शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. वेबदुनिया विशेष 09
  3. आईना 2009
  4. 2009 : नए आविष्कार-नए चमत्कार
Written By स्मृति आदित्य

2009 : नए आविष्कार-नए चमत्कार

2009 में सेहत के लिए हुए अनूठे जतन

Health News 2009 | 2009 : नए आविष्कार-नए चमत्कार
यूँ तो साल 2009 स्वाइन फ्लू नामक भयावह बीमारी की चपेट में रहा लेकिन उसकी छाँव तले वो सारी उपलब्धियाँ भूला दी गईं जो बीते साल हमारे वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के शोध के परिणामस्वरूप मिलीं। बीते वर्ष देश-विदेश के आविष्कारक गंभीर बीमारियों के सरल उपचार और बेहतर स्वास्थ्य के लिए नित नवीन तरीकों और निष्कर्षों की खोज में लगे रहे।

जवाँ बनाए विटामिन सी
विज्ञान पत्रिका 'सेल स्टेम सेल' के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि विटामिन 'सी' उन कोशिकाओं को सहायता पहुँचाता है जिनसे हम वयस्क दिखते हैं। शोधकर्ता डयू एन किंग पेई ने कहा कि विटामिन 'सी' उन कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करता है जो उम्र बढ़ने के साथ कमजोर हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में चूहों पर प्रयोग किया गया था जो सफल साबित हुआ। पेई ने कहा कि कोशिकाओं की 'रिप्रोसेसिंग' व्यवस्था के तहत यह अध्ययन किया गया है। उन्होंने कहा कि मानव पर भी यह प्रयोग सफल साबित होगा।

मानव होगा अमर
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि नैनो प्रौद्योगिकी और शरीर की कार्यप्रणाली की बेहतर समझ के माध्यम से आने वाले 20 वर्षों से भी कम समय में मानव को अमर बनाया जा सकता है। दशकों पहले से आने वाले समय की प्रौद्योगिकी की भविष्यवाणी करने के लिए प्रसिद्ध रहे वैज्ञानिक रे कुर्जवेल ने 'द सन' में लिखा है 'मैं और कई अन्य वैज्ञानिकों का अब मानना है कि करीब 20 वर्षों में हमारे पास ऐसे उपाय होंगे जिनसे शरीर अपने सॉफ्टवेयर्स को रिप्रोग्राम कर सकेगा। तब बुढ़ापे पर विराम लग सकेगा और जवानी फिर से लौटाई जा सकेगी।'

कुर्जवेल के मुताबिक 'जानवरों में रक्त कणिकाओं के आकार की पनडुब्बियों का परीक्षण किया जा चुका है। इन पनडुब्बियों को नैनोबोट्स नाम दिया गया है। इन नैनोबोट्स का प्रयोग बिना ऑपरेशन किए ट्यूमर और थक्के को दूर करने में किया जाएगा। जल्द ही नैनोबोट्स रक्त कणिकाओं का स्थान ले लेंगी। इसके अलावा रक्त कणिकाओं की तुलना में ये नैनोबोट्स हजार गुणा ज्यादा प्रभावकारी होंगी।'

स्वाइन फ्लू और इंडियन करी
भारतीयों को मसालेदार खानपान पसंद करने की एक और बड़ी वजह मिल गई है। रूसी डॉक्टरों का कहना है कि मसालेदार भारतीय करी स्वाइन फ्लू और आम सर्दी जुकाम सरीखी बीमारियों को रोकने में उतनी ही कारगर है, जितनी कि केमिस्ट की दवाएँ। करी में पड़ने वाले अन्य मसाले जैसे तेजपान, काली मिर्च, लहसुन, करी पत्ता इन सभी में विलक्षण औषधीय गुण निहित है। दही के साथ घुलकर करी के रूप में इनके गुणों में अधिक वृद्धि हो जाती है, फलस्वरूप ये स्वाइन फ्लू को दूर रखने में कारगर है।

डरावनी यादें डिलीट
वैज्ञानिकों ने दिमाग में मौजूद यादों को मिटाने के लिए कार्यप्रणाली निकाली है जिसकी मदद से बिना दवाई खाए दिमाग से बुरी और डरावनी यादों को दूर किया जा सकता है। साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस सालों में यह विज्ञान का सबसे बड़ा चमत्कार है जिसकी मदद से इंसान के दिमाग से डरावनी यादें मिट जाएँगी। यह शोध और भी कई बीमारियों और चिंता की बीमारियों को दूर करने में भी सहायक होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि सिंपल बिहेवियर पर आधारित यह अक्रामक तकनीक डरावनी यादों से छुटकारा पाने के लिए कारगर साबित होगी।

