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Written By ND

मन के मालिक

मन के मालिक -
- अनुराग तागड़े

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दोस्तो, मन के मालिक हम सभी हैं। लेकि‍न जिसने इससे मालिक की तरह अच्छे से काम करवा लिया और मेहनत करने के लिए प्रेरित कर लिया समझो उससे सफलता दूर नहीं जा सकती इसलिए आप सही मायने में मन के मालिक हैं तो उसे मजबूत कीजिए और उसे सकारात्मक विचारों से भर दें।

हमारे मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। इन विचारों में हम स्वयं के साथ दुनिया को भी जोड़ लेते हैं। इन विचारों का उम्र से काफी गहरा रिश्ता होता है। युवा साथी के मन में विचारों का मेला लगा रहता है जिसमें करियर से लेकर गर्लफ्रेंड और न जाने क्या-क्या होता है। सही मायने में विचारों की इस भीड़ में युवा साथी जानते हैं कि कौन-से विचार परिपक्व हैं और कौन-से कच्चे हैं।

बावजूद इसके, वे सभी प्रकार के विचारों को मन में आने देते हैं। मन के मालिक हैं इस कारण सभी प्रकार के विचारों की भीड़ मन के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती है। करियर की बात सामने आते ही लाखों के पैकेज की नौकरी और ऐशो-आराम की जिंदगी के विचार आना लाजमी है। परिवार की बात सामने आते ही सभी सदस्यों की खुशियाँ हमारे विचारों में तैरने लगती हैं।

दोस्तो, क्या कभी आपने इन विचारों को समझने का प्रयत्न किया है या कभी इस बात को जानने का प्रयत्न किया है कि विचार हमें क्या संदेश देना चाहते हैं? विचारों में निहित स्वयं सही मायने में वह होता है, जो आप बनना चाहते हैं या जो मंजिल आप पाना चाहते हैं। विचार उन्हीं से प्रेरित रहते हैं। यही कारण होता है कि इन विचारों का केंद्र आप ही रहते हैं। विचारों के प्रवाह को स्वयं पर केंद्रित कर देखिए क्या परिणाम आते हैं।

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जब आप ऐसा करेंगे तब सही मायने में अपने आपको पहचान पाएँगे, क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि व्यक्ति अपने आपको सबसे बेहतर जानता है। हम भले ही लाखों के पैकेज का विचार मन में धारण कर बैठे हों, पर क्या हमारी इतनी काबिलियत है? हम कोई कोर्स करने जा रहे हैं, पर क्या हमारा उतना स्तर है? जिंदगी में हमने अभी करियर की ठीक तरह से शुरुआत भी नहीं की है, पर गर्लफ्रेंड को लेकर सपने देख रहे हैं, क्या यह ठीक है?

हम कुछ भी कमा नहीं रहे हैं, पर शौक पाल रखे हैं, क्या यह ठीक है? दरअसल, युवाओं को यदि कोई अच्छी बात बताता है तब वह मन ही मन कह उठता है कि हमें ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। हमें सबकुछ पता है कि क्या करना है। युवाओं की इस प्रवृत्ति को क्षणिक आवेग कहा जा सकता है और यह बात भी उतनी ही सही है कि जब वह युवा साथी अकेले में अपने मन में विचारपूर्वक इन बातों को सोचता है तब स्वयं ही उनसे सहमत हो जाता है भले ही युवा उम्र उसे मानने को तैयार नहीं होती।

दोस्तो, स्वयं के बारे में विचार करना तो गलत नहीं भले ही उसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं से जाना जाए और अगर आज की भाषा में बात करें तब स्वयं का स्वॉट एनालिसिस करने में आखिर बुराई भी क्या है? हम स्वयं यह जान पाएँगे कि चाहे किसी कोर्स में एडमिशन लेना हो या किसी जॉब के लिए इंटरव्यू क्यों न देना हो अगर हम स्वयं की नजरों में हमारा स्वॉट एनालिसिस पॉजिटिव है तब सही मायने में आशा बाँधी जा सकती है और अगर निगेटिव है तब नए सिरे से तैयारी करने के लिए भी मन को पक्का करने की हिम्मत होनी चाहिए।