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Written By WD

हॉलीवुड को भाया भारतीय बाजार

हॉलीवुड को भाया भारतीय बाजार -
- दीपक दुआ

SUNDAY MAGAZINE
भारतीय सिनेमा जगत में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। ये बदलाव सिर्फ विषयवस्तु या तकनीक के स्तर पर ही नहीं हो रहे बल्कि हॉलीवुड और बॉलीवुड की एक-दूसरे में बढ़ रही दिलचस्पी के रूप में भी देखे जा रहे हैं।

एक अनुमान के मुताबिक सिनेमा का भारतीय बाजार 18.5 प्रतिशत के औसत से बढ़ रहा है और 2012 तक यह 36 अरब डॉलर का हो जाएगा। यही कारण है कि दोनों ही ओर की बड़ी कंपनियाँ एक-दूसरे को आकर्षित कर रही हैं।

वॉल्ट डिज्नी, एनबीसी, टाइम वारनर, वायाकॉम और सोनी पिक्चर्स जैसी कंपनियों ने भारतीय भाषाओं में बनने वाली हाल की फिल्मों पर डेढ़ अरब डॉलर खर्च करने की योजना बनाई है।

इन्वेस्टर जॉर्ज सोरोस ने भारतीय फिल्मों के बाजार की संभावनाओं के मद्देनजर रिलायंस इंटरटेनमेंट की तीन प्रतिशत भागीदारी के लिए दस करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। वॉल्ट डिज्नी और यशराज फिल्म्स की एनिमेशन फिल्म रोडसाइड रोमियो आ चुकी है।

वॉर्नर ब्रदर्स एक ओर अक्षय कुमार और दीपिका पादुकोण को लेकर चाँदनी चौक टू चाईना बनवा रहा है तो दूसरी ओर दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत के साथ साल में तीन से छ: फिल्में बनाने के इरादे से हाथ मिलाया है।

ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स ने यू टीवी के साथ मिलकर कई फिल्में बनाईं और अब निर्माता विपुल शाह से भी इस कंपनी की भारतीय शाखा फॉक्स स्टार स्टूडियो ने दो फिल्में बनाने का करार किया है। पैरामाउंट स्टूडियो भी भारत आने को बेकरार है। वहीं डिज्नी ने यू टीवी में 32 फीसदी की हिस्सेदारी ले ली है।

तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह है कि अब भारतीय उद्यमियों के दिलों में भी विश्व फलक पर छाने के अरमान मचलने लगे हैं। अनिल अंबानी की रिलायंस एंटरटेनमेंट ने हॉलीवुड के प्रख्यात निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग के साथ नए स्टूडियो के लिए डेढ़ अरब डॉलर का समझौता किया है। रिलायंस वहाँ के सिनेमाघरों को कब्जाने में भी दिलचस्पी ले रहा है।

अपने यहाँ की पिरामिड सायमीरा थिएटर लिमिटेड कंपनी पहले से ही कुछ देशों में सिनेमा हॉल बना चुकी है। साफ है कि भारत की ओर से यह महज एक शुरुआत है और अभी बहुत लंबी उड़ान हम विदेशी आसमान में भर सकते हैं।

भारतीय फिल्मों और यहाँ के कलाकारों का अमेरिकी सिनेमा के साथ रिश्ता कोई हाल का नहीं है। तकनीकी स्तर पर हम शुरू से ही हॉलीवुड से सहयोग पाते रहे हैं लेकिन सही मायनों में शुरुआत 90 के दशक में आरंभ में हुई जब हॉलीवुड के कोलंबिया ट्राइस्टार, वॉर्नर ब्रदर्स, ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स जैसी निर्माता कंपनियों ने भारत में अपने दफ्तर खोले और हॉलीवुड की फिल्मों को अँग्रेजी या फिर भारतीय भाषाओं में डब करके रिलीज किया जाने लगा।
इससे पहले भारतीय फिल्मों के वितरक हॉलीवुड की हिट हो चुकी फिल्मों या एक्शन और सेक्स से लबरेज फिल्मों को ही आयातित करते थे। अब इस नए रिश्ते की बदौलत हॉलीवुड की कितनी ही फिल्में अमेरिका में रिलीज होने के तुरंत बाद और कई बार तो साथ-साथ ही यहाँ पर रिलीज होने लगीं। 'जुरासिक पार्क', 'अनाकोंडा', 'द ममी' जैसी फिल्मों के डब संस्करणों को यहाँ मिली सफलता ने हॉलीवुड की सोच बदली।

