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Written By भाषा

स्टाइलिश जीवन जीते थे फिरोज खान

स्टाइलिश जीवन जीते थे फिरोज खान -
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अपने जमाने की कई सुपरहिट फिल्मों में शानदार किरदार निभाकर सिने प्रेमियों के दिलों में बसे बेहद सजीले अभिनेता और फिल्म निर्माता फिरोज खान अपने सहज रोमांटिक अभिनय और अनूठे फिल्मी हावभाव के लिए जाने जाते थे। एक्शन उनकी ऊर्जा थी और फिरोज खान शान से जीने में विश्वास करते थे। दर्शकों को उत्तेजित और थ्रिल करना उन्हें भाता था। तेरह साल की उम्र से उन्होंने काउबॉय नायकों की तरह वेशभूषा धारण करना शुरू कर दिया।

अफगान पिता और ईरानी माँ के घर 25 सितंबर 1939 में जन्मे फिरोज ने वर्ष 1960 में ‘दीदी’ फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। संजय खान, समीर खान और अकबर खान के भाई फिरोज का फिल्मी दुनिया में शुरुआती दौर काफी संघर्ष भरा रहा और ‘ऊँचे लोग’ से उनके अभिनय को सराहा गया।

वर्ष 1969 में ‘आदमी और इंसान’ फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। फिल्म ‘मेला’ में फिरोज ने डाकू की यादगार भूमिका निभाई। इस फिल्म में उनके भाई संजय खान भी थे।

फिरोज खान ने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। उनमें से ‘धर्मात्मा’ काफी चर्चित रही। हॉलीवुड की ‘गॉडफादर’ से प्रेरित ‘धर्मात्मा’ अफगानिस्तान में फिल्माई गई पहली भारतीय फिल्म थी।

जीनत अमान के साथ फिरोज की 1980 की ब्लॉकबस्टर हिट ‘कुर्बानी’ के लिए उन्हें विशेष तौर पर याद किया जाएगा। एक करोड़ की कमाई के साथ कुर्बानी न सिर्फ अपने समय की सबसे कमाऊ फिल्म बनी, बल्कि चर्चित पाकिस्तानी गायिका नाजिया हसन ने भी अपने करियर की शुरुआत इसी फिल्म से की। नाजिया का गाना ‘आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए’ अस्सी के दशक में हर किसी की जुबाँ पर छा गया।

फिरोज ने आरजू, सफर, ऊँचे लोग और आदमी और इंसान जैसी कई चर्चित सामाजिक फिल्में की। राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र और जितेन्द्र जैसे सुपरस्टार्स के रहते भी उन्होंने अपने अभिनय से प्रशंसा, सम्मान बटोरे और पुरस्कार जीते। कहते हैं कि फिल्म ‘सफर’ में शर्मिला टैगोर के शक्की पति का फिरोज का किरदार सुपरस्टार राजेश खन्ना तक को परेशान कर गया था। इस फिल्म का चर्चित गीत ‘जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे’ काफी लोकप्रिय हुआ था।

फणी मजूमदार की फिल्म ‘ऊँचे लोग’ में राजकुमार और अशोक कुमार जैसे कलाकारों की उपस्थिति में खान की भूमिका छोटी थी। उनकी छोटी और संवेदनशील भूमिका हर किसी को चौंका गई। अधिकतर फिल्मों में राजेश या राकेश के नाम से पर्दे पर आने वाले फिरोज की फिल्में ‘जाँबाज’ और ‘दयावान’ को सिने-प्रेमियों ने खूब सराहा।

वर्ष 1962 में बनी अँग्रेजी फिल्म ‘टार्जन गोज इंडिया’ में फिरोज खान ने भूमिका निभाई। इस फिल्म में उनकी हिरोइन सिमी ग्रेवाल थीं। वर्ष 1998 में उन्होंने ‘प्रेम अगन’ फिल्म से अपने पुत्र फरदीन खान को अभिनय के क्षेत्र में उतारा। इसके बाद उन्होंने फरदीन को लेकर ‘जांनशी’ के साथ फिल्म जगत में वापसी की।

घुड़सवारी के शौकीन और कई घोड़ों के मालिक खान ने 1965 में फैशन डिजाइनर सुंदरी से विवाह किया। उनका पुत्र फरदीन और पुत्री लैला है। विवाह के 20 वर्ष बाद सुंदरी से खान का तलाक हो गया।

घोड़ों की विशेष चाह और अपनी शुरुआती फिल्मों में एक्शन के लिए फिरोज खान लंबे समय तक जाने जाएँगे। स्टंट हीरो के नाम से मशहूर फिरोज खान बॉलीवुड में सुनील दत्त, धर्मेन्द्र और विनोद खन्ना के साथ अच्छे घुड़सवारों में गिने जाते थे।

घोड़े पर सवार और बंदूक लटकाए हुए उनकी छवि काफी चर्चित थी। सत्तर के दशक में लोगों में वे इसी छवि के कारण लोकप्रिय थे और ‘खोटे सिक्के’ और ‘काला सोना’ जैसी फिल्मों में वे इसी अवतार में दिखे। उनकी होम प्रोडक्शन धर्मात्मा, कुर्बानी और जाँबाज में भी उनकी यह अनोखी अदा पर्दे पर अवतरित हुई।

बेंगलुरु स्थित जिस फॉर्म हाउस में उन्होंने घोड़ों को पाला, वहीं उन्होंने अंतिम साँस ली। वे प्राय: कहा करते थे मुझे केवल उन्हें दौड़ते देखना पसंद है। घोड़े मेरे जीवन का हिस्सा हैं।

वर्ष 1973 तक खान का प्रिय शौक शिकार था और प्राय: वे अपने दोस्तों को सुनाया करते थे कि किस प्रकार उन्होंने 14 चीतों का गोलियों से शिकार किया और एक बाघ बाल-बाल बच गया। वे कहा करते थे, मुझे शिकार से प्यार है, लेकिन मुझे पीछा करने में मजा आता है, किसी को मारने में नहीं। फिरोज खान की अंतिम फिल्म ‘वेलकम’ थी, जिसमें उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन आरडीएक्स का किरदार निभाया।

पड़ोसी देश की यात्रा के दौरान उनकी टिप्पणी के लिए उन्हें पाकिस्तानी सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। पाकिस्तान में ‘वेलकम’ की रिलीज के समय वहाँ के सेंसर बोर्ड ने आदेश दिया कि खान के किरदार को हटाकर इसे रिलीज किया जाए।

लगभग दो वर्ष पहले जब फिल्म उद्योग में सीक्वल और रीमेक फिल्मों का दौर था, तो उन्होंने ‘कुर्बानी’ का रीमेक बनाने की घोषणा की थी। उनकी यह ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।