अक्षय कुमार : हम हैं सीधे-सादे अक्षय-अक्षय...
ऊँचा-पूरा नौजवान। दिखने में हैंडसम। बिलकुल हीरो की तरह लगने वाला। मुंबई में मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दे रहा था। उसके चुम्बकीय व्यक्तित्व को देख सलाह दी गई कि नाहक समय बरबाद कर रहे हो। डांस में माहिर हो। ताइक्वांडो में ब्लेक बेल्ट हो। तो फिल्म या मॉडलिंग क्यों नहीं करते? उस नौजवान को बात जम गई और तुरंत एक मॉडलिंग असाइनमेंट भी मिल गया। चंद घंटों के लिए उसे इतने पैसे मिल गए जितने वो महीने भर में भी नहीं कमा पाता था। बस... उसने फैसला ले लिया कि मॉडलिंग और फिल्मों में ही अपना करियर बनाएगा। न उसका कोई फिल्मी बैकग्राउंड था, न कोई गॉडफादर। लेकिन उसमें संघर्ष करने का माद्दा था, फौलादी इरादे थे और वह हार कभी नहीं मानता था। उसने जी तोड़ मेहनत की और आज उस राजीव हरी ओम भाटिया को दुनिया अक्षय कुमार के नाम से जानती हैं। उनकी इसी बात को ध्यान में रखते हुए फिल्म ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ में एक गाना उन पर फिल्माया गया है- ना हम अमिताभ, ना दिलीप कुमार, ना किसी हीरो के बच्चे, हम हैं सीधे-सादे अक्षय-अक्षय...’ जो उनकी कहानी बयां करता है। अक्षय कुमार ने कभी किसी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझा। मार्शल आर्ट सीखने के लिए जब वे बैंकॉक गए तो वहां पर शेफ और वेटर का काम किया। बच्चों को मार्शल आर्ट सीखाया। फिल्म पाने के लिए निर्माताओं के दफ्तर के चक्कर भी लगाए। उनकी तस्वीर को देख प्रमोद चक्रवर्ती ने फिल्म ‘दीदार’ के लिए साइन किया। हांलाकि यह फिल्म 1992 में रिलीज हुई और उसके पहले अक्षय की कुछ फिल्में रिलीज हो चुकी थीं। इन फिल्मों में अक्षय के अभिनय को देख उन्हें ‘वुडन एक्टर’ कहा गया। ऐसा अभिनेता जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आते, लेकिन उनकी डांसिंग स्टाइल और एक्शन सीन में महारत को देख आम लोगों के दिल में वे धीरे-धीरे जगह बनाने लगे। इसी बीच खिलाड़ी की सफलता ने उन्हें अचानक आगे कर दिया। शुरुआत में उन्होंने छोटे बैनरों के लिए फिल्में की। इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर औसत सफलता हासिल की और अक्षय के पैर जमाने में मदद की। उन्हें यशराज फिल्म्स की ‘ये दिल्लगी’ (1994) और त्रिमूर्ति फिल्म्स की ‘मोहरा’ (1994) जैसी फिल्में भी मिली, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सफलता दर्ज की। बतौर अभिनेता अक्षय फिल्म दर फिल्म सीखते चले गए और उन्होंने वो हर फिल्म साइन की जिसका उन्हें प्रस्ताव मिला। फिर उनकी खिलाड़ी नामक फिल्मों का दौर शुरू हुआ। ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ (1994), सबसे बड़ा खिलाड़ी (1995), खिलाड़ियों का खिलाड़ी (1996), मिस्टर और मिसेस खिलाड़ी (1997) और इंटरनेशनल खिलाड़ी (1999) जैसी फिल्में रिलीज हुईं और सभी ने अपनी लागत से ज्यादा व्यवसाय किया।
यह वह दौर था जब सनी देओल, जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर जैसे सितारों का दबदबा था। आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान ने भी अपना प्रभाव साबित कर दिया था। इन स्टार्स के बीच अक्षय भी अपनी चमक बिखेरने में कामयाब हुए। सन 2000 के आसपास बॉलीवुड की फिल्मों के कंटेंट में बदलाव की हवा बहने लगी। अक्षय जिस तरह की फिल्में करते थे उन्हें तेजी से नापसंद किया जाने लगा था। अक्षय ने इस बात को बहुत पहले सूंघ लिया और तेजी से अपने आपको बदला। ऐसे वक्त उनके हाथ ‘हेराफेरी’ (2000) जैसी फिल्म लगी। इसमें कॉमेडी करते हुए अक्षय बहुत पसंद किए गए और यह फिल्म उनके करियर का अहम मोड़ साबित हुई। धड़कन (2000), आंखें (2002), अंदाज (2003), खाकी (2004) जैसी फिल्मों ने साबित किया कि वे अच्छा अभिनय भी कर सकते हैं। एक्शन से ध्यान हटाकर उन्होंने कॉमेडी पर फोकस किया और परिणाम बेहतरीन रहे।