खास चाय दर्द भगाए
अब सिर दर्द के लिए एस्प्रिन लेने की जरूरत नहीं। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी चाय विकसित की है जिससे सिर दर्द मिनटों में भाग सकता है। ब्रिटेन की न्यूकासल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक खास 'मिंट टी' पर शोध कर बताया है कि इससे सिर दर्द को दूर किया जा सकता है। इतना ही नहीं, इस चाय से कैंसर से बचाव और कोलेस्ट्रॉल को भी कम किया जा सकता है।

एंटीबायोटिक्स शैतान का पंजा
बीमारी के इलाज में एंटीबायोटिक्स की भूमिका लगातार जटिल होती जा रही है। जहाँ एक ओर नए एंटीबायोटिक्स की खोज हर दिन नई चुनौती पेश कर रही है, वहीं इसके ओद्यौगिक उत्पादन ने कई पेड़-पौधों की प्रजातियों के सामने विलुप्ति का संकट खड़ा कर दिया है। कालाहारी के रेगिस्तान में एक झाड़ी पाई जाती है जिसे सदियों से दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के आदिवासी 'शैतान के पंजे' के नाम से जानते हैं। इसी शैतान के पंजे से आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सबसे कारगर जीवनरक्षक औषधि एंटिबायोटिक्स बनाई जाती है। अकेले जर्मनी में ही 46 विभिन्न दवा निर्माता जिनमें हैक्स्ट जैसी महारथी निर्माता भी हैं, शैतान के पंजे से निकलने वाले रसायनों से 57 तरह के विभिन्न उत्पाद बनाकर दुनिया भर में बेच रहे हैं। इनकी सम्मिलित सालाना आय 400 लाख डॉलर से अधिक है।

दाँतों के लिए रेड वाइन
इटली के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि रेड वाइन दाँत के लिए अच्छी होती है। इसमें मौजूद कैमिकल से दाँतों में हानिकारक बैक्टीरिया का घुसना नामुमकिन हो जाता है। दाँत का सबसे बड़ा दुश्मन स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस बैक्टीरिया है जो चीनी खाने से दाँतों में घुसता है। जैसे ही यह दाँत के अंदरूनी भाग इनामेल में पहुँचता है दाँतों में होल बनने लगता है और धीरे-धीरे दाँत खराब हो जाता है। पेविया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि रेड वाइन की थो़ड़ी मात्रा भी इस बैक्टीरिया को नष्ट कर देती है।

शोधकर्ताओं ने अपने शोध के दौरान देखा कि जहाँ-जहाँ दाँत में रेड वाइन घुसी थी वहाँ-वहाँ से बैक्टीरिया मर गए। इसके अलावा उन्होंने सिर्फ अल्कोहल को दाँतों में डाला लेकिन उससे बैक्टीरिया नहीं मरा। इसका मतलब यह हुआ कि बैक्टीरिया सिर्फ अल्कोहल से नहीं मरता बल्कि रेड वाइन में मौजूद अन्य तत्व इसे मारने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

सफेद बाल : कौन जिम्मेदार
आपके बाल लगातार सफेद होते जा रहे हैं जिसके लिए आप यह सोचते हैं कि यह तनाव की वजह से सफेद होते जा रहे हैं तो आपकी यह राय बिल्कुल गलत है, क्योंकि सफेद बालों के लिए तनाव नहीं आपके माता-पिता जिम्मेदार हैं। यह बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि महिलाओं के सफेद बाल होने के पीछे उनका पारिवारिक इतिहास मायने रखता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए शोधकर्ता बॉफिंस ने डेनमार्क की जुड़वा बहनों का अध्ययन किया

सरवाइकल कैंसर की पहचान
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक ऐसे डिवाइस को तैयार किया है जिससे सरवाइकल कैंसर की पहचान बीमारी से कई हफ्ते पहले ही कर ली जाएगी। इस डिवाइस से लाखों महिलाओं को लाभ होगा। एपीएक्स नाम का यह डिवाइस टीवी के रिमोट कंट्रोल के आकार का है। यह एक ऐसा डिवाइस है जिसके इस्तेमाल से किसी भी तरीके का दर्द महसूस नहीं होता। यह डिवाइस छुटे हुए ट्यूमर सेल को पहले से ही पहचान लेता है। जैसे ही इस ट्यूमर सेल पर टार्च का प्रकाश पड़ता है तो ट्यूमर प्रकाश को अवशोषित कर लेता है जिससे यह स्वस्थ उत्तक से अलग तरह का दिखने लगता है।