टाइटैनिक तो सिर्फ अँग्रेजी में परोसी गई और फिर भी बेहद सफल रही लेकिन सही मायने में बदलाव ऊपरी ही थे। अमेरिकी स्टूडियो यहाँ आना चाहते थे मगर जिस देश के दर्शकों की जेब से निकलकर फिल्मों पर खर्च होने वाले सौ रुपयों में से मात्र पाँच रुपए बाहर से आने वाली फिल्मों पर खर्चे जाते हों वहाँ अपनी फिल्मों से कमाई करने के सपने देखना घाटे का सौदा ही साबित होता। सो यहीं से शुरुआत हुई गठबंधन की।

पहला प्रयास संभवतः ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स की ओर से हुआ। इनके और रामगोपाल वर्मा के बीच तीन फिल्में बनाने का करार हुआ मगर यह ‘एक हसीना थी’ से आगे नहीं बढ़ पाया। फिर सोनी पिक्चर्स आगे आई। इन्होंने संजय लीला भंसाली के साथ गठजोड़ किया और पिछले साल साँवरिया लेकर आए।

सोनी के लॉस एंजिल्स स्थित उपाध्यक्ष गेरेथ विगेन ने स्वीकारा भी, 'अमेरिकी फिल्मों को भारत में रिलीज करने से दूरियाँ कम होने की उम्मीद करना बचपना होगा क्योंकि हम एक खाली मेज पर कोई पकवान नहीं सजा रहे हैं बल्कि इस मेज पर पहले से बहुत कुछ है जिसके बीच जगह बनाना आसान नहीं है।' तय हुआ कि यहाँ के दर्शकों के लिए यहाँ के फिल्मकारों के साथ हाथ मिलाकर बड़े सितारों और उन्नत तकनीक वाली ऐसी फिल्में बनाई जाएँ, जो भारतीय लोगों के स्वाद की हों।

'साँवरिया' को बॉक्स-ऑफिस पर भले ही ज्यादा पसंद न किया गया हो मगर इससे न तो सोनी के और न ही यहाँ वालों के हौसले पस्त हुए। सोनी अभी भी भंसाली की अगली दो फिल्मों से जुड़ा हुआ है और ईरोस के साथ मिलकर भी ये लोग कुछ प्लान कर रहे हैं।

सोनी की देखा-देखी दूसरे कई स्टूडियो भी कदम बढ़ाते हुए यहाँ आ पहुँचे हैं। ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स का हौसला भी बरकरार है। निर्माता विपुल शाह से भी इस कंपनी की भारतीय शाखा फॉक्स स्टार स्टूडियो ने दो फिल्में बनाने का करार किया है। पैरामाउंट स्टूडियो यहाँ पैर धरने के लिए बेकरार नजर आ रहा है तो उधर डिज्नी ने भारत में भारतीय मिजाज की फिल्में बनाने के लिए हाल ही में यू टीवी में 32 फीसदी की हिस्सेदारी ले ली है। दिल्ली स्थित यू टीवी के उपाध्यक्ष गिरीश जौहर इस गठबंधन से उम्मीद जताते हुए कहते हैं कि इससे न सिर्फ हमारे सिनेमा की बेहतरी होगी बल्कि हम विश्व फलक पर भी अपनी पहचान सुदृढ़ कर पाएँगे।

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क्या विदेशी कंपनियाँ हमारी रचनात्मक आजादी तो नहीं छीन लेंगी? संजय लीला भंसाली के जेहन में भी साँवरिया से पहले ये सवाल उठे थे, पर सोनी ने उनके काम में कोई दखलंदाजी नहीं की और उनके कुछ 'विनम्र सुझावों' के सिवाय और कुछ भी हस्तक्षेप नहीं हुआ। फिर फॉक्स स्टूडियो का कहना भी है- 'हम यहाँ कुछ बदलने नहीं आ रहे हैं।'