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Written By WD

जीतने के लिए नीचे गिरते जाने की कवायद

जीतने के लिए नीचे गिरते जाने की कवायद -
-वेबदुनिया डेस्

जिन लोगों ने भी पिछले दिनों टीवी पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की क्लिपिंग्स देखी होंगी उन्हें इस बात का अनुभव हुआ होगा कि राजनीति के मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है। यहाँ अपनी बात को साबित करने के लिए आप जितना नीचे गिर सकते हैं, उसकी कोई सीमा नहीं है।

नीचे से नीचे गिरते जाना अपनी सफलता की गारंटी मानी जाती है। ज्यादातर राजनीतिक विवादों का कारण भी यही है कि वे पक्ष और विपक्ष में कीचड़ उछालने का मैच बन जाते हैं। अंत तक विवाद इतना बढ़ जाता है कि यह मूल मुद्‍दे से भटककर पक्ष-विपक्ष की लंबी खींचतान में बदल जाता है और अंत में इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है।

लेकिन ऐसे मुद्‍दों को तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जाता है। इसके जरिए विपक्ष विधानसदनों में सनसनी का माहौल जरूर बना देते हैं।

ऐसे वातावरण में भावनाओं का उबाल कब गाली गलौज तक पहुँच जाता है पता ही नहीं लगता। कब विपक्षी नेता विधान सभा अध्यक्ष का माइक उखाड़कर हमला कर दे या सदन में जूते-चप्पलें चलने से लेकर भद्‍दी गालियों का 'संसदीय'आदान प्रदान होने लगे, कोई भी अंदाजा नहीं लगा पाता।

हाल ही में हमने देखा की ‍कि यूपी कांग्रेस की प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी ने मुख्यमंत्री मायावती की सरकार द्वारा बलात्कार के बदले क्षतिपूर्ति के नाम पर पैसे बाँटने की सरकारी पहल पर अशोभनीय टिप्पणी की तो मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख नेता मुजफ्‍फर हुसैन बेग ने राज्य विधानसभा में यह कहकर माहौल गरमा दिया कि वर्ष 2006 के सेक्स कांड में राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारुक अब्दुल्ला भी शामिल रहे हैं।

बेग का यह आरोप किन्हीं कोर्ट दस्तावेजों पर आधारित था लेकिन ये दस्तावेज किसी जाँच एजेंसी या सीबीआई के दस्तावेज नहीं थे। यह दस्तावजे कोर्ट की गोपनीय कार्यवाही से संबंधित हैं इसलिए बेग से सवाल किया गया है क्या वे इस बात को लेकर सुनिश्चित हैं कि वे जो आरोप लगा रहे हैं उसमें पर्याप्त सच्चाई है भी या नहीं।

इस प्रश्न के जवाब में बेग ने एक न्यूज चैनल को कहा ‍‍कि वे कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं वरन उन्होंने तो इस तथ्‍य पर ध्यान आकर्षित किया है ‍‍‍कि इस मामले में सीबीआई ने जो आरोप पत्र दाखिल किया था उसमें केवल 17 आरोपियों का नाम है और इनमें उमर अब्दुल्ला शामिल नहीं हैं। पर स्‍थानीय पुलिस और सीबीआई ने ऐसे बहुत से गवाहों से बात की है, जिन्होंने 17 आरोपित लोगों की बजाय 190 और लोगों के नाम बताए हैं, जिनमें उमर अब्दुल्ला और फारुक अब्दुल्ला शामिल हैं।

इस मामले का एक पहलू यह भी है कि जब यह मामला सीबीआई ने दो न्यायाधीशों की एक खंडपीठ के सामने रखा था, उनमे से एक न्यायाधीश का कहना था कि 17 के अलावा अन्य आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त जाँच नहीं की गई है। इनमें से एक न्यायमूर्ति किरमानी का कहना था कि मामले से जुड़े मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों और सरकार के बड़े अधिकारियों के खिलाफ जाँच में और बहुत कुछ जाँच की गुँजाइश थी और कहा कि कोर्ट के निर्देशन में और जाँच की जाए।