त्वचा के लिए सहायक जीवाणु
एक नए अध्ययन के मुताबिक त्वचा की सतह पर रहनेवाले जीवाणु स्वस्थ त्वचा के लिए मददगार होते हैं। बाल चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर एवं कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रमुख रिचर्ड एल गालो के शोध में यह कहा गया है कि ये जीवाणु वास्तव में हमारी त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होते हैं। इसके लिए चूहों पर अध्ययन किया गया। चूहे पर सफल परीक्षण के बाद इस अध्ययन को मानव पर भी किया गया। मानव त्वचा पर किए गए प्रयोग के बाद यह पाया कि ये जीवाणु वास्तव में हमारी स्वस्थ त्वचा के लिए मददगार हैं। अध्ययन के अनुसार त्वचा पर बाहर जमें जीवाणु आणविक आधार पर शरीर की स्वच्छता बनाए रखने में मददगार होते हैं।

सूर्य किरण और दमकती त्वचा
आम धारणा है कि सूरज की रोशनी से त्वचा की रंगत पर बुरा असर पड़ता है लेकिन ऑस्ट्रेलिया स्थित मेनजीज संस्थान के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सूरज की रोशनी में लगातार रहने से शरीर में विटामिन डी का विकास होता है और स्किन में निखार आता है। विटामिन डी का इस प्रक्रिया से विकसित होने से अलग-अलग स्कलेरॉसिस (एमएस) से बचने में मदद मिलती है।

स्लिम बनना है तो 'नो स्मोकिंग'
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फिन्बर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने पाया कि वजन घटाने की कोशिश में लगी जिन महिलाओं ने सिगरेट को अलविदा कहा, वे बेहतर ढंग से अपनी चर्बी को भी कम करने में सफल हुईं।

महिलाएँ सुंदर क्यों
पुरुषों को यह बात हमेशा खलती है कि महिलाएँ उनकी तुलना में ज्यादा सुंदर क्यों दिखती है। अब उनके इस सवाल का जवाब एक अध्ययन ने ढूँढ निकाला है, जिसके मुताबिक महिलाएँ सुंदर दिखने के लिए रोजाना विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों के रूप में 500 से अधिक रसायन अपने चेहरे और बदन पर लगाती हैं।डियोड्रेंट बनाने वाली कंपनी बियोनसेन द्वारा कराए गए अध्ययन में बताया गया है कि सुंदरता की ललक रखने वाली महिलाएँ सौंदर्य प्रसाधन के तौर पर 13 उत्पादों तक का इस्तेमाल करती हैं।

‘द सन’ ने बियोनसेन के शेरलोट स्मिथ के हवाले से बताया, सुंदरता के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तौर-तरीकों में नाटकीय बदलाव आया है। पहले कहीं जाने से पहले अपने चेहरे को धोना ही काफी होता था, लेकिन आजकल इसकी जगह रोजाना चेहरे और बदन को नकली रंग दिया जाता है, नियमित तौर पर नाखून प्रसाधन किया जाता है और बालों को अलग-अलग रूप दिया जाता है।' अध्ययन में बताया गया है कि सर्वाधिक इस्तेमाल किए जाने वाले सौंदर्य प्रसाधन लिपस्टिक में औसतन 33 रसायन होते हैं, बॉडी लोशन में 32, मस्कारा में 29 और हैंड मॉइश्चराइजर में 11 रसायन होते हैं।

उबासी मानवता की निशानी
एक अध्ययन के मुताबिक उबासी मानवीय लोगों की पहचान है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यही बात साबित की है। उनके मुताबिक उबासी हमारे भीतर की मानवता के प्रति प्रेम का संकेत है।

सब्जियों से निखरे त्वचा
एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने यह बात साबित की है कि प्रतिदिन के खान-पान में अगर पाँचवाँ हिस्सा भी फल और सब्जी का लिया जाए तो चेहरे पर गोल्डेन ग्लो या सोने की चमक आ जाती है। अध्ययन के मुताबिक चेहरे में चमक पैदा करने के लिए प्राकृतिक रास्ता ही सबसे बेहतर है। सेट एंड्रयूज यूनिवर्सिटी के प्रो. डेविड पेरेट ने बताया कि अध्ययन में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से एक श्रेणी में 51 लोगों की त्वचा की टोन का विश्लेषण किया गया।

