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Written By जयदीप कर्णिक
Last Updated :जयदीप कर्णिक , सोमवार, 13 अक्टूबर 2014 (16:40 IST)

शुभकामनाएँ उत्तरप्रदेश...!!!

शुभकामनाएँ उत्तरप्रदेश...!!! -
मायावती के हाथी कि ये मस्त चाल देखकर कुछ लोग तो चौंके हैं, सब नहीं। जानकारों को पता था कि उत्तरप्रदेश का ऊँट, हाथी की करवट बैठेगा। पर करवट इतनी भारी होगी कि साइकिल, पंजे और कमल तीनों सूरमाओं को रौंद देगी, ये किसी ने भी नहीं सोचा था।

देश की राजनीति में उत्तरप्रदेश का स्थान शुरू से अहम रहा है। जब तक अन्य राज्यों का क्षेत्रवाद हावी नहीं हुआ था, तब तक तो उत्तरप्रदेश को दिल्ली की सीढ़ी ही माना जाता था। हालाँकि दूसरे राज्य और क्षेत्रीय दल भी अब समीकरण बनाने और बिगाड़ने लगे हैं, पर उत्तरप्रदेश की अहमियत कम नहीं हुई। दिल्ली के लिए सीटों की सबसे बड़ी फसल अब भी यहीं उगती है।

तो नेताजी यानी मुलायमसिंह के खासमखास और हाई प्रोफाइल महासचिव अमरसिंह और इलाहबाद के अमिताभ बच्चन भी समाजवादी पार्टी की नैया पार नहीं लगा पाए। 'उत्तरप्रदेश में दम है, क्योंकि जुर्म यहाँ कम है', का नारा उत्तरप्रदेश के आमजन को लुभा नहीं पाया।

दिलचस्प तथ्य यह है कि 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' का नारा देने वाली पार्टी को यह समझते देर नहीं लगी कि केवल पिछड़ों के दम पर लंबी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। ब्राम्हण विरोध भी सत्ता तक तो पहुँचा सकता है, पर बहुमत नहीं दिलवा सकता। इसीलिए बहुमत कि तलाश में बहुत सावधानी से पत्ते बिछाए गए। एक-एक बाजी बहुत फूँक-फूँक कर खेली गई। मीडिया और राजनैतिक विश्लेषक अपने कयास लगाते रहे और मायावती अपने पिछले राजनीतिक सबक को ध्यान में रख कर सोशल इंजीनियरिंग में लगी रहीं। इसीलिए बहुत सूझ-बूझ से उन्होंने इस बार ब्राम्हणों का विरोध करने कि बजाय सवर्णों को टिकट दिए, मुसलमानों को भी साथ जोड़ा और पुराने नारों को बदलते हुए नया नारा दिया- 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा, विष्णु, महेश है'। हाथी कि सूँड़ में लिपटकर चुनावी दंगल से बाहर हुए नेता अपने जख्मों को गिनने में भी अभी थोड़ा और वक्त लेंगे। सहलाना तो दूर की बात है।

राहुल गाँधी को अब मदर्स डे पर अपनी माँ से अतिरिक्त दुलार की आवश्यकता होगी। इस पूरी उठापटक की गहराई तक पहुँचने से पहले उन्हें अभी कुछ और धूल फाँकनी होगी, तब उन्हें भारत की असली तस्वीर देखने में आसानी होगी। उन्होंने कोशिश तो अच्छी की, लेकिन उप्र के गाँवों में वो तपती दुपहरी में इतना भी नहीं घूमे हैं कि उनके चॉकलेटी चेहरे पर मासूमियत के स्थान पर परिपक्वता और दूरंदेशी का भाव आ जाए। अभी तो उनके बाल धूप में ही सफेद हुए हैं, अनुभव की भट्टी में उनकी पकाई अभी शेष है। लेकिन इस बार का सबक और पारिवारिक विरासत में मिली नैसर्गिक जिद को अगर वे सही दिशा में ले गए तो उनके लिए लखनऊ वाली दिल्ली बहुत दूर भी नहीं। हाँ, थोड़ी मदद और सीख उनको अपनी बहन से भी लेनी होगी।

तो अब मायावती की माया उत्तरप्रदेश पर राज करेगी। ये वही मायावती हैं जो ताजमहल जमीन घोटाले के लिए जानी जाती हैं। ये वही मायावती हैं जो अपने ही मसीहा और पथ प्रदर्शक को उलाँघ कर आगे चली गईं। वाकई गुरु गुड़ और चेली शकर हो गई। ये वही मायावती हैं जिन्होंने अपने जन्मदिन का जश्न एक करोड़ रुपए खर्च करके मनाया। वो अफसर जिन्होंने पहले इनके राज में अपमान के खूब घूँट पिए हैं, बेचारे अभी से थर-थर काँप रहे होंगे।

क्या उप्र में बसपा की इस जीत को एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति माना जाना चाहिए? क्या ये वाकई अगड़ों पर पिछड़ों की जीत है? क्या ये वाकई उस स्वर्णयुग का सूत्रपात है, जहाँ जात-पाँत के भेदभाव को भुलाकर समग्र सामाजिक विकास की नींव रखी जाएगी? क्या ये वो अस्त्र है जो बरसों से जातीयता की बेड़ियों में जकड़े दलितों और शोषितों की बेड़ियाँ काट पाएगा? या ये केवल एक गुट को दूसरे के खिलाफ लामबंद भर कर देगा? क्या ये ऐतिहासिक बहुमत उत्तरप्रदेश के विकास की नई इबारत लिख पाएगा? या फिर सारा पैसा अंबेडकर और कांशीराम की मूर्तियाँ लगवाने में ही खर्च हो जाएगा? क्या उत्तरप्रदेश के उद्योगों का इस तरह विकास होगा कि वहाँ की प्रतिभाओं को वहीं बेहतर अवसर उपलब्ध हो जाएँ और उनको बाहर जाकर अपमानित नहीं होना पड़ेगा? कोई ये बयान नहीं दे पाएगा की उत्तरप्रदेश के लोग उनके राज्यों के लिए सिरदर्द हैं। या फिर मायावती केवल मुलायम सरकार के घोटाले उजागर करने और मूल समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने में लग जाएँगी? क्या उत्तरप्रदेश के किसान खुशहाल हो पाएँगे या उन्हें दुनाली और फिरौती की राह पकड़नी पड़ेगी...?

सवाल तो कई हैं पर उम्मीद करते हैं कि भारत के सबसे बड़े राज्य में लोकतंत्र की लंबी कवायद के बाद बहुजन समाज का ये 'लोकतिलक', केवल एक महिला की महत्वाकांक्षा की विजय साबित न होकर सचमुच पिछड़े और दलित वर्ग के लिए खुशहाली का पैगाम लाए...और उत्तरप्रदेश केवल अमिताभ के विज्ञापनों में नहीं बल्कि सचमुच मुस्कराए। शुभकामनाएँ उत्तरप्रदेश....!!