गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By WD

पूर्ण सफलतादायक है रुद्राक्ष- भाग 5

एक से चौदह मुखी रुद्राक्ष की जानकारी

पूर्ण सफलतादायक है रुद्राक्ष- भाग 5 -
- विवेक व्यास

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गौरीशंकर रुद्राक्ष : यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। धन-धान्य से परिपूर्ण करता है। लड़के या लड़की के विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर कर उत्तम वर या वधू प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।

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गणेश रुद्राक्ष : प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। उसे गणेश रुद्राक्ष कहा जाता है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। विघ्न-बाधाओं से रक्षा कर चहुँमुखी विकास कराता है। यश-कीर्ति, वैभव, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा में वृद्धिकारक सिद्ध होता है।

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शेषनाग रुद्राक्ष : जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है। राजनीति‍ज्ञों, समाजसेवियों, व्यापारियों के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होता है। उनके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है।

रुद्राक्ष धारण के नियम और ज्योतिषीय मत
1. सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। धारण करते समय ॐ नम: शिवाय का जाप करें। ललाट पर भस्म लगाएँ। अपवित्रता के साथ धारण न करें। भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें। अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही फल प्राप्त होता है।
2. कभी भी काले धागे में धारण न करें। लाल, पीला या सफेद धागे में धारण करें। चाँदी, सोना या तांबे में भी धारण कर सकते हैं।
3. रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या में धारण करें।

ज्योतिष के अनुसार
एकमुखी सूर्य का प्रतीक सूर्य दोष शमन
द्विमुखी चंद्र का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है
त्रयमुखी मंगल ,, ,,
चतुर्मुखी बुध ,, ,,
पंचमुखी गुरु ,, ,,
षष्ठमुखी शुक्र ,, ,,
सप्तममुखी शनि ,, ,,
अष्टमुखी राहु ,, ,,
नवममुखी केतु ,, ,,
दशममुखी राहु-केतु, शनि-मंगल के दोष को दूर करता है
एकादशमुखी समस्त ग्रहों, राशि, तांत्रिक दोषों को दूर करता है
द्वादशमुखी समस्त ग्रह दोष दूरकर व्यक्ति में सूर्य का बल बढ़ाता है
त्रयोदशमुखी कापुरुष जनित दुर्बलता दूर कर शारीरिक-आर्थिक क्षमता प्रदान करता है। (समाप्त)