पूरा होगा सौ साल जीने का सपना
वैज्ञानिकों ने ऐसे जीन की खोज कर ली है जो आपको सौ साल जीने में मदद करेगा। इस जीन की खोज से उम्र को मात देने वाली दवा बनने का रास्ता साफ हो गया है। अलबर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसीन के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने इस जीन की खोज की है। उन्होंने अमेरिका के अशखेंजी ज्वीश समुदाय के लोगों पर यह अध्ययन किया। इन समुदाय के लोगों की औसत आयु 97 वर्ष होती है। इन लोगों में एक खास प्रकार का जीन होता है जो कोशिकाओं की आयु को कम करता है जिसके कारण कोशिकाएँ मनुष्य को वृद्ध नहीं होने देतीं। अध्ययन में 86 लोगों का विश्लेषण किया गया।

सेक्स-इच्छा जगाए डिप्रेशन की दवा
डिप्रेशन से परेशान महिलाओं में भले ही डिप्रेशन की दवा काम न करे लेकिन यह दवा महिलाओं में खोई हुई सेक्स इच्छा को भी जगा देती है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि महिलाओं में एंटी डिप्रेशन की दवा वियाग्रा की तरह काम करती है। यह दवाई कम कामवासना वाली महिलाओं के लिए बेहद असरदार है।

शोध में पाया गया है कि फिलिबेनसरीन नाम की यह दवाई डिप्रेशन की बीमारी में महिलाओं को दी जाती है लेकिन यह सेक्स की भावनाओं को बढ़ाने में बेहद असरदार होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ केरोलिना के स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर जॉन एम थॉर्प ने बताया कि यह ट्रायल एक थैरेपी पर आधारित है जो कम कामवासना की शिकार महिलाओं के दिमाग में सेक्स की चाह पैदा करती है।

भारतीय छाछ छरहरा बनाए
छाछ की उपयोगिता पर दादी-नानी के विचार पुराने लग सकते हैं। मगर अब वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि छाछ में औषधीय गुण होते हैं। जी हाँ, छाछ के सेवन से पेट में मौजूद कीड़े मर जाते हैं और शरीर का वजन अपने आप घटने लगता है। यह बात वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में साबित की है। वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि कीड़े इंसान की आँतों में मौजूद रहते हैं जो हमारे खाने पर निर्भर करते हैं।

अमेरिकी वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक जंक फूड खाने से यह कीड़े बहुत ज्यादा मात्रा में पनपते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह कीड़े पाचन प्रणाली में पाए जाते हैं जो मोटापे को बढ़ाने के लिए ईंधन प्रदान करते हैं। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि 'जंक फूड' के सेवन से ये कीड़े लगातार बढ़ते जाते हैं। जबकि छाछ के सेवन से ये मारे जाते हैं।

करोड़ों का हुआ स्टेम सेल का कारोबार
भले ही कुछ समय पहले स्टेम सेल की बैंकिंग देश में अस्तित्व में ही नहीं थी लेकिन आज यह कारोबार काफी फल-फूल रहा है और ज्यादा से ज्यादा लोग अपने शिशुओं की गर्भनाल के रक्त को जैव बीमा के तौर पर भंडारण करने के लिए आगे आ रहे हैं हालाँकि इसके लिए उन्हें मोटी रकम चुकानी पड़ती है। गर्भनाल के रक्त के भंडारण के मामलों में तेजी आ रही है क्योंकि तंत्रिका संबंधी बीमारियों में यह काफी कारगर है और अनेक बीमारियों के लिए इलाज की गारंटी देता है।

स्टेम सेल थैरेपी इलाज की एक ऐसी विधि है जिसमें नयी कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के स्थान पर डाल दिया जाता है और बैंक इस रक्त के भंडारण के लिए 60,000 से लेकर 80,000 रुपए तक की राशि लेते हैं। स्टेम सेल थैरेपी के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ने के कारण छह साल से भी कम समय में अनेक ऐसी फर्म सामने आ गईं हैं जो इलाज और रक्त के भंडारण की सेवा मुहैया कराती हैं।

शोध को बढ़ावा देने वाले दिल्ली स्थित स्टेम सेल ग्लोबल फाउंडेशन के अनुसार, स्टेम सेल की बैंकिंग का कारोबार भारत में 100 करोड़ रुपए का हो चुका है और यह 35 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि वर्ष 2010 में यह कारोबार 140 करोड़ रुपए का हो जाएगा।

