मानो या न मानो
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मधुसूदन आनंद जब से मैंने यह खबर पढ़ी है कि ज्यादा देर तक बैठे रहना सेहत के लिए खतरनाक है और इससे मौत भी हो सकती है, मैं बेहद चिंतित हूँ। खबर में बताया गया है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप रोजाना कसरत करते हैं या नियमित घूमने जाते हैं। अगर आप अपने घर में, ऑफिस में, स्कूल में, कार में या फिर टीवी और कम्प्यूटर के सामने घंटों एक साथ बैठे रहते हैं तो समझ लीजिए कि खतरा आप पर मँडरा रहा है। '
ब्रिटिश जनरल ऑफ स्पोर्ट्स एंड हैल्थ साइंसेज' में छपे एक लेख के अनुसार यदि कोई आदमी चार घंटे एक साथ टिककर बैठा रहे तो उसका शरीर खतरनाक संकेत भेजने लगता है। शरीर में जो जीन ग्लूकोज और फैट (वसा) की मात्रा को जरूरी स्तर पर बनाए रखने का काम करते हैं, वे काम करना बंद कर देते हैं। देर तक बैठकर काम करने वालों को मोटापा ही नहीं, हार्ट अटैक भी हो सकता है और वे मर भी सकते हैं।
मैं चिंतित इसलिए हूँ कि मैं सारी जिंदगी बैठा ही रहा हूँ। मोटापा और मधुमेह है। बाईपास सर्जरी हो चुकी है। इस उम्र में मैं कोई दौड़-धूप वाला काम नहीं कर सकता। मैं ऐसा कोई अकेला आदमी नहीं हूँ। लाखों ऐसे लोग हैं जो घंटों किताब पढ़ते रहते हैं, टीवी देखते हैं या कम्प्यूटर पर काम करते हैं। आज के आधुनिक जीवन में आदमी बैठे-बैठे अपनी रोजी-रोटी कमाता है। अगर आप कम्प्यूटर के आगे बैठे किसी आदमी को काम करते देखें तो लगेगा जैसे एक मशीन दूसरी मशीन पर बैठी काम कर रही हो। कम्प्यूटर रखने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती। इस बात का फायदा उठाकर अब उस पर काम करने वाले आदमी के लिए बैठने की जगह भी कम कर दी गई है। मुंडी सीधी किए स्क्रीन पर नजर गड़ाए रहो! हाथ-पैर फैलाने की जगह नहीं होती। खुलकर हँसने के लिए भी जितनी जगह चाहिए वह आज के 'वर्क-स्टेशनों' पर कहाँ होती है? बस बैठे रहो गंभीर मुद्रा में मशीन की तरह। टीवी पर कोई मूवी देखनी है तो निगाहें टिका कर रखनी पड़ती हैं। अब कोई टिककर बैठेगा नहीं तो निगाहें क्या खाक टिकाएगा। भारत में महानगरों के छोटे-छोटे घरों में आदमी देर-देर तक बैठा रहता है। जरा-सी जगह में खा, पका, सो और मौज कर। यही जीवन है प्यारे भाई! बैठा रह! दुकानदार जमकर गद्दी पर बैठा रहता है। अफसर दिनभर कुर्सी पर जमा रहता है और बैठे-बैठे घंटी बजाता रहता है। काउंटर पर बैठे कर्मचारियों को लगातार कई-कई घंटे बैठे-बैठे काम करना पड़ता है। लंबी दूरी की ट्रेनों में यात्री को घंटों बैठे रहना पड़ता है। हवाई जहाज का कप्तान और यात्री भी घंटों बैठे रहने के लिए अभिशप्त हैं। समुद्री जहाजों के कप्तान भी बैठकर ही काम करते हैं। भिखारी मंदिरों के बाहर बैठे-बैठे भीख माँगते हैं। हम जैसे निठल्ले छुट्टी के दिन कुर्सी पर बैठे-बैठे ही अपनी पत्नी या बच्चों से काम कराते रहते हैं। मशीनों ने आज आदमी को बैठा दिया है। मशीनें चलती रहती हैं, आदमी बैठा रहता है। जीवन में जो सहज श्रम था, वह खत्म होता जा रहा है। आज तो श्रम करने के लिए भी मशीनों का सहारा लिया जाने लगा है। जिम जाइए। वर्कआउट कीजिए। आधे घंटे की वॉक कर आइए। कैलोरी जलाइए। खाइए और जलाइए। जलिए और जलाइए।आधुनिक जीवन गतिशील है। वहाँ तेज रफ्तार है, तेज संचार है, तेजी से बढ़ने वाला उत्पादन है, तेज से तेज कम्प्यूटर हैं, लेकिन इन सबका इस्तेमाल करने वाला आदमी बैठा हुआ है। आधुनिक जीवन का यह अंतर्विरोध है कि हमारे ज्यादातर काम बैठे-बैठे ही होते हैं। हम इसके लिए विवश हैं। अक्सर हमारी बैठने की मुद्रा ऐसी होती है कि हमें गर्दन के दर्द, कमर के दर्द, रीढ़ की हड्डी में दोष और गठिया जैसे रोगों का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक तो काबिले बर्दाश्त है लेकिन ऐसे बैठे रहने से जो अंततः मौत का खतरा बताया जा रहा है, वह चिंतित करने वाला है।भारत में लोग घंटों एक मुद्रा में बैठकर साधना किया करते थे। विचारकों ने बैठे-बैठे नए-नए सत्यों का पता लगाया है, जबकि वैज्ञानिकों को घंटों किताबों में मगज मारना पड़ता है। भारत में संत लोग बैठे-बैठे प्रवचन करते थे और आज जगह-जगह धार्मिक गुरु इसी तरह के प्रवचन कर रहे हैं।
