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Written By ND

महानायकों का राजनीतिक इस्तेमाल कहाँ तक ठीक?

महानायकों का राजनीतिक इस्तेमाल कहाँ तक ठीक? -
ND
पिछले दिनों भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से विवेकानंद के नाम पर गाँधी हाल में संकल्प दिवस मनाया गया। विवेकानंद के आदर्शों पर चलना तो दूर, यहाँ उमड़ी युवा शक्ति ने एमजी रोड जाम कर दिया। भारत के प्रतीक चिह्न बन चुके गाँधी, विवेकानंद और सुभाषचंद्र बोस के नाम का इस्तेमाल राजनीतिक दल खूब ठोक बजा कर कर रहे हैं और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। क्या राजनेताओं को अधिकार है कि वे भारत के प्रतीक चिह्नों का इस तरह प्रयोग करें। युवा ने इस मुद्‌दे पर संकल्प दिवस मनाने वाली भाजयुमो और विवेकानंद सेंटर के पदाधिकारियों से बात कर जानने का प्रयास किया कि विवेकानंद के नाम का इस्तेमाल क्यों किया गया?

देश के महानायकों को अपने राजनीतिक परचम पर उतारने का काम बेशर्मी के साथ जारी है। गुजरात के मुख्यमंत्री को तो दूसरा विवेकानंद ही बना दिया गया। कांग्रेस ने पहले महात्मा गाँधी को अपना हथियार बनाया और वे पुराने हो गए तो अब इंदिरा और राजीव के नाम का इस्तेमाल हो रहा है। बहुजन समाज पार्टी बेझिझक डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर का नाम भुनाती आ रही है। इंदौर में गोलू शुक्ला को भाजयुमो का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने भीड़ जुटाने के लिए संकल्प दिवस मना डाला। निजी तौर पर विवेकानंद को अपना आदर्श मानना ठीक है, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के लिए उनके नाम का इस्तेमाल क्यों किया गया?

किसी की बपौती नहीं
इंदौर के विवेकानंद केंद्र के नगर संगठक अभिनेष कटेहा ने कहा कि विवेकानंद किसी की बपौती नहीं है। वे सबके हैं, लेकिन यदि कोई राजनीतिक स्वार्थ के लिए उनके नाम का उपयोग कर रहा है तो यह बहुत गलत बात है। वैसे इन दिनों कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही विवेकानंद की जरूरत पड़ रही है।

गोलमोल जवाब
भारतीय जनता युवा मोर्चा के नए-नए अध्यक्ष बने गोलू शुक्ला ने बताया कि संकल्प दिवस इसलिए मनाया गया कि युवा विवेकानंद के पद चिह्नों पर चलें। उनके मुताबिक दस हजार युवा हमारे सदस्य बने हैं। जब उनसे पूछा गया कि इनमें से कितने विवेकानंद के दर्शन को समझते हैं तो गोलू जी का कहना था कि हम इन सभी को प्रशिक्षण दिलाएँगे, विवेकानंद के विचारों से अवगत कराएँगे। गोलू जी का कहना है कि संकल्प दिवस के दिन युवा शक्ति ज्यादा उत्साह में आ गई थी, इसलिए मामला बिगड़ गया। वे आखिर तक यह मानने को तैयार नहीं हुए कि इन दस हजार कार्यकर्ताओं की भर्ती देश के नहीं, बल्कि उनके और उनकी पार्टी के हक में हैं।