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Written By WD

क्या फिर शिखर पर पहुँच पाएगी भाजपा

क्या फिर शिखर पर पहुँच पाएगी भाजपा -
-अखिलेश बिल्लौर
देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी का जन्म सन 1980 में हुआ था। तब इसके शीर्ष नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे आदि ने संकल्प लिया था कि अगले 15 सालों में इसे शीर्ष पर पहुँचाएँगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही 15 सालों बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में उसने 160 सीटें जीतकर देश की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हासिल किया।

अटलजी के नेतृत्व मे उसने सरकार भी बनाई किंतु वह 13 दिन की मेहमान रही। फिर 1998 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हुए और वह अपनी संख्या में मात्र 21 सीटों का इजाफा ही कर सकी और 181 सीट लेकर फिर सबसे बड़ी पार्टी बनी। अबकि बार फिर अटलजी के नेतृत्व में सरकार बनाई। विश्वासमत भी हासिल किया। लेकिन 1999 में जयललिता की महत्वाकांक्षा के चलते सरकार गिर गई और पुन: आम चुनाव कराना पड़े। भाजपा नीत गठबंधन को बहुमत मिला, लेकिन भाजपा की सीटों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ।

फिर सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया और अटलजी के नेतृत्व में 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा गया। शाइनिंग इंडिया, ‍फील गुड जैसे हाईटेक नारे लगाए गए लेकिन ये कुछ काम नहीं आए और सारे राजनीतिक पंडितों के आकलन को धता बताते हुए नतीजे राजग के विरुद्ध गए। सत्तारूढ़ गठबंधन दो सौ के आँकड़े को भी नहीं छू पाया। भाजपा को महज 139 सीटों से संतोष करना पड़ा और देश की सबसे बड़ी पार्टी नंबर दो पर आ गई।

हालाँकि कांग्रेस को भी महज 148 सीटें ही मिल पाईं मगर वह सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गई। इसमें वामपंथी दलों की खास भूमिका रही जिनका देश के अब तक लोकसभा चुनाव में सबसे बेहतर रिकॉर्ड रहा।

अब अगले वर्ष 2009 में पुन: लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। बीते इन चार वर्षों में भाजपा की हालत मजबूत होने के बजाय क्रमश: गिरती चली गई। अटलजी अस्वस्थ रहने लगे। केवल आडवाणीजी के सहारे ही उसे चुनावी वैतरणी पार करनी है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह ने आडवाणीजी को भावी प्रधानमंत्री तक घोषित कर रखा है। यानी राजग सत्ता में आया तो आडवाणीजी के नेतृत्व में सरकार बनेगी।

उधर राजग का स्वरूप भी बदल चुका है। इसमें पूर्व में सम्मिलित महत्वपूर्ण दल जैसे तेलुगुदेशम इससे किनारा कर चुके हैं। यानी आंध्रप्रदेश के हाईटेक मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रबाबू नायडू की दिलचस्पी राजग के प्रति पहले जैसी नहीं रही। जयललिता और करुणानिधि का कोई भरोसा नहीं कब किधर चले जाएँ। ऐसे में राजग क्या सरकार बना पाएगा? क्या भाजपा फिर से सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है?

फिलहाल देश में भाजपा की स्थिति का ही विश्लेषण किया जाए तो उसका सबसे अधिक प्रभाव उत्तर भारत में ही माना जाता रहा है। शुरुआत यदि देश के सिर यानी जम्मू-कश्मीर से करें तो वहाँ भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं है। पंजाब में उसका सहयोगी दल मौजूद है। हिमाचल में जरूर भाजपा का अहम स्थान है। हरियाणा में उसका जनाधार है ही नहीं। दिल्ली में वह जरूर मजबूत नजर आती दिखती है। उत्तरांचल में उसी की सरकार है। देश में सबसे ज्यादा सीटों वाला राज्य उत्तरप्रदेश अब भाजपा के लिए टेढ़ी खीर बन चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा था।

राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़- ये चार राज्यों से उसे हमेशा अच्छा समर्थन हासिल हुआ है। वर्तमान में इन राज्यों में उसकी सरकारें भी हैं। बिहार और झारखंड में सहयोगी दलों के सहारे है। पश्चिम बंगाल में माकपा का एकछत्र राज्य है। वहाँ ममता बनर्जी की दाल नहीं गलती, भाजपा क्या चीज है। पूर्वोत्तर राज्यों में भी उसका कोई खास जनाधार नहीं है। उड़ीसा में उसका सबसे विश्वसनीय साथी बीजद की सरकार है। लेकिन सत्ता विरोधी मत उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। महाराष्ट्र में वह शिवसेना के कंधे पर सवार है।

आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के बिना वह शून्य नजर आती है। कर्नाटक में जरूर पिछले तीन-चार सालों में उसने जनाधार बढ़ाया है, लेकिन वहाँ से कितनी सफलता वह हासिल कर पाएगी, यह भविष्य के गर्भ में है। केरल व तमिलनाडु का मतदाता उसे पहचानता भी या नहीं, यह अहम प्रश्न है। गोआ तो उसके लिए उड़न खटोला है। सबसे अहम बात यह है कि पार्टी यदि गुटबाजी से परे हटकर चुनाव लड़ती है तो ही कुछ बात बन सकती है।