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Written By WD

कैंसर रोग में ग्रहों की भूमिका

जन्म कुंडली में कैंसर के योग

Astro article | कैंसर रोग में ग्रहों की भूमिका
- रवि जै
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कैंसर का नाम सुनते ही रोगी अपने जीवन जीने की अवधि का शीघ्र अंत मान लेता है। ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग की उत्पत्ति में कौन-कौन से ग्रहों का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है। मानव शरीर में कैंसर रोग के लिए कोशिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोशिकाओं में श्वेत रक्तकण एवं लाल रक्तकण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्तकण के लिए कर्क राशि का स्वामी चंद्र ग्रह तथा लाल रक्तकण के लिए मंगल ग्रह सूचक है।

कर्क राशि का चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसलिए कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का महत्व माना गया है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ज्योतिष में मंगल ग्रह जातक के शरीर को बलशाली, साहसी तथा गर्म प्रकृति का सूचक माना गया है।

जन्म कुंडली में कैंसर रोग होने के यो

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व्यक्ति की जन्म कुंडली में निम्न ग्रहों के योग होने से कैंसर जैसे भयानक रोग की आशंका होती है :-

* शनि, मंगल, राहु, केतु की युति षष्ठम, अष्ठम, बारहवें भाव में होना।

* पाप ग्रहों की दृष्टि चंद्र ग्रह के साथ होकर षष्ठम, अष्ठम अथवा बारहवें भाव में पाप ग्रह।

* लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि होना अथवा लग्न का स्वामी षष्ठम, अष्ठम अथवा बारहवें भाव में चले जाना। षष्ठम, अष्ठम अथवा बारहवें भाव के स्वामी का लग्न में होना।

* जिस भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तथा चंद्र दूषित हो रहा हो तो उस भाव के अंग पर कैंसर होता है।

* चंद्र तथा मंगल ग्रहों पर अन्य पाप ग्रह की युति या दृष्टि संबंध होने पर रक्त कैंसर होने की ज्यादा आशंका होती है।

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* चंद्र ग्रह का त्रिक भाव में होकर उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ना या पाप ग्रहों की युति होना।

* षष्ठम, अष्ठम अथवा बारहवें भाव की राशि के स्वामी का परस्पर स्थान परिवर्तन होना तथा उसका संबंध लग्न भाव के स्वामी से होने पर कैंसर रोग का होना।

* लग्न निर्बल होकर पाप ग्रहों के साथ षष्ठम, अष्ठम या बारहवें भाव में होना।

* मारक भाव के स्वामी का पाप ग्रहों की दशांतर होने या दृष्टि संबंध होने पर कैंसर रोग के कारण देहांत होने के योग बनना।