के विनाश और लोप होने के अनेक कारण हैं। उनमें से एक मुख्य कारण है मनुष्यों की तेजी से बढ़ती संख्या। बढ़ती जनसंख्या की विषम समस्याओं को समझने के लिए यदि हम अपने ही देश की जनसंख्या संबंधी समस्याओं पर विचार करें, तो इस समस्या के भावी रूप को अच्छी तरह समझ सकते हैं। भारत-विभाजन के समय भारत की जनसंख्या 40 करोड़ थी और विभाजन के बाद पाकिस्तान बन जाने पर हमारे देश की आबादी 36 करोड़ रह गई थी, पर सन्‌ 1961 में अकेले भारत की आबादी 44 करोड़ के लगभग हो गई। 1901 में भारत की आबादी 23 करोड़ थी। यह आबादी अखंड भारत की थी। अनुमानतः अकेले भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष लगभग 70-80 लाख की वृद्धि हो जाती है। रोगों के उपचार और रोग-निवारण के लिए वैज्ञानिक विकास के कारण मृत्युदर भी घट गई है और वह घटना भी चाहिए। इस प्रकार 2020 के लगभग भारत की आबादी का अनुमान 200 करोड़ तक होने का है।

  हिमालय के जंगल भी बुरी तरह काट डाले गए हैं और हिमालय से निकलने वाली नदियाँ हिमालय की उर्वरा भूमि को काटकर तलहटी को भर रही हैं। कटते वनो और ग्लोबल वार्मिंग के चलते वैसे ही गंगोत्री ग्लेशियर पीछे हटना शुरू हो गया है      
यदि ठीक ढंग से बढ़ती जनसंख्या की समस्या का हल नहीं निकाला गया तो हमारी ही नहीं, विश्व की भी खैर नहीं। उत्तरप्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश के गाँवों में पेड़ कटते चले जा रहे हैं। झारखंड, बिहार और बंगाल की भी यही हालत है। दुधारू पशुओं की संख्या कम हो गई है, वन्य पशु मिट रहे हैं। इस विषय में स्वास्थ्य-कांग्रेस की रायल सोसायटी के मुताबिक - 'आगामी 2050 में संसार की हालत संग्रहालय से भी खराब हो जाएगी। उस समय दुनिया की आबादी 9 से 11 अरब तक जा पहुँचेगी। तब न तो धरती पर इतने लोगों के लिए खाना मिल सकेगा, न स्वच्छ व शुद्ध वायु, न पानी और न ही बिजली ही मिल सकेगी। लोगों के रहने के लिए जो मकान मिलेंगे, उनमें बस उनके खड़े होने भर की जगह रहा करेगी। किसी भी घर में किसी भी किस्म का पालतू जानवर नहीं होगा, क्योंकि ये जानवर इनसानों की खुराक बहुत खाते हैं, इसलिए लोग इन्हें चट कर जाएँगे। पशुओं के न रहने से उनके माँस, दूध तथा चर्बी के न मिलने से लोग उसके स्थान पर खास तरह के आहार की गोलियाँ खाया करेंगे।'

उपर्युक्त वर्णन में अतिशयोक्ति प्रतीत होती है, पर बढ़ती खाद्य समस्या के चलते कुछ देशो में कोई भी व्यक्ति कानूनन कुत्ते और बिल्लियाँ नहीं पाल सकते, क्योंकि वे मनुष्य के भोजन में साझीदार बन जाते हैं। जापान में घनी आबादी और जमीन कम होने के कारण ट्रैक्टर तो क्या बैलों से भी खेती संभव नहीं। आदमी खुरपी और कुदाल से खेती करते हैं। हमारे देश में खेती के उचित तरीकों और खाद्यान्न की समस्याओं पर संतुलित और वैज्ञानिक विचार नहीं हैं।

यदि हम भारत के गत 50 वर्षों के इतिहास पर वन्य जीवों, खाद्यान्न समस्याओं और बढ़ती आबादी की दृष्टि से विश्लेषण करें तो हम इन्हीं परिणामों पर ही पहुँचेंगे। आज हमारे देश से वन्य भैंस, गेंडा, चीता, समुद्र तटवर्ती कच्छ के बालुकामयी रनों से वन्य गधा, पर्वतों से हिम बाघ और कस्तूरा क्यों लोप होने के बिंदु पर पहुँच गए हैं?

