काश... मेरे होते : एक और ‘डर’
निर्माता : श्रवण फिल्म इंटरनेशनल निर्देशक : बी.एच. तरूण कुमार गीतकार : समीर संगीतकार : संजीव दर्शन कलाकार : कुमार साहिल, स्नेहा उल्लाल, सना खान, राजेश खन्ना, जॉनी लीवरवर्षों पहले यश चोपड़ा ने सुपरहिट फिल्म ‘डर’ निर्देशित की थी, जिसके जरिए शाहरुख खान सुपरस्टार बने। ‘डर’ ने कई फिल्मकारों को प्रेरित किया और कई फिल्में डर जैसी देखने को मिलीं। ‘काश...मेरे होते’ भी ‘डर’ से ही प्रेरित है। फर्क इतना है कि ‘डर’ में पागल प्रेमी की भूमिका पुरुष ने निभाई थी, यहाँ पर स्त्री ने। ‘काश...मेरे होते’ देखते समय 70 और 80 के दशक की मसाला फिल्में याद आती हैं, जिनमें लॉजिक को साइड में रख दिया जाता था और हर दस मिनट में एक गाना टपक पड़ता था। कॉमेडी का एक अलग से ट्रेक चलता था, जिसका मुख्य कहानी से कोई संबंध नहीं होता था। ‘काश... मेरे होते’ में भी वही सब है और आज के दौर में ये फिल्म आउटडेटेट लगती है।
कृष (कुमार साहिल) एक फैशन फोटोग्राफर है और राधिका (स्नेह उल्लाल) को चाहता है। कृष को मॉरीशस में फोटो शूट करने का काम मिलता है जहाँ उसकी मुलाकात पिया (सना खान) से होती है। पिया उसे देखते ही पागलों की भाँति चाहने लगती है। कृष मॉरीशस में रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर (राजेश खन्ना) का बंगला किराए पर लेता है। पिया इसी आर्मी ऑफिसर की बेटी है और उसे कृष के पीछे पड़ने का अवसर मिल जाता है। वह उसके और कृष की राह में आने वाले हर व्यक्ति को मार डालती है। फिल्म के निर्देशक बी.एच. तरुण कुमार प्रसिद्ध कोरियोग्राफर रह चुके हैं। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री के कई बेहतरीन लोगों के साथ काम किया है। वर्षों का अनुभव उनके पास है। पता नहीं उन्होंने इतनी घिसी-पिटी कहानी पर फिल्म बनाना कैसे मंजूर कर लिया। निर्देशन की तरह स्क्रिप्ट भी बेदम है। संजीव-दर्शन द्वारा बनाई गई कुछ धुनें मधुर हैं, लेकिन फिल्म में गाने बिना सिचुएशन के ठूँसे गए हैं, इसलिए मजा खराब हो जाता है।
कुमार साहिल को अभिनय सीखने की जरूरत है। स्नेह उल्लाल का चेहरा खूबसूरत, लेकिन भावहीन है। सना की एक्टिंग सबसे अच्छी है। एक्स सुपरस्टार राजेश खन्ना इतने महत्वहीन रोल क्यों कर रहे हैं, ये समझ से परे है। जॉनी लीवर थोड़ा-बहुत हँसाते हैं, लेकिन बच्चन पर आधारित उनके चुटकुले अच्छे नहीं लगते। कुल मिलाकर ‘काश... मेरे होते’ में देखने लायक कुछ भी नहीं है।