गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By ND

इक्कीसवीं सदी में सहशिक्षा पर रोक!

इक्कीसवीं सदी में सहशिक्षा पर रोक! -
-शाहनवाज आलम
WDWD
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने अपने एक निर्देश में बोर्ड से संबद्ध शहरी स्कूलों में सहशिक्षा पर रोक लगा दी है। हालाँकि उन गाँवों में जहाँ लड़कियों के स्कूल आठ किलोमीटर से अधिक दूर हैं, वहाँ सहशिक्षा की छूट दी है। सहशिक्षा पर से रोक नहीं हटाई गई तो भविष्य में इससे गंभीर संकट उत्पन्न हो सकते हैं।

गौरतलब है कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का सहशिक्षा के प्रति यह रवैया नया नहीं है। पहले भी इस तरह के फैसले होते रहे हैं। 1997 में जब उत्तरप्रदेश में भाजपा का शासन था, तब उसने भी ऐसा ही फरमान जारी कर सहशिक्षा पर रोक लगाई थी। लेकिन उस समय इसे संघ परिवार के सांस्कृतिक एजेंडे के बतौर ही देखा गया और यह उम्मीद जताई गई कि आने वाली गैर भाजपाई सरकारें इस संघी करतूत पर रोक लगा देंगी। लेकिन इस बार प्रदेश में एक महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद अगर बोर्ड ऐसे फैसले लेता है तो सरकार के नजरिए पर भी सवालिया निशान उठना लाजिमी है।

लड़कों को तो अच्छे स्कूलों में दाखिला मिल जाता है, लेकिन लड़कियों के स्कूलों की संख्या काफी कम होने या लड़कों के स्कूलों की अपेक्षा कमतर होने के चलते लड़कियाँ बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाती हैं
  लड़कों को तो अच्छे स्कूलों में दाखिला मिल जाता है, लेकिन लड़कियों के स्कूलों की संख्या काफी कम होने या लड़कों के स्कूलों की अपेक्षा कमतर होने के चलते लड़कियाँ बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाती हैं।      


बहरहाल इस पूरे फैसले का दुखद पहलू यह तर्क है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो सामाजिक संकट उत्पन्न हो जाएगा। यहाँ यह समझना मुश्किल नहीं है कि माध्यमिक बोर्ड यहाँ आए दिन होने वाली छेड़खानी और बलात्कार जैसी घटनाओं को गंभीर संकट मान रहा है, जो बिलकुल ठीक भी है। लेकिन बोर्ड जिस तरह इस समस्या के इलाज के लिए सहशिक्षा पर प्रतिबंध लगा रहा है, उससे यह समस्या हल नहीं हो सकती बल्कि बीमारी और बढ़गी ही, क्योंकि छेड़खानी और बलात्कार जैसी घटनाएँ अधिकतर इस वजह से ही होती हैं कि हमारे यहाँ लड़के-लड़कियों के बीच स्वस्थ और स्वाभाविक संबंध नहीं हैं, जिसके चलते वे एक-दूसरे को सीधे जानने-समझने की बजाय अप्रत्यक्ष माध्यमों जैसे फिल्मों या सुनी-सुनाई बातों से समझते हैं।

एक दूसरे नजरिए से भी देखना चाहिए कि जब आप लड़के और लड़कियों की सहशिक्षा पर रोक लगाते हैं तो इसका अप्रत्यक्ष नुकसान लड़कियों को ही उठाना पड़ता है क्योंकि इस रोक के चलते एक ही परिवार के भाई-बहन अलग-अलग स्कूलों में पढ़ने को मजबूर होते हैं। इसके चलते लड़कों को तो अच्छे स्कूलों में दाखिला मिल जाता है लेकिन लड़कियों के स्कूलों की संख्या काफी कम होने या लड़कों के स्कूलों की अपेक्षा कमतर होने के चलते लड़कियाँ बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाती हैं।

अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि यदि बहन लड़कियों के स्कूल में अच्छे नंबर पाती है और भाई लड़कों के स्कूल में दूसरों से कम नंबर पाता है तो भी भाई को ही बहन की अपेक्षा पढ़ाकू और तेज मानकर उसे ही आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया जाता है। लड़कियों की प्रतिभा को लड़कों के बरअक्स ही मापने की हमारे यहाँ परंपरा है। इस प्रतिबंध से यह प्रवृत्ति और बढ़ेगी ही।