जब से ऑस्कर नामांकन की घोषणा हुई है, भारत में स्लमडॉग मिलियनेयर की खूब चर्चा है, एआर रहमान की जय हो रही है, ढोल नगाड़ों के बीच फिल्म की टीम का मुंबई में स्वागत किया गया। नगाड़ों के इस शोर-शराबे के बीच उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव मिर्जापुर की पिंकी की कहानी पीछे छूट गई।
वह नन्हीं पिंकी जिस पर बनी लघु डॉक्यूमेंट्री 'स्माइल पिंकी’ ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है। हिंदी और भोजपुरी में बनी इस डॉक्यूमेंट्री को अमेरिका की मेगन मायलन ने निर्देशित किया है।
यह लघु वृत्तचित्र ऐसे बच्चों की कहानी है, जो 'क्लेफ्ट लिप' से पीड़ित हैं। यानी जिनके होंठ जन्म से कटे हुए हैं। ‘स्माइल पिंकी’ के केंद्र में है सात साल की बच्ची पिंकी, जो इस बीमारी के कारण हँसना-हँसाना भूल चुकी थी।
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वह भी क्लेफ्ट लिप की शिकार थी, उसका होंठ भी पैदायशी कटा हुआ था। इस बीमारी के कारण उसे समाज में, अपने गाँव में और स्कूल में उपहास का केंद्र बनना पड़ा और सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ा, लेकिन फिर पिंकी को एक चिकित्सा शिविर में जाने का मौका मिलता है और ऑपरेशन के बाद उसकी जिंदगी बदल जाती है। मायलन ने पिंकी की जिंदगी के इसी हिस्से को कैमरे में कैद किया है।
सामाजिक तिरस्कार : पिंकी के परिजन बताते हैं कि होंठ कटा होने के कारण वह बाकी बच्चों से अलग दिखती थी और उससे बुरा बर्ताव किया जाता था। हमने पिंकी के गाँव फोन लगाकर उसके परिवारवालों से पूछना चाहा कि ऑपरेशन के पहले और सर्जरी के बाद उसकी जिंदगी कैसी है।
पिंकी के घर तो फोन नहीं था, लेकिन हमने पड़ोसी का फोन नंबर ढूँढा तो उन्होंने पिंकी का नाम सुनते ही तुरंत उसके ‘बड़े पापा’ से बात करवाई। वे पुराने दिन याद करते हुए कहते हैं जन्म से ही पिंकी का होंठ कटा हुआ था। इस कारण सब बच्चे उसे चिढ़ाते थे, कई तरह-तरह के गंदे नाम से बुलाते थे। बोलने में भी उसे दिक्कत होती थी।
पिंकी की सर्जरी डॉक्टर सुबोधकुमार सिंह ने की है। डॉक्टरसिंह 'स्माइल ट्रेन' नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था के साथ मिलकर उत्तरप्रदेश में काम करते हैं।
पिंकी की पहले की दशा को याद करते हुए वे कहते हैं बड़ी प्यारी और मासूम बच्ची है पिंकी, लेकिन होंठ कटा होने के कारण उसे बहुत चिढ़ाया जाता था। पिंकी ने स्कूल जाना शुरू भी किया था, लेकिन छोड़ना पड़ा। उसका बाल सुलभ मन खेलना तो चाहता था, लेकिन दूसरे बच्चे उसके साथ खेलते नहीं थे। इससे वह हताश रहने लगी।
सिंह बताते हैं उनका संस्थान सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से ऐसे बच्चों को ढूँढकर उनका नि:शुल्क इलाज करता है। इसी दौरान पिंकी को भी चिकित्सा शिविर आने का मौका मिला।
गर्भावस्था के चौथे से 12वें सप्ताह के अंदर होंठ और तालु का विकास होता है। इस दौरान यदि किसी वजह से विकास नहीं हो पाता है तो होठ या तालु कटे रह जाते हैं। इसे दुनियाभर में शोध चल रहा है, ताकि इसे होने से ही रोका जा सके
पिंकी के ताऊ बताते हैं कि जब से पिंकी का ऑपरेशन हुआ है, सब प्यार से उसे पिंकी ही बुलाते हैं, बच्ची-बच्ची कहते हैं। अब वह खेल-कूद रही है और बहुत खुश है।
सकुचाती-हिचकिचाती पिंकी हमसे फोन पर बहुत खुल कर तो बात नहीं कर पाई, लेकिन मीलों दूर से भी उसकी आवाज़ में खुशी की खनक और उत्सुकता महसूस की जा सकती थी। पिंकी ने बताया वह बहुत खुश है कि उसे पढ़ाई करने का मौका मिल रहा है। लंदन, अमेरिका न जाने कहाँ-कहाँ से उसे फोन आ रहे हैं।
स्माइल पिंकी : निर्देशक मेगन मायलन ने पहले पिंकी के जीवन के उस हिस्से को शूट किया, जब उसका होंठ कटा हुआ था और लोग उसे उपेक्षा भरी नजरों से देखते थे।
जब पाँच महीने बाद मेगन दोबारा लौटीं तो उन्होंने देखा कि कैसे दुबकी-सहमी पिंकी अब हँसती-खिलखिलाती पिंकी में बदल गई है। स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल जा रही है। यही है वृत्तचित्र ‘स्माइल पिंकी’ जिसे ऑस्कर में नामांकन मिला है।
इस बीमारी के बारे में डॉक्टर सिंह कहते हैं गर्भावस्था के चौथे से 12वें सप्ताह के अंदर होंठ और तालु का विकास होता है। इस दौरान यदि किसी वजह से विकास नहीं हो पाता है तो होठ या तालु कटे रह जाते हैं। इसके कारणों को लेकर दुनियाभर में शोध चल रहा है, ताकि इसे होने से ही रोका जा सके या इसकी आशंका कम हो जाए।
डॉक्टर सिंह कहते हैं इस बीमारी के कारण बच्चों को कई तरह के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दवाबों का सामना करना पड़ता है। उनके मुताबिक भारत में दस लाख से ज्यादा बच्चों को तालु या कटे होंठ होने के कारण ऑपरेशन की जरूरत है और हर साल 35 हजार बच्चे ऐसे पैदा होते हैं, जिनके होंठ या तालु कटे होते हैं।
केवल 45 मिनट से दो घंटे के एक ऑपरेशन से इन बच्चों का जीवन बदल सकता है। जैसा पिंकी का बदला। पिंकी अब पूरे गाँव की प्यारी गुड़िया हो गई है। उसके लिए फोन आते हैं तो आस-पास के सभी लोग इकट्ठा हो जाते हैं। फोन पर अलविदा लेते-लेते पिंकी के घरवालों ने हमें उनके गाँव आने का न्योता भी दिया हँसती-मुस्कराती पिंकी को देखने के लिए।