योगा से दिल सेहतमंद
रूस के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि नियमित योग से श्वास संबंधी अभ्यास, चिंतन आदि से हृदय की सेहत में सुधार होता है। अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो स्वस्थ हृदय का प्रतीक माने जाने वाले दिल की धड़कन योग करने वालों में अधिक तेज होती है जबकि योग न करने वालों में यह धीमी होती है।

नहीं रहेगी सूनी गोद
अब उन महिलाओं की गोद भी सूनी नहीं रहेगी जो गर्भाशय की खराबी के कारण माँ नहीं बन पाती हैं। चिकित्सा विज्ञान ने उनके लिए उम्मीद की किरण जगा दी है। ब्रिटिश वैज्ञानिक गर्भाशय प्रत्यारोपण के बहुत नजदीक पहुँच गए हैं। हालाँकि अभी इस प्रयोग की कामयाबी में 2 साल और लग सकते हैं। यदि किसी महिला को बीमारी या कैंसर की वजह से अपना गर्भाशय निकलवाना पड़ा है तो भी उसकी गोद भर सकती है। ब्रिटिश सर्जन और पशु चिकित्सकों की एक टीम ने अपने प्रयोगों को खरगोश पर अपनाकर देख लिया है। इसमें उन्हें 80 फीसदी सफलता मिली है। अब बहुत जल्द यह प्रयोग इंसानों पर किया जाएगा।

हड्डियों का पुनर्निर्माण
इजरायल के तेल अबीब विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने में सफलता हासिल की है जिसकी मदद से इंसान अपने चोटिल ऊतकों और खोई हुई हड्डियों को फिर से हासिल कर सकेंगे। यह भी ठीक उसी तरह होगा जैसे एक छिपकली अपनी कटी पूँछ को फिर से हासिल कर लेती है। तेल अबीब विवि के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर जिल्बेरमैन ने पानी में घुलनशील और जैविक रूप से सक्रिय रेशों की मदद से यह तकनीक विकसित करने में सफलता प्राप्त की है।

फिलहाल उनका शोध जारी है, लेकिन उन्होंने दावा किया है कि भविष्य में वह ऐसी तकनीक विकसित कर लेंगी जिसकी मदद से दूसरी तरह के ऊतकों, मांसपेशियों, खून की नलिकाओं, और यहाँ तक कि चमड़ी को भी फिर से विकसित करने में सफलता हासिल की जा सकेगी।

जिम से मातृत्व को खतरा
नॉरवेगन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने 3,000 महिलाओं पर अध्ययन करके प्रमाणित किया है कि जिम में जाने वाली महिलाओं के माँ बनने के आसार कम होते हैं।

नकली हाथ असली एहसास
दुर्घटनाओं में बाँहें गँवा देने वाले हजारों लोगों को इस बात से खुशी होगी कि यूरोपीय वैज्ञानिक संवेदनाओं से परिपूर्ण कृत्रिम हाथ विकसित करने में जुटे हैं जिनसे चीजों का असली अहसास हो सकेगा। कृत्रिम हाथ पर यह अनुसंधान स्मार्टहैंड परियोजना के तहत हो रहा है। यूरोपीय संघ इस परियोजना का वित्तपोषण कर रहा है। असली अहसास दिलाने वाले ये नकली हाथ महज परिकल्पना या डिजाइन तक ही सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों ने ‘मोटोराइज्ड प्रोस्थेटिक’ हाथ की एक अनुकृति या प्रोटोटाइप भी तैयार कर लिया है। इससे जो फीडबैक मिला है वह अभूतपूर्व है।

स्टेम कोशिका से कैंसर का उपचार
प्रयोगशाला में बनाई गई स्टेम कोशिकाएँ निकट भविष्य में कई प्रकार के ब्लड कैंसर का उपचार कर सकती हैं। जापानी स्टेम कोशिका वैज्ञानिक युकियो नाकामुरा ने बताया कि एप्लास्टिक एनीमिया (लाल रक्त कणिकाओं की कमी और थेलेसेमिया) का स्टेम कोशिका तकनीक से उपचार किया जा सकता है।