दूसरे जज न्यायमूर्ति इम्तियाज ने निर्देश दिया था कि समान न्यायक्षेत्र वाले किसी क्रिमिनल कोर्ट के निर्देशन में और जाँच कराई जाए। अपने फैसले में दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि गोपनीय कोर्ट दस्तावेज में संदिग्ध लोगों की काफी बड़ी संख्या है। ऐसे लोगों की इस सूची में उमर अब्दुल्ला का नाम 102वें नंबर पर और फारुक अब्दुल्ला का नाम 112 नंबर पर है।

इसलिए सवाल उठता है कि किसे विश्वसनीय माना जाए सीबीआई की जाँच रिपोर्ट को या कथित तौर कोर्ट के दस्तावेजों को जिन्हें गोपनीय होने का दर्जा हासिल है ? साथ ही, इस बात का फैसला कौन करेगा कि इस समूचे मामले की सच्चाई क्या ? पर बेग का आरोप है कि सीबीआई पर दबाव डाला गया ताकि कोर्ट द्वारा संदिग्ध लोगों की सूची में शामिल लोगों को और अधिक जाँच से दूर रखा जा सके।

इसके जवाब में फारुक अब्दुल्ला का कहना है कि आरोप निराधार हैं। डॉ.फारुक अब्दुल्ला का दावा है कि जब यह घोटाला सामने आया तो मुजफ्‍फर हुसैन बेग राज्य के तत्कालीन विधि मंत्री थे। वे इस मामले की आगे जाँच करा सकते थे और तब उन्हें आगे जाँच कराने से किसने रोका था ? तब भी क्या फारुक या उमर अब्दुल्ला ने उन्हें आगे जाँच कराने से रोका था ?

इन आरोपों के जवाब में फारुक का कहना है कि यह कहना गलत है कि इस सूची में उनके एक सचिव का भी नाम था और बाद में सरकार ने उन्हें अच्छा पद दे दिया गया था। लेकिन उनके इसी सचिव की बेटी ने पीडीपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था। क्या यह बात बेग भूल गए हैं? सोमवार को पार्टी की नेता मेहबूबा मुफ्ती का व्यवहार सदन में सभी ने देखा था और मंगलवार को यह निराधार आरोप लगाया गया।

इस पर बेग का कहना है कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था और सीबीआई जाँच की माँग की थी क्योंकि स्‍थानीय पुलिस के लिए दबाव में जाँच करना संभव ही नहीं था। बेग कहते हैं कि वह यह नहीं कह रहे हैं कि सीबीआई दबाव में काम करती रही है लेकिन इस बात की आशंका कोर्ट ने जाहिर की है। इसलिए हम मानते हैं कि इस मामले में राजनीतिक दबाव का इस्तेमाल किया गया है।

एक ओर बेग जहाँ कोर्ट के दस्तावेजों का हवाला दे रहे हैं और जाँच के दौरान राजनीतिक दबाव के हावी रहने की आशंका भी व्यक्त कर रहे हैं वहीं केन्द्रीय गृह मंत्रालय और सीबीआई ने उनके आरोपों को खारिज कर दिया है।

बाद में बेग ने अपना रुख बदलते हुए भी कहा कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि उमर अब्दुल्ला इस सेक्स स्केंडल में शामिल हैं पर मैं यह कह रहा हूँ कि उनका नाम कोर्ट कार्यवाही के कागजात में शामिल हैं जिसमें उन्हें संदिग्धों की सूची‍ के शामिल किया गया है। इस मामले में और जाँच किए जाने की जरूरत है और मैं उम्मीद करता हूँ कि उमर बेदाग साबित हों।

चूँकि इस मामले में केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला को भी लपेट लिया गया है इसलिए उनका कहना है कि अगर ये आरोप साबित हुए तो बेग, उमर से सार्वजनिक रूप से माफी माँगेंगे? अगर आरोप साबित होते हैं तो वे भी लोकसभा से त्यागपत्र दे देंगे।

