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Written By वार्ता

बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे कमाल अमरोही

पुण्यतिथि 11 फरवरी के अवसर पर

बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे कमाल अमरोही -
बॉलीवुड में कमाल अमरोही का नाम एक ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने बेहतरीन गीतकार, पटकथा एवं संवाद लेखक तथा निर्माता-निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।

17 जनवरी 1918 को उत्तरप्रदेश के अमरोहा में जमींदार परिवार में जन्मे कमाल अमरोही (मूल नाम सैयद आमिर हैदर कमाल) शुरुआती दौर में एक उर्दू समाचार-पत्र में नियमित रूप से स्तंभ लिखा करते थे।

मुंबई पहुंचने पर कमाल अमरोही को मिनर्वा मूवीटोन की निर्मित कुछ फिल्मों में संवाद लेखन का काम मिला। इनमें जेलर, पुकार, भरोसा जैसी फिल्में शामिल हैं लेकिन इन सबके बावजूद कमाल अमरोही को वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके लिए वे मुंबई आए थे।

अपने वजूद को तलाशते कमाल अमरोही को अपनी पहचान बनाने के लिए लगभग 10 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। कमाल अमरोही का सितारा वर्ष 1949 में प्रदर्शित अशोक कुमार की निर्मित क्लासिक फिल्म 'महल' से चमका। अशोक कुमार ने कमाल अमरोही को फिल्म 'महल' के निर्देशन का जिम्मा दिया।

बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी 'महल' की कामयाबी ने न सिर्फ पार्श्वगायिका लता मंगेशकर के सिने करियर को सही दिशा दी बल्कि फिल्म की नायिका मधुबाला को 'स्टार' के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

वर्ष 1952 में कमाल अमरोही ने फिल्म अभिनेत्री मीनाकुमारी से शादी कर ली। उस समय कमाल अमरोही और मीनाकुमारी की उम्र में काफी अंतर था। कमाल अमरोही 34 वर्ष के थे जबकि मीनाकुमारी महज 19 वर्ष की थी।

'महल' की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने कमाल पिक्चर्स और कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीनाकुमारी को लेकर 'दायरा' फिल्म का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म टिकट खिड़की पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी।

इसी दौरान कमाल अमरोही को के. आसिफ की वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में संवाद लिखने का अवसर मिला। इस फिल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन के. आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की जरूरत है जिसके लिखे संवाद दर्शकों के दिमाग से बरसोबरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्होंने कमाल अमरोही को अपने संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। इस फिल्म के लिए कमाल अमरोही को सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

वर्ष 1964 में कमाल अमरोही और मीनाकुमारी की विवाहित जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे। इस बीच कमाल अमरोही अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'पाकीजा' के निर्माण में व्यस्त रहे। कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीजा' के निर्माण में लगभग 14 वर्ष लग गए।

कमाल अमरोही और मीनाकुमारी अलग-अलग हो गए थे फिर भी कमाल अमरोही ने फिल्म की शूटिंग जारी रखी, क्योंकि उनका मानना था कि 'पाकीजा' जैसी फिल्मों के निर्माण का मौका बार-बार नहीं मिल पाता है।

वर्ष 1972 में जब 'पाकीजा' प्रदर्शित हुई तो फिल्म में कमाल अमरोही की निर्देशन क्षमता और मीनाकुमारी के अभिनय को देख दर्शक मुग्ध हो गए। इसके साथ ही फिल्म 'पाकीजा' आज भी कालजयी फिल्मों में शुमार की जाती है।

वर्ष 1972 में मीनाकुमारी की मौत के बाद कमाल अमरोही टूट-से गए और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1983 में कमाल अमरोही ने खुद को स्थापित करने के उद्देश्य से एक बार फिर से फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया और फिल्म 'रजिया सुल्तान' का निर्देशन किया।

भव्य पैमाने पर बनी इस फिल्म में कमाल अमरोही ने एक बार फिर से अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया लेकिन दर्शकों को यह फिल्म पसंद नहीं आई और बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई।

90 के दशक में कमाल अमरोही 'अंतिम मुगल' नाम से एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन उनका यह ख्वाब हकीकत में नहीं बदल पाया।

अपने कमाल से दर्शकों को दिलों में खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार कमाल अमरोही 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।(वार्ता)