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Written By WD

2016 में इन 5 भारतीय बेटियों ने रचा इतिहास

2016 में इन 5 भारतीय बेटियों ने रचा इतिहास । Sports Girls Of 2016 - Sports Girls Of 2016
साल 2016, महिलाओं के लिए गौरवशाली ही नहीं रहा, बल्कि स्त्री को प्राप्त गौरव से देश के माथे पर तिलक करने वाला स्वर्ण‍िम वर्ष भी रहा। एक नहीं, दो नहीं बल्कि पांच-पांच गौरवशाली इतिहास रचे गए, जि‍सका ताज देश की इन बेटियों ने मिलकर देश को पहनाया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, साल 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में स्वर्ण‍िम इबारत लिखने वाली भारत की उन बेटियों की, जो चमकते भारत की तस्वीर बनकर उभरीं।

अब तक के इतिहास में बैडमिंटन में रजत पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला खिलाड़ी पी.वी सिंधु हो या फिर कुश्ती में पटखनी देकर कांस्य पदक प्राप्त करने वाली हरियाणा की साक्षी मलिक। जिम्नास्ट‍िक में ऊंचाई छूने वाली दीपा करमाकर हो, एथलेटिक्स ललिता बाबर या फिर गोल्फ के महिला एकल के अंतिम राउंड में पहुंचने वाली पहली 18 वर्षीय अदिति अशोक, साल 2016 को स्त्री की गरिमा और सम्मान के नाम करते हुए सुनहरे अक्षरों में इतिहास लिखने में कामयाब रहीं। 
 
पीवी सिंधु, साक्षी मलिक, दीपा कर्माकर और ललिता बाबर और अदिति अशोक ने अपने साहस और शानदार खेल से उन्होंने ओलंपिक में देश के अभियान में एक नई जान डाल दी। भले ही ये सभी ओलंपिक पदक लेकर नहीं लौटीं, लेकिन उनकी कोशिश, दृढ़ संकल्प और शानदार प्रदर्शन ही दुनिया में छा जाने के लिए काफी था।

1 पीवी सिंधु - सिंधु रियो ओलंपिक में रजत पदक हासिल करने वाली दुनिया की पहली महिला खिलाड़ी हैं, जिनका पूरा नाम पुसरला वेंकटा सिंधु है। सिंधु का जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में हुआ था। सिंधु के पिता पी.वी रमण वालीबॉल खिलाड़ी रहे हैं और इसमें उल्लेखनीय कार्य हेतु वर्ष-2000 में भारत सरकार का प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। 

स्पेन की विश्व नंबर एक कैरोलिना मारिन को कड़ी टक्कर देने के बाद ओलंपिक रजत पदक से संतोष करने वाली सिंधु भारत में खेलों का सबसे चमकीला सितारा बनकर उभरी हैं। सिंधु के बैडमिंटन गुरू, 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन पुलेला गोपीचंद रहे। सिंधु ने सबसे पहले सिकंदराबाद में इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूर संचार के बैडमिंटन कोर्ट में महबूब अली के मार्गदर्शन में बैडमिंटन की बुनियादी बातों को सीखा। इसके बाद वे पुलेला गोपीचंद के गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में शामिल हो गई। 
 
सिंधु ने ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में आयोजित 2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपि‍क खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और महिला एकल स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली वे भारत की पहली महिला बनीं। सेमी फाइनल मुकाबले में जापान की नोज़ोमी ओकुहारा को सीधे सेटों में 21-19 और 21-10 से हराने के बाद फाइनल में उनका मुकाबला विश्व की प्रथम वरीयता प्राप्त खिलाड़ी स्पेन की कैरोलिना मैरिन से हुआ। इसमें पहली पारी सिंधु ने 21-19 से जीती लेकिन दूसरी पारी में मैरिन 21-12 से विजयी रही, जिसके कारण मैच तीसरी पारी तक चला, जिसमें सिंधू ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए रजत पदक हासिल किया।

2 साक्षी मलिक : रियो डि जेनेरियो में हुए 2015 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक, ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान हैं। जहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों को प्रतिशत बेहद कम और कन्या भ्रूण हत्याओं का प्रतिशत अधिक है, ऐसे हरियाणा क्षेत्र से निकलकर साक्षी दुनियाभर में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं।   

