शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. करियर
  4. »
  5. गुरु-मंत्र
  6. गुरूमंत्र : थिंक पॉजिटिव, फील पॉजिटिव
Written By ND

गुरूमंत्र : थिंक पॉजिटिव, फील पॉजिटिव

विवेक कुमार

Think Positive Feel Positive | गुरूमंत्र : थिंक पॉजिटिव, फील पॉजिटिव
ND
आपने कितनी बार अपने आपसे ही यह कहा होगा 'जिस तरह से मैं योजना बनाता हूं, वह कभी काम नहीं आती', 'मैं कभी डेड लाइन पर काम पूरा नहीं कर सकूंगा', 'मैं हमेशा काम बिगाड़ देता हूं'। इस किस्म की बातें जो आप अपने अंदर ही अंदर करते हैं उनसे ज्यादा कोई दूसरी चीज आपके जीवन को दिशा नहीं देती। आपको पसंद हो या न हो, तथ्य यह है कि आप अपनी जीवन यात्रा अपने विचारों के अनुसार ही पूरी करते हैं। अगर आपके विचारों में उदासी और कष्ट भरे हैं तो आप उसी तरफ जा रहे हैं क्योंकि नकारात्मक शब्द आत्मविश्वास को ध्वस्त कर देता है। इससे न हौसला बढ़ता है और न मदद मिलती है।

अगर आप अच्छा महसूस करना चाहते हैं तो अच्छा सोचें भी। इस तरह से-

अपने विचारों को दुरुस्त करें
अपने नए थैरेपिस्ट से सुमन ने पहला वाक्या यह कहा- 'मैं जानती हूं आप मेरी मदद नहीं कर सकते डॉक्टर, मैं पूरी तरह से टूट चुकी हूं। मैं कार्यस्थल पर हमेशा गलतियां करती रहती हूं और मुझे यकीन है कि नौकरी से निकाल दी जाऊंगी। कल ही मेरे बॉस ने बताया कि मेरा ट्रांसफर हो गया है। उनके अनुसार यह प्रमोशन है, लेकिन अगर मैं अच्छा काम कर रही थी तो फिर ट्रांसफर क्यों किया?'

आहिस्ता-आहिस्ता सुमन की कहानी खुलने लगी। उसने दो साल पहले एमबीए किया था और उसे अच्छा वेतन मिल रहा था। जाहिर है यह असफलता नहीं थी। पहली मीटिंग के बाद सुमन के थैरेपिस्ट ने उससे कहा कि वह अपने विचारों को लिखे, विशेषकर रात में जब उसे सोने में कठिनाई हो रही हो। अगली मीटिंग में सुमन की सूची में शामिल था, 'मैं वास्तव में स्मार्ट नहीं हूं। मैं तुक्के में ही आगे बढ़ गई हूं। कल तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी क्योंकि अब से पहले मैंने कोई मीटिंग चेयर नहीं की है। आज सुबह बॉस ने मुझे बहुत गुस्से में देखा, मैंने क्या कर दिया था?'

सुमन ने स्वीकार किया, 'अकेले एक दिन में मैंने 26 नकारात्मक विचार लिखे। इसलिए आश्चर्य नहीं है कि मैं हमेशा थकान व डिप्रेशन महसूस करती हूं।' सुमन के डर और अंदेशों को जब जोर से पढ़ा गया तब उसे एहसास हुआ कि वह काल्पनिक हादसों पर कितनी अधिक ऊर्जा बर्बाद कर रही है। अगर आप उदास महसूस कर रहे हैं तो निश्चित रूप से आप अपने तक नकारात्मक संदेश पहुंचा रहे हैं। आपके सिर में जो शब्द उठ रहे हैं, उन्हें सुनो। उन्हें जोर से बोलो या लिख लो ताकि नकारात्मक विचारों को पक़डने में मदद मिले।

प्रैक्टिस करने से विचारों को बेहतर बनाने में आसानी हो जाती है। जब आप सड़क पर चल या ड्राइव कर रहे हों तो अपने खामोश ब्रॉडकास्ट को आप सुन सकते हैं। जल्द ही आपके विचार आपके इशारे पर चलने लगेंगे और आप अपने विचारों के अनुसार चलने से बच जाएंगे। जब ऐसा होने लगेगा तो आपकी भावनाएं और एक्शन भी बदल जाएंगे।

घातक शब्दों को निकालें
फरहाद की अंतरात्मा उससे कहती रहती थी कि वह केवल एक सचिव है। महेश को याद दिलाया जाता था कि वह बस एक सेल्समैन है। केवल या बस जैसे शब्दों से ये दोनों व्यक्ति अपने जॉब्स को हीन बना रहे थे। नतीजतन अपने आपको भी। इसलिए नकारात्मक शब्दों को जब आप अपने जीवन से निकाल देते हैं तो उस हानि से भी बच जाते हैं जो आप अपने ऊपर कर रहे हैं।

फरहाद और महेश के लिए दोषी शब्द 'केवल' और 'बस' थे। जब एक बार इन शब्दों को निकाल दिया जाए तो यह कहने में कुछ भी नुकसान नहीं है- 'मैं एक सेल्समैन हूं' या 'मैं एक सचिव हूं'। ये दोनों वाक्य सकारात्मक फॉलोअप के लिए द्वार खोल देते हैं जैसे- 'मैं तरक्की की राह पर हूं'।

विचार पर विराम लगाएं
जैसे ही कोई नकारात्मक संदेश आए उसे स्टॉप कहकर शॉर्ट सर्किट कर दें। 'मैं क्या करूंगा अगर...?' स्टॉप! थ्योरी की दृष्टि से स्टॉपिंग या रोकना एक साधारण तकनीक है। व्यवहार में यह इतनी आसान नहीं है जितनी प्रतीत होती है। रोकने के लिए आपको काफी हिम्मत दिखानी पड़ती है। जब आदेश दें तो अपनी आवाज को ऊंचा कर लें। कल्पना करें कि आप अपने अंतरमन के डर को दफन कर रहे हैं।

जब व्यक्ति डिप्रेशन के मूड में होता है तो उसे हर चीज खराब लगती है। इसलिए जब एक बार आप नकारात्मक विचारों पर स्टॉप कहकर विराम लगा दें तो उनकी जगह सकारात्मक विचार विकसित करें। इस प्रक्रिया को एक व्यक्ति ने इस प्रकार बताया, 'हर रात मैं अजीब किस्म के विचारों के साथ जागता रहता- क्या मैं अपने बच्चों पर बहुत कठोर हूं? क्या मैं अपने क्लाइंट को कॉल करना भूल गया? जब इस किस्म के विचारों से मैं बहुत परेशान हो गया तो मैंने उस समय को याद किया जब मैं अपनी बेटी के साथ जू में था। चिम्पांजी को देखकर मेरी बेटी कितनी खुश थी। उसका हंसता हुआ चेहरा देखकर मुझे नींद आ गई।'

दरअसल, जब लोग अलग तरह से सोचते हैं तो वे न सिर्फ अलग तरह से महसूस करते हैं बल्कि उनके एक्शन भी अलग तरह के होते हैं। दूसरे शब्दों में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि अपने विचारों को किस तरह नियंत्रित करते हैं। मिल्टन ने कहा- 'मन स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग कर सकता है'। विकल्प का चयन आपका है।