इस ड्रामे का सारा सारतत्व यह है कि उमर अब्दुल्ला की चमड़ी इतनी मोटी नहीं है कि वे इस आरोप को आसानी से हजम कर जाते और यही सोचकर उनके खिलाफ आरोप लगाया गया।

पर राज्य की जो राजनीतिक परिस्थितियाँ हैं उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि ऐसे समय में एक युवा नेता ही राज्य की राजनीति को नई ‍द‍िशा दे सकता है। इसलिए राज्य को उमर अब्दुल्ला की ज्यादा जरुरत है लेकिन उन्होंने भावावेश में आकर अपना इस्तीफा तो दे दिया है पर क्या वे भी इस बात पर राजी होंगे कि इस मामले में कोर्ट से या अन्य किसी केन्द्रीय एजेंसी से निष्पक्ष जाँच कराई जाए ?

पर इस विवाद के पीछे क्या कारण हो सकता है ? देश के अन्य राज्यों की तरह से जम्मू-कश्मीर की राजनीति भी अलग नहीं है और यहाँ भी महत्वपूर्ण मुद्‍दों से ध्यान हटाने के लिए विवादों का सहारा लिया जाता है। इस तरह के मामले उठाकर ही मीडिया और लोगों का ध्‍यान आकृष्ट किया जाता है।

राज्य विधानसभा चुनावों में अपनी हार और कांग्रेस का नेशनल काँफ्रेंस के साथ राज्य में सरकार बनाने को पीडीपी पचा नहीं पा रही है। इसलिए मेहबूबा मुफ्ती का व्यवहार मायावती की तरह उग्र हो रहा है। उन्हें शोपियां बलात्कार मामले के बाद यह दूसरा मुद्दा मिला है जिसे लेकर वे सड़कों पर निकल सकती हैं। ऐसा लगता है कि विधानसभा के समूचे कार्यकाल में बलात्कार संबंधी मुद्‍दे उठाना ही पीडीपी का एकमात्र एजेंडा बनकर रह गया है।

क्या था कश्मीर का सेक्स स्केंडल : मई 2006 में एक गैर सरकारी संगठन ने पुलिस को एक सीडी सौंपी थी। इस सीडी में एक स्थानीय अल्पायु लड़की की अश्लील तस्वीरें थीं। इस मामले में कहा गया था कि सबीना नाम की महिला युवा लड़कियों को नेताओं और बड़े अफसरों के पास भेजती है। बाद में सबीना को गिरफ्तार कर लिया गया था और उसने कथित तौर पर स्वीकार किया था कि वह सेक्स रैकेट चलाती है। इस घटना के बाद घाटी में जबर्दस्त बवाल मच गया था और मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी गई थी।

चूँकि इस मामले में बड़े और प्रभावशाली लोगों के नाम लिए गए थे इसलिए इस मामले की सुनवाई चंडीगढ़ सेशन कोर्ट में कराई गई। इस मामले में सीबीआई ने कुल नौ लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं जिनमें बीएसएफ का एक डीआईजी के.एस.पांधी भी शामिल है। इस मामले में यह आरोप भी है कि सबीना कई नेताओं और प्रभावशाली लोगों को लड़कियाँ सप्लाई करती थी। पर अपने प्रभाव के कारण ये नेता अछूते हैं लेकिन इस मामले पर सीबीआई का कहना है कि मामले में कुछ सत्रह लोगों के खिलाफ आरोप हैं जिनमें उमर अब्दुल्ला या फारुक अब्दुल्ला शामिल नहीं हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम और सीबीआई ने राज्य सरकार को सूचना दी है कि इस मामले में उमर या फारुक अब्दुल्ला शामिल नहीं हैं।

बुधवार को राज्य विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो पीडीपी नेता मेहबूबा मुफ्‍ती ने केन्‍द्र सरकार की इस जानकारी की प्रति को फाड़कर फेंक दिया और कहा कि यह केन्द्र और राज्य सरकार की लीपापोती है।