इससे पहले वे 2014 में वे विश्व कुश्ती प्रतियोगिता के अलावा ग्लासगो में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारत का प्रतिनिधि‍त्व कर चुकी हैं, जिसमें उन्होंने रजत पदक जीता था। साक्षी का जन्म 3 सितंबर 1992 में हरियाणा के रोहतक में हुआ। साक्षी के पिता सुखबीर मलिक डीटीसी में बस कंडक्टर एवं उनकी मां सुदेश मलिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। 

साक्षी के दादा बदलूराम मलिक क्षेत्र के प्रसिद्ध पहलवान थे, जिनके रूतबे से साक्षी कॉफी प्रभावित थीं। साक्षी को पहलवान पहनने की प्रेरणा अपने दादाजी से ही मिली। 12 वर्ष की उम्र में साक्षी ने रोहतक के छोटूराम स्टेडियम में कोई ईश्वर सिंह दहिया से कुश्ती के दांव-पेंच सीखना शुरू किया। 
 
ओलंपिक की तैयारी के लिए वे 2014 में ही लखनऊ पहुंची और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षकों के साथ नियमित गहन अभ्यास किया, जिसमें उनकी फिटनेस, खानपान आदि शामिल था। 
 
साक्षी ने ओलंपि‍क में रेपचेज प्रणाली के तहत कांस्य पदक हासिल किया। इस मुकाबले में 5-0 से पीछे होने के बावजूद उन्होंने शानदार वापसी करते हुए अंत में 7 -5 से मुकाबल अपने नाम कर कि‍या और आखरी कुछ सेकंड में अंतिम स्कोर 8-5 के स्कोर से जीत हासिल की। साक्षी ने अपने तीनों बाउट में पिछड़ने के बावजूद जिस तरह से अदम्य साहस का परिचय देते हुए कांस्य पदक जीता, वह प्रेरणा का स्रोत है। साक्षी ओलंपिक में यह पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान थीं।

3 दीपा करमाकर - दीपा साल 2016 में आयोजित ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली भारतीय जिम्नास्ट हैं।  दीपा ने जिम्नास्ट‍ के तौर पर ओलंपिक तक पहुंचकर भारत को एक नई पहचान दिलाई और अपने बेहतरीन प्रदर्शन से लोगों के दिलों में भी जगह बनाई। उन्होंने 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा और तब से अब तक उन्होंने कितनी ही ऊंचाईयां छू ली।

दीपा का जन्म 9 अगस्त 1993 में त्रिपुरा के अगरतला में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। 6 वर्ष की आयु से ही दीपा ने जिम्नास्ट‍िक्स की शुरुआत कर दी थी, और तभी से वे अब तक अपने कोच विश्वेश्वर नंदी के निर्देशन में जिम्नास्ट‍िक्स का अभ्यास कर रही हैं। 2007 से ही दीपा ने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कुल 77 पदक जीते, जिनमें 67 स्वर्ण पदक हैं। 
 
शुरूआती समय में उनके साथ एक बड़ी समस्या थी फ्लेट फीट यानि सपाट पैरों की थी, जिसे हल करना उनके लिए चुनौतिपूर्ण था, क्योंकि इसके चलते उन्हें उछाल में समस्या का सामना करना पड़ता। लेकिन दीपा ने इस चुनौति को स्वीकार करते हुए इस पर जीत हासिल की और उसके बाद शुरू हुआ उनका एक कलात्मक जिम्नास्ट बनने का सफर। 
 
दीपा ओलंपिक में जिम्नास्टि‍क्स के लिए भारत का प्रतिनिधि‍त्व करने वाली पहली महिला खि‍लाड़ी हैं। उन्होंने ओलंपिक में बेहद कठिन माने जाने वाले प्रोदुनोवा वॉल्ट का सफल प्रदर्शन किया, जिसे अब तक पूरे विश्व में सिर्फ 5 जि‍म्नास्ट ही कर पाई हैं। यहां तक कि स्वर्ण पदक जीतने वाली अमेरिकी खिलाड़ी सिमोन बाइल्स ने भी फाइनल में यह नहीं किया।जि‍स खेल में अब तक सिर्फ रूस, अमेरिका, चीन और पूर्वी यूरोपीय देशों का दबदबा था, उसमें दीपा द्वारा प्रोदुनोवा वॉल्ट का प्रदर्शन भारत को गौरवान्वित करने वाला था।  
 
