शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By उमेश त्रिवेदी

आस्थाओं की राजनीति की फाँस

आस्थाओं की राजनीति की फाँस -
राम के अस्तित्व को नकारने वाला शपथ-पत्र आग उगलने लगा है। यह राजनीति लोगों की आस्थाओं में फाँस की तरह चुभी है।

नतीजतन कांग्रेस 'रक्षात्मक' है, तो भाजपा 'आक्रामक'। द्रमुक जैसे दल आग ताप रहे हैं। भाजपा को लगता है कि 'राम' का करिश्मा फायदेमंद होगा। इसीलिए भोपाल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 'रामसेतु' पर विशेष रणनीति बनाई गई, क्योंकि गुजरात के साथ ही देश में चुनावों का सिलसिला शुरू हो जाएगा...।

देश तब भी हतप्रभ था, जबकि केंद्र-सरकार ने कोर्ट में शपथ-पत्र पर यह कहा था कि 'भगवान राम या रामायण के किसी भी पात्र के अस्तित्व का कोई ऐतिहासिक-सबूत मौजूद नहीं है।' देश अब भी हतप्रभ है, जबकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने वाल्मीकि रामायण के हवाले से यह कहा कि राम शराबी थे और यह स्पष्टीकरण देने की कोशिश की कि मैंने अपनी ओर से राम के बारे में कुछ नहीं कहा।

वाल्मीकि ने जो लिखा वही दोहराया है। अपराध यह है कि दोनों मामलों में जो कृत्य हुआ, वह गैर इरादतन तो कतई नहीं था। सरकार का शपथ-पत्र कोई एक दिन में तैयार नहीं हुआ और न ही करुणानिधि ने दिमाग घुटनों में रखकर राम के बारे में अनर्गल टिप्पणियाँ कीं।

वर्षों तक तमिलनाडु के सत्ताकेंद्र रहे करुणानिधि इतने भोले-भाले भी नहीं हैं, जो यह न समझ सकें कि 'राम' पर शब्द-बाण चलाने के परिणाम क्या होंगे? वे यह भी जानते थे कि उनके 'भोले-भाले स्पष्टीकरण' पर कोई भरोसा भी नहीं करेगा कि वे अपनी तरफ से कुछ नहीं बोल रहे हैं। करुणानिधि ने यह तेजाब भी उस वक्त छिड़का जबकि केंद्र सरकार 'राम' के बारे में दिए गए शपथ-पत्र की त्रुटियों को रफा-दफा करने का मन बना चुकी थी।

यह सर्वविदित है कि विवाद रामसेतु को लेकर था, राम को लेकर नहीं। फिर 'राम' का अस्तित्व, उनके होने या नहीं होने या उनके शराबी होने जैसे सवाल कैसे खड़े हो गए? यह नासमझी क्यों, जो सीधे लोगों की आस्थाओं पर घात करती है। उनमें ज्वलनशील-प्रतिक्रयाएँ पैदा करती हैं... कट्टरता और कठोरता की चिंगारियाँ उड़ाती हैं... ये प्रतिक्रियाएँ भारतीय जनता पार्टी या हिन्दूवादी संगठन की ताकत बनने में उत्प्रेरक का काम करती हैं, तो दोषी कौन माना जाएगा?

इस देश का बहुसंख्यक समाज राम के साथ जीता है और राम-नाम के साथ मरता है। जिस देश और समाज के रोम-रोम में राम बसे हों, वहाँ ऐसी भूलें कितना गहरा घाव करती हैं, यह बताने की जरूरत शायद यहाँ नहीं है। यह देश राम के नाम पर भूखे पेट सो लेता है।

'रामनामी' चादर ओढ़कर जाड़े में रातें गुजार सकता है। पाले की स्थितियों में गंगा किनारे डेरा जमा सकता है और हिमाचल की तराइयों में 'राम-नाम' भजते-भजते जिंदगी गुजार सकता है...। जिस देश में राम की आस्थाओं का समुद्र लहराता हो, वहाँ उनके अस्तित्व पर सवाल खड़े करना कितना मुनासिब माना जाएगा? आस्था और विश्वास का कोई आकार नहीं होता... आस्था एक परंपरा है... आस्था एक मानसिक उत्तराधिकार है... आस्था नैतिक शक्ति का आधार है... इसलिए आस्थाओं को तोड़ना-मरोड़ना या नकारना आग से खेलने जैसा सिद्ध हो सकता है।

यदि भारतीय जनता पार्टी पर राम के नाम पर राजनीति का आरोप लग सकता है, तो राम के अस्तित्व को नकारकर स्वयं को धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने की राजनीति करने के आरोप से कांग्रेस भी मुक्त नहीं हो सकती। वैसे कांग्रेस राम-राजनीति की आग में हाथ झुलसाकर बैठी है, इसलिए शपथ-पत्र प्रकरण में उसने तत्काल भूल सुधार करने की कोशिश की है।

केंद्रीय विधिमंत्री हंसराज भारद्वाज का यह कथन कि 'भगवान राम भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अभिन्ना अंग हैं और इस पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। जैसे हिमालय हिमालय है, गंगा गंगा है, वैसे ही राम राम हैं' कुछ हद तक भले ही प्रतिक्रियाओं को कम करे लेकिन समूचे प्रकरण को ठंडा नहीं करता है, क्योंकि कांग्रेस खामोश हो जाए लेकिन करुणानिधि जैसे लोग आग भड़काने के लिए बारूद डालना कम नहीं करेंगे। कांग्रेस के सहयोगी दल यह आग बुझने देंगे, ऐसा नहीं लगता।

भारतीय जनता पार्टी 'राम' नाम के इस राजनीतिक मर्म को भली-भाँति समझ गई है। इसीलिए भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अपनी बैठक में सोनिया गाँधी से माँग की है कि यूपीए सरकार में स्थापित द्रमुक मंत्रियों को बर्खास्त किया जाए। भाजपा जानती है कि यह आसान काम नहीं है। करुणानिधि चाहते हैं कि 'सेतुसमुद्रम' प्रोजेक्ट शीघ्र पूरा किया जाए। कांग्रेस की इच्छा 'सेतुसमुद्रम' प्रोजेक्ट के विकल्पों की समीक्षा करना भी है, जो निश्चित ही लंबी प्रक्रिया होगी।

कांग्रेस के लिए 'राम' का नाम उत्तर भारत की राजनीति में संवेदनशील विषय है। उसे तो फूँक-फूँककर कदम बढ़ाना होंगे, क्योंकि गुजरात के चुनाव के बाद अगले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के चुनाव सामने हैं। जाने-अनजाने भाजपा के हाथ में एक ऐसा मुद्दा आ गया है जिसे वह लंबे समय तक जिंदा रखना चाहेगी। रामसेतु के शपथ-पत्र से निकला यह काँटा कांग्रेस को चैन नहीं लेने देगा...।

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