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Written By ND

'एम' शिखर पर

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में करियर

''एम'' शिखर पर -
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-प्रो. सतीश पुरोहित
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिमांड पिछले वर्षों में बहुत बढ़ी है और आने वाले वर्षों में और बढ़ने की संभावना है। पिछले वर्ष सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के मुकाबले कोर इंजीनियरिंग ( मेन्यूफेक्चिरिंग, ऑटोमोबाइल आदि) क्षेत्र में स्टूडेंट्स ने रुचि दिखाई है, इसका कारण इस क्षेत्र में मिलने वाला अच्छा पैकेज भी है।

जहाँ सॉफ्टवेयर के स्टूडेंट्स को तीन लाख रु. वार्षिक का पैकेज मिल रहा है वहीं कोर इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स को पाँच से सात लाख तक के पैकेज मिल रहे हैं। खास बात यह है कि संभ्रांत परिवारों की लड़कियाँ भी अब मैकेनिकल इंजीनियरिंग को चॉइस के आधार पर चयन कर उसमें टॉप रेंकिंग प्राप्त कर रही हैं।

यंत्र-मंत्र-तंत्र, इन तीनों में यंत्र सार्वभौमिक व सर्वग्राह्य है। यंत्र से ही अभियांत्रिक एवं अभियांत्रिकी यानी इंजीनियरिंग बना है। इंजीनियरिंग का मूल तत्व ही मेकेनिकल या मशीन संबद्धता है। अतः मेकेनिकल इंजीनियरिंग को हमेशा ही स्व-रोजगारोन्मुख (एव्हरग्रीन) ब्रांच माना गया है।

जीवन के किसी भी कार्य या कला को एक बार पूरे तौर पर अगर समझ लिया जाए तो उस कला को 'कल' या कलपुर्जे में बदला जा सकता है। पहले मशीन को 'कल' और मशीनों के स्थान को 'कल-कारखाना' कहा जाता था। आज 'कल' जो अटकलें लगाई जा रही हैं वे तो चमत्कारी ही हैं।

आप मैकेनिकल कारनामों की कल्पना करें- जासूसी करने के लिए असली मच्छर जितना छोटा नकली मच्छर बनाना, छोटे गुब्बारेनुमा कारें, सिर्फ एक दिन में मशीनों से बड़ा पुल बनाना, मैग्नेटिक ट्रेन तेज रफ्तार की तैयार करना इत्यादि। व्यक्तिगत स्तर पर देखें- एक व्यक्ति की पूरी ड्रेस एयरकंडीशंड जिस तापमान पर चाहें, मशीन आपकी कंघी करे जिस स्टाइल में आप चाहें। मोजे एवं जूते पहनाने की मशीन, खाना बनाकर खिलाना, फिर ब्रश करना, यानी जो आप चाहें वैसी मशीन तैयार है।

मैकेनिकल विभाग के अंतर्गत आने वाले विषय हैं- रोबोटिक्स, ऑटोमोबाइल, प्रोसेसिंग इंस्ट्रूमेंट्स, ऑटोमेशन मेकेनिज्म, किसी भी मशीन को बनाने के लिए बेसिक विषय, स्पोर्ट्स, ज्वेलरी, डॉक्टर्स इंस्ट्रूमेंट्स, मिलिटरी अप्लीकेशंस, क्वालिटी टेस्टिंग, कम्प्यूटर की माइक्रोलिप बनाने की मशीनें इत्यादि, और भी ऐसी कितनी ही जरूरतें हैं, कहाँ रुकें?

मैकेनिकल इंजीनियरिंग बहुत ज्यादा विविध एवं क्रिएटिव है। हर स्तर पर है। इसीलिए इसमें रोजगार, कार्य, व्यवसाय, कंसल्टेंसी, सर्वे, रिसर्च, अकादमिक कार्य इत्यादि बहुत हैं। धीरे-धीरे अंतर्विभागीय (इंटर डिसीप्लीनरी) विषयों का भी समावेश हो रहा है।

कम्प्यूटर, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि विषय अंततोगत्वा साधन ही हैं- अंतिम मैकेनिकल प्रॉडक्ट के। मैकेनिकल विषयों में कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर बनाने से प्रॉडक्ट्स अच्छे, सुंदर, भरोसेमंद तथा कम निर्माण लागत में तैयार हो रहे हैं।

मैकेनिकल विषयों में समाहित छोटे-छोटे पाँच 'एम' हैं। मेन, मशीन, मटेरियल, मनी, मार्केट। इन पाँच मूल मैकेनिकल विषयों को मैकेनिकल मैनेजमेंट के अंतर्गत पढ़ाया जाता है। अब यह माना जा रहा है कि (मेन) श्रमिक शनैः-शनैः श्रम कम करें एवं बुद्धिबल का प्रयोग ज्यादा करें, कम्प्यूटरीकृत मशीनों को मॉनीटर करें, क्वालिटी पर पैनी निगाहें रखें तथा कार्य का आनंद लें।

मशीनें उन्नत हों, मटेरियल चुनिंदा हों एवं अनुकूल हों। (मनी) पैसों का सदुपयोग हो। सब अच्छा हो तो ग्लोबल मार्केट में हमारी वस्तुओं की माँग आपूर्ति व निर्माण हमेशा बढ़ता रहेगा ही। ये चुनौतियाँ एक राष्ट्रीय धर्म है। हमें मैकेनिकली धार्मिक होना चाहिए। लुधियाना, राजकोट, बटाला, सूरत, कोयम्बतूर, पुणे, बंबई, बंगलोर इत्यादि खूबसूरत शहरों की तरह अन्य सभी स्थलों पर मेकेनिकल हार्डवेयर एवं मैकेनिकल सॉफ्टवेयर में धूम मची है।

समयोचित माँग है कि बेसिक विषयों को पढ़ने के बाद अंतर्विभागीय (इंटर डिसीप्लीनरी) कार्यक्षेत्रों का उचित समन्वय हो। यह अवश्य है कि योग्यता के मानदंड कठोर हो रहे हैं। मैकेनिकल विषयों के अध्यापन में संसाधनों को और बढ़ाकर और भी नए कार्य क्षेत्रों में विस्तार किया जा सकता है।

(लेखक - जीएसआईटीएस, इंदौर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)