शर्मीले स्वभाव की दीपा सीधी, सरल और अपने खेल अभ्यास के लिए जुनूनी खिलाड़ी हैं। उन्होंने ओलंपिक फाइनल में अपनी जगह बनाई और चौथा स्थान प्राप्त करते हुए मामूली अंतर 0.150 से वे कांस्य पदक हासिल करने से चूक गईं, लेकिन भारत के हर दिल में अपनी एक खास जगह जरूर बना ली है।

4 ललिता बाबर - 2 जून 1989 को महाराष्ट्र के सतारा में जन्मीं ललिता, भारत की सबसे लंबी दूरी की महिला धावक हैं। साल 2016 रियो आलंपिक में वे उसे खेल में प्रतिभागी रहीं जिसमें अब तक मिल्खा सिंह और पीटी उषा के अलावा कोई नाम सुनाई नहीं देता। हालांकि वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के करीब जरूर नहीं रहीं, लेकिन उनका 3000 मीटर के स्टीपलचेज के फाइनल में दसवां स्थान और रियो के मकराना स्टेडियम में छठा स्थान प्राप्त करना बेहद सराहनीय था।
 

27 वर्षीय ललिता गोल्ड मेडल जीतने से सिर्फ 22 सेकंड दूर रह गई। लेकिन उनके द्वारा बनाया गया रिकॉर्ड इस स्पर्धा में किसी भी भारतीय महिला की तरफ से बनाया गया पहला रिकॉर्ड है।
 
बचपन से ही दौड़ और खेलकूद को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने वाली ललिता ने किशोरावस्था से एथलेटिक्स में लंबी दूरी की दौड़ को करियर के रूप में चुना। 2005 में ललिता ने यू 20 नेशनल चैंपियनशिप में अपना पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 
 
मुंबई मैराथन में हैट्रिक करने के साथ ही उन्होंने एशियम गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और कई प्रति योगिताओं में हिस्सा लेकर स्वर्ण, रजत एवं कांस्य पदक हासिल किए। 2015 एशियन चैंपियनशिप में तो ललिता ने स्वर्ण पदक जीतकर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिसमें उन्होंने रियो ओलंपिक गेम्स 2016 के लिए क्वालिफाई किया।

5 अदिति अशोक - साल 2016 में रियो ओलंपिक से जुड़ा एक और नाम है अदिति अशोक, जो एक प्रोफेशनल गोल्फर के तौर पर रियो ओलंपिक में प्रतिभागी बनीं और भारत का प्रतिनिधित्व किया। 

29 मार्च 1998 में बैंगलोर में जन्मीं अदिति के बारे में सबसे खास बात यह रही कि वे इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों में सबसे कम उम्र की गोल्फ खिलाड़ी रहीं और उन्होंने अपना प्रदर्शन भी बेहतरीन किया। 
 
खेल के दो चरणों में अदिति अपने प्रदर्शन के आधार पर शीर्ष के 10 खिलाड़ियों में बनी रहीं लेकिन तीसरे और चौथे चरण में वे पीछे हो गईं और 291 के स्कोर के साथ 4।वें स्थान पर रहीं। भले ही वे जीत हासिल नहीं कर पाईं लेकिन उन्होंने बेहतर प्रदर्शन से भारत को गौरव दिलाया है।  
 
खेल के क्षेत्र से यह वे पांच नाम हैं, जिन्होंने भारत की दोगुना सम्मानित किया है। एक बार फिर स्त्री का मान बढ़ाते हुए, विश्व के पटल पर भारत को सम्मानित करने वाली ये युवतियां साल 2016 में देश की चमकती हुईं धार साबित हुईं, जिनकी चमक देशवासियों की आंखों में सदा बनी रहेगी।