अनुचित ढंग से खेती करने के कारण जंगलों और झाड़ियों को बुरी तरह काटा गया है तथा जीवों के सुरक्षित स्थानों को नष्ट कर दिया गया है। माँस, चर्बी और खाल के लालच में वन्य जीवों का इतनी बुरी तरह संहार किया गया है कि उनका प्राप्त होना दुर्लभ ही है। अतः मनुष्यों की नासमझी के कारण भारत के अनेक वन्य जीव विनाश के पथ पर हैं। योजनाएँ बनाते समय केवल मनुष्य के पेट भरने और वोट बैंकों का ही सवाल सामने रखा जाता है और इस प्रकार वन की अमूल्य विभूतियाँ- वन्य जीव नष्ट हो ही जाएँगे।

उत्तरप्रदेश की तराई का क्षेत्र वन्य जीवों के लिए विश्वविख्यात है। तराई, हिमालय और मैदानी इलाकों के बीच स्पंज का काम करती थी। हिमालय के पानी को यह सोखती थी और बदले में घास और जंगलों का बाहुल्य प्रदान करती थी, जो तरह-तरह के वन्य जीवों का स्वर्ग बना रहता था। तराई के जंगल काटकर खेती करना फिलहाल भले ही लाभप्रद दिखाई पड़ता हो, पर दूरदर्शिता से वह नीति हानिकारक है। आज तराई की अधिकांश जमीन खेती के योग्य नहीं रही है, क्योंकि जमीन में अम्लता आने की पूरी आशंका है। साथ ही मैदानी क्षेत्रों के पेड़ कट जाने से ईंधन का अभाव हो गया है। जो गोबर खाद के रूप में खेतों में जाना चाहिए, वह ईंधन के काम में लाया जाता है। बिहार व बंगाल की बाढ़ के लिए भी मनुष्य ही जिम्मेदार है। जंगल काट देने, विशेषकर नदियों के किनारे के पेड़ काट देने से बाढ़ और जमीन की कटान की विकराल समस्याएँ सामने आ गई हैं।

हिमालय के जंगल भी बुरी तरह काट डाले गए हैं और हिमालय से निकलने वाली नदियाँ हिमालय की उर्वरा भूमि को काटकर नदियों की तलहटी को भर रही हैं। कटते वनो और ग्लोबल वार्मिंग के चलते वैसे ही गंगोत्री ग्लेशियर पीछे हटना शुरू हो गया है और जिस रफ्तार से यह पिघल रहा है उससे गंगा के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। किसी भी संपन्न और शक्तिशाली देशों का एक मापदंड है कि वहाँ के 30 प्रतिशत भूभाग पर जंगल और पेड़ होने चाहिए। पर हमारे देश में औसतन लगभग 14 प्रतिशत भूभाग पर ही पेड़ हैं और मैदानी क्षेत्रों में तो जंगल लगभग 4 प्रतिशत ही है। कृषि के साथ कृषि उपयोगी पेड़ लगाए जाएँ और वनों का विकास किया जाए, तो खाद्यान्न की स्थिति भी संभल जाए और भारतीय वनों के गौरव, अनेक वन्य जीवों को जीवन दान भी मिल जाए।

चोरी-छिपे शिकार खेलना और शिकार संबंधी अपर्याप्त कानूनों का उपाय तो जल्दी हो सकता है, पर राष्ट्रीय योजनाजन्य बाँधों और विशाल जलाशयों के बाँधों के निर्माण का कार्य तो राज्यों द्वारा ही होता है तथा इनके निर्माण के कार्य से वन्य जीवों के नैसर्गिक स्थान पानी में डूब जाते हैं। इस प्रकार की योजना बनाने में वन्य जीवों का खयाल रखना बहुत आवश्यक है। कोई भी व्यक्ति विशाल बाँध निर्माण करके उद्योगों के पीछे पशु विरोधी नहीं हो सकता। मनुष्यों की खातिर कुछ जीवों का विनाश भी संभव है, पर उनका उन्मूलन मनुष्य के लिए भी खतरनाक है और ऐसी स्थिति के लिए भयावह भी है। ऐसी योजनाओं में मनुष्य के हित की खातिर वन्य जीवों को भी उचित सुरक्षा मिलना ही चाहिए।