भारतीय जीवन में तो नहाना, खाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन माँजना, पूजा-पाठ करना, कीर्तन करना सब बैठकर किया जाता था लेकिन पहले आदमी मशीनों का गुलाम नहीं हुआ था, अतः इस तरह के खतरे पेश नहीं आते थे। हमारे उठने-बैठने, खाने-पीने, सोने आदि को आधुनिक जीवन के दबाव और सुविधाएँ दोनों ने प्रभावित किया है। सुविधाओं ने हमें तात्कालिक आराम दिया है तो आधुनिक जीवन के ये रोग भी दिए हैं। इसलिए सही कहना यह होगा कि बैठना अपने आपमें रोगों को निमंत्रण देना नहीं है बल्कि आज जिस तरह हम बैठते हैं, उससे रोग होते हैं।जरा सोचिए कि दिल्ली में भीषण गर्मी के दिनों में एसी चलाकर हम क्या करते हैं? या तो पढ़ते हैं या टीवी देखते हैं या कम्प्यूटर पर बेकार का काम करते हैं। या फिर सो जाते हैं। हमारा मन प्रायः मनोरंजन में लगता है। यह हमारे जीवन में कुछ हद तक शामिल हो गया है और महानगरों में हम इसके आदी हो गए हैं, जहाँ हवा साफ नहीं है और हम प्रायः अकेले हैं। समुद्री जहाजों के कप्तान भी बैठकर ही काम करते हैं। भिखारी मंदिरों के बाहर बैठे-बैठे भीख माँगते हैं। हम जैसे निठल्ले छुट्टी के दिन कुर्सी पर बैठे-बैठे ही अपनी पत्नी या बच्चों से काम कराते रहते हैं। मशीनों ने आज आदमी को बैठा दिया है।
इसलिए इस लेख के अंत तक आते-आते मुझे बैठने के पक्ष में कुछ तर्क मिल गए हैं। बैठा हुआ आदमी अपनी पत्नी का शोषण कर सकता है, जबकि खड़े हुए आदमी को पत्नी के किसी भी छोटे-मोटे काम के लिए तैयार रहना पड़ता है। मसलन, तुम खड़े तो हो पानी खुद ही ले लो और मुझे भी पिला दो। बैठे हुए आदमी से बच्चे डरते हैं जबकि उसे खड़ा देखकर उनका साहस लौट आता है कि पापा जाने वाले हैं, चलते हैं बाहर खेलने। आप जितनी देर एक साथ बैठ सकते हैं, उतनी देर खड़े नहीं हो सकते। अगर आप अपने घर में भी उतनी देर खड़े होने लगें, जितनी देर एक साथ बैठते हैं तो घरवाले कहेंगे : बाऊजी बावले हो गए हैं और खुदा न खास्ता आप घर की बालकनी या बरामदे में एक ही मुद्रा में देर तक खड़े रहें तो लोग फुसफुसाने लगेंगे... भाई बाऊजी को बरेली, आगरा या शाहदरा ले जाओ। तो बैठे रहने में आराम है और खड़े रहने में खतरा है। इसलिए बीमारियों का खतरा उठाकर भी मैं तो बैठा रहना पसंद करता हूँ। बैठकर मुझ जैसा आदमी और कुछ नहीं तो निठल्ला चिंतन तो कर ही सकता है। आप देर तक ऐसे ही बैठे रहें तो आपको पता चलता है कि अरे मेरे घर में तो मक्खी, मच्छर, छिपकली, कॉकरोच, चूहे भी रहते हैं कि अरे हाँ ड्राइंग रूम से बाहर, चिड़िया, कबूरतर और कौए भी उड़ते दिखते हैं। अरे! मेरे घर के सामने दिख रहा यह पेड़ कितना सुंदर है। अरे भीतर और बाहर कैसा सुंदर जीवन है, जो दिखाई नहीं देता। बैठे हुए आदमी को खाने के लिए नए-नए व्यंजन चाहिए, जबकि खड़े हुए आदमी को तो खाने की भी फुर्सत नहीं होती। बैठा हुआ आदमी मेरी तरह पड़ जाता है, जबकि खड़ा हुआ आदमी दूसरों की नजरों में गड़ जाता है। पड़ने में आराम है, मगर गड़ने में खतरा है। भारतीय जीवन में बैठना और दूसरों को भी बैठ जाने के लिए मजबूर करना ही चलन में रहा है। नेता अपने प्रतिद्वंद्वी से कहता है-बैठ जा। अफसर कहता है कि मैं तेरी फाइल पर अपनी चिड़िया बैठाता हूँ, तू झटपट अपनी जेब में मेरे लिए जगह बना। आप ऐसा न करें तो वह आपकी फाइल पर बैठ जाता है। सरकार को जब कुछ नहीं सूझता तो वह जाँच कमीशन बैठा देती है। बड़े-बड़े देश दूसरे देशों को बैठाने में लगे रहते हैं और कामचोर कर्मचारी सरकार का बठ्ठा बैठाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते। आदमी थक-हारकर बैठ जाता है और बैठने की प्यारे भाई ऐसी महिमा है कि एयरपोर्ट का आधुनिक रडार भी कभी-कभी अपने आप बैठ जाता है। बैठा हुआ आदमी ज्यादा से ज्यादा हार्ट अटैक से मरेगा, लेकिन सावधान की मुद्रा में देर तक खड़ा आदमी तो जीते-जागते स्टैच्यू हो जाता है। (नईदुनिया)