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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 28 जून 2013 (14:14 IST)

कहीं यौन हिंसा के पीछे पोर्न का हाथ तो नहीं?

- जो फिजेन (बीबीसी रेडियो 4)

कहीं यौन हिंसा के पीछे पोर्न का हाथ तो नहीं? -
BBC
इंटरनेट या अन्य माध्यमों से अश्लील सामग्री परोसे जाने के खिलाफ कार्रवाई की जब तब मांग आवाज उठती रहती है, लेकिन क्या वास्तव में इसके सबूत हैं कि लोगों को इससे नुकसान पहुंच रहा है?

मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बैंडोरा ने वर्ष 1961 में इस बारे में एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया था। उन्होंने कुछ बच्चों को एक व्यक्ति को हवा भरी गुड़िया को पीटते हुए दिखाया था। फिर इन बच्चों को इसी तरह गुड़िया के साथ छोड़ दिया गया।

वो देखना चाहते थे कि बच्चों की क्या प्रतिक्रिया होती है। उन्होंने देखा कि बच्चों ने भी गुड़िया को पीटा। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हम सीख लेने के बजाय हिंसक गतिविधियों की नकल करने की ओर आकर्षित होते हैं।

इसके बरसों बाद लॉस एंजेलेस के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के छात्र नील मालमथ ने अश्लीलता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया का पता लगाने के लिए उसी तरह का प्रयोग किया।

आकलन : साल 1986 में किए गए प्रयोग में उन्होंने 42 लोगों को चुना और ‘बलात्कार की संभावना’ के पैमाने पर उनका आकलन किया। फिर उन्हें तीन समूहों में बांटा गया। पहले समूह को कामुकता से लबरेज सामग्री दी गई जिसमें बलात्कार और सेक्स के दौरान शारीरिक पीड़ा पहुंचाकर आनंद के दृश्य शामिल थे।

दूसरे समूह को हिंसा मुक्त अश्लील सामग्री दी गई जबकि तीसरे समूह को किसी प्रकार की अश्लील सामग्री नहीं दी गई।

एक सप्ताह बाद हर व्यक्ति का एक महिला के साथ जोड़ा बनाया गया और उनसे कहा गया कि महिलाओं को उनमें कोई रुचि नहीं है। फिर उन्हें 'बूझो तो जानें' की तरह का एक खेल खेलने को कहा गया जिसमें हर गलत जवाब पर महिला को सजा देने का अधिकार दिया गया।

इस प्रयोग और कई अन्य प्रयोगों के आधार पर मालमथ ने निष्कर्ष निकाला कि अगर कोई व्यक्ति पहले से ही सेक्स के प्रति आक्रामक हो और उसे अश्लील सामग्री पढ़ाई या दिखाई जाए तो इस बात की प्रबल संभावना है कि वो कोई आक्रामक यौन कृत्य करेगा।

अश्लील सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के अभियान में जुटे कुछ लोगों ने मालमथ के शोध के आधार पर दावा किया कि अश्लील सामग्री से बलात्कार जैसी घटनाएं होती हैं।

उदाहरण : लेकिन मालमथ कहते हैं कि ये कहना बहुत सरल है। वो अपनी इस दलील के लिए शराब का उदाहरण देते हैं। उन्होंने कहा, 'कुछ लोग मजे के लिए शराब पीते हैं जबकि दूसरे लोग इसे पीकर हिंसक हो जाते हैं। ऐसे में अगर मैं कहूं कि शराब पीने से आदमी हिंसक हो जाता है तो ये सही नहीं होगा।'

उन्होंने कहा, 'ऐसे ही कुछ लोग अश्लील सामग्री का सकारात्मक पक्ष देखते हैं और किसी तरह का असामाजिक व्यवहार नहीं करते हैं, लेकिन दूसरे लोगों में ये कई अन्य कारणों से आग में घी का काम करती है।'

अश्लील सामग्री के खिलाफ अभियान चलाने वालों को इस बात की चिंता है कि पोर्नोग्राफी का चलन बढ़ रहा है। बॉस्टन के व्हीलॉक कॉलेज में समाजशास्त्र और महिलाओं संबंधी अध्ययन के प्रोफेसर गेल डाईनेस का कहना है कि इंटरनेट पर हिंसा से मुक्त अश्लील सामग्री ढूढ़ना मुश्किल है।

उन्होंने कहा, 'अश्लील फिल्म बनाने वाले अग्रणी निर्देशक जूल्स जॉर्डन का कहना है कि वो अपने प्रशंसकों की हिंसक यौन दृश्यों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।'

ग्रैनी पोर्न : लेकिन कंप्यूटेशनल न्यूरोसाइंटिस्ट ओगी ओगास इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। ओगास और उनके साथी साई गैडम ने एक अरब वेब सर्च और ऑनलाइन साइट्स के डेटा एकत्र किए। उनका कहना है कि उन्हें बहुत कम हिंसक अश्लील सामग्री मिली।

उन्होंने आंकड़ों के आधार पर कहा कि इंटरनेट में सबसे ज्यादा युवाओं के बारे में अश्लील सामग्री सर्च की गई। इसके बाद गे, एमआईएलएफ, ब्रेस्ट और चीटिंग वाइव्स को सर्च किया गया।

ओगास इंटरनेट पर तथाकथित ‘ग्रैनी पोर्न’ की लोकप्रियता पर आश्चर्य जताते हैं। उन्होंने कहा, 'चालीस, पचास और यहां तक कि साठ साल की उम्र की महिलाओं के सेक्स के बारे में जानने की बहुत मांग हैं। ब्रिटेन ऐसे देशों में शामिल है जहां ग्रैनी पोर्न की मांग सबसे ज्यादा है।'

मानव मनोविज्ञान और समाज पर अध्ययन करने वालों का मानना है कि अश्लील सामग्री और यौन हिंसा के बीच रिश्ता देख पाना खासा मुश्किल है, लेकिन यह देखना चाहिए कि इससे लोगों के व्यवहार में बदलाव तो नहीं हो रहा है?