मंदी की मुश्किल और पहली नौकरी
-
लोकेश सोलंकी मंदी की सड़क पर पहली नौकरी का सफर मुश्किलों भरा साबित हो रहा है। अब तक प्रोफेशनल कोर्सेस में एडमिशन लेने के साथ ही कैंपस प्लेसमेंट के प्रति आश्वस्त हो जाने वाले विद्यार्थी मौजूदा दौर में अनिश्चितता से जूझ रहे हैं।आईआईएम जैसे शीर्षस्थ संस्थान का प्लेसमेंट भी मंदी से अप्रभावित नहीं रह सका है। ताजा दौर में भले ही कैंपस प्लेसमेंट मुश्किलों से भर गया है लेकिन कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के साथ ही रोजगार पाने की संभावना खत्म नहीं हुई है। मुश्किल दौर के साथ ही कैंपस प्लेसमेंट के तौर तरीके बदल रहे हैं। ताजा हालात में पहली नौकरी की दिशा में आगे बढ़ते हुए कुछ बातों पर गौर करना जरूरी हो जाता है। तकनीकी ज्ञान पर जोरछँटनी करने में लगी कंपनियाँ नई भर्तियों में परफेक्ट उम्मीदवार को ही चुनना चाहती है। दो साल पहले तक थोकबंद रिक्रूटमेंट करने वाली कंपनियों में अच्छी कम्युनिकेशन और सॉफ्ट स्किल के आधार पर सिलेक्शन हो जाता था। अब मामला बिल्कुल अलग है। ज्यादातर कंपनियाँ कैंपस प्लेसमेंट के दौरान पहले की तरह ग्रुप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू की जगह टेक्निकल इंटरव्यू के लंबे दौर आयोजित कर रही है। लिहाजा इंजीनियरिंग छात्रों के हिसाब से अच्छे प्लेसमेंट के तगड़ा टेक्निकल नॉलेज होना जरूरी हो गया है और मैनेजमेंट के छात्रों के लिए अच्छे प्रोजेक्ट, एकेडमिक रिकॉर्ड और समर ट्रेनिंग का महत्व बढ़ गया है।समय और कॉम्पिटिशन बढ़ा हैनेस्कॉम के द्वारा हाल ही में दिए गए निर्देशों के बाद कंपनियाँ कैंपस प्लेसमेंट के लिए एक साल देरी से आएँगी। यादि अब आखिरी सेमेस्टर में ही प्लेसमेंट प्रक्रिया में भाग लिया जा सकेगा। समय सीमा में हुई बढ़ोतरी प्लेसमेंट की तैयारी के लिए छात्रों को ज्यादा समय तो दे रही है साथ ही प्रतीक्षा भी बढ़ा रही है। लंबी तैयारी के बाद भी नौकरियों की संख्या सीमित है। इस लिहाज से प्लेसमेंट पाने के लिए जरूरी हो जाता है कि छात्र प्रोफेशनल कोर्स में एडमिशन के साथ प्लेसमेंट के लिए खुद को निखारने में जुट जाएँ।