टमाटर से पाएँ गठीला बदन
एक अध्ययन में पाया गया था कि टमाटर में प्रचूर मात्रा में मौजूद विटामिन सी से दिल को खूब मदद मिलती है। टमाटर की चटनी और इसके जूस से कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में भी मदद मिलती है। पर अब नए शोध में पाया गया है कि टमाटर शरीर को सदैव एक तरह का गठीला बदन बनाए रखने में बहुत फायदा करता है। इससे शरीर का वजन नहीं बढ़ता। डेली मेल में प्रकाशित खबर के अनुसार टमाटर में समृद्ध कंपाउड पाए जाते हैं। इससे भूख वाले हार्मोन का स्तर बदलता रहता है यह शोध ब्रेड के साथ फल और सब्जी के फायदे के अध्ययन के दौरान किया गया।

एस्प्रिन हो सकती है जानलेवा
चिकित्सा पत्रिका 'ड्रग्स एंड थेराप्यूटिक्स बुलेटिन' डीटीबी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार नियमित तौर पर एस्प्रिन को लेने के पीछे यह धारणा है कि इससे हृदयाघात या दौरों से बचा जा सकता है लेकिन यह आंतरिक रक्तस्राव सहित पेट की गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकती है। डीटीबी के संपादक इके इकियानाचो ने कहा कि पेट में रक्तस्राव घातक हो सकता है। जिन लोगों को कभी दिल का दौरा नहीं पड़ा उनके लिए साक्ष्य इस ड्रग के सेवन की इजाजत नहीं देते। शोधकर्ताओं ने पाया है कि कुछ स्वस्थ लोग हर दिन एहतियात के तौर पर भी एस्प्रिन लेते हैं क्योंकि उन्हें इसके खतरनाक साइड इफेक्ट का पता नहीं होता है।

एक 'किस' सेहत के लिए
हाल में हुए शोध में यह बात सामने आई है कि पूरे आवेग से लिया गया 'किस' एक खास किस्म के कॉम्प्लैक्स केमिकल को दिमाग की तरफ भेजता है। जिससे व्यक्ति खुद को ज्यादा उत्तेजित, खुश अथवा सहज स्थिति में महसूस करता है। स्वस्थ चुंबन सेहत की दृष्टि से भी फायदेमंद है। शोध में पाया गया है कि चुंबन के दौरान हारमोन मुँह के जरिए एक-दूसरे के शरीर में स्थानांतरित होते हैं और तत्काल असर करते हैं।

इस शोध से यह बात सामने आई है कि चुंबन, दरअसल, कहीं ज्यादा जटिल शारीरिक प्रक्रिया है और यह हारमोनल परिवर्तन के लिए जिम्मेदार भी है।शोधकर्ताओं का मानना है कि चुंबन से एक साथ बहुत कुछ घटित होता है। बहरहाल, विशेषज्ञ अब यह जानना चाहते हैं कि महज दो होंठों के स्पर्श से कैसे दिमाग इतना जबर्दस्त इमोशनल रिस्पॉंस देता है। लिहाजा चुंबन के बारे में रिसर्च अब हारमोंस के स्तर पर चल रहा है।

इस सिलसिले में 15 जो़ड़ों में ऑक्सीटॉनिक और कोर्टीसोल हारमोन का स्तर चुंबन से पहले और बाद में जाँचा गया। जाँच में पाया गया कि चुंबन के बाद आक्सीटॉनिक जो कि व्यक्ति में एक-दूसरे के करीब आने की इच्छा उत्पन्न करता है उसका स्तर बढ़ा हुआ था और कोर्टीसोल जो कि तनाव पैदा करने वाला हारमोन है उसका स्तर गिर गया था।

सेब जूस से अल्जाइमर रहे दूर
द जर्नल ऑफ अल्जाइमर डिजीज की रिपोर्ट के मुताबिक मेसाच्यूसेट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि रोजाना एक ताजे सेब के जूस का सेवन अल्जाइमर की बीमारी को बॉय बॉय करता है। शोधकर्ताओं ने इस बात को प्रमाणित करने के लिए लैबोरेटरी में चूहों पर अध्ययन किया। अध्ययन में जिन चूहों को रोजाना सेब का जूस दिया गया उनके प्रदर्शन में कई गुणा की बढ़ोतरी हो गई।

शोधकर्ताओं के मुताबिक चूहों की तरह इंसान को भी अगर रोजाना 2 गिलास सेब का जूस लगातार एक महीने तक पिलाया जाए तो शरीर में बीटा एमोलाइड का स्तर कम हो जाएगा जो अल्जाइमर की बीमारी के दौरान दिमाग में पाया जाता है।

ज्यादा स्टेरॉयड खतरनाक
कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर की मुख्य शोधकर्ता लियाल हरलिट्ज ने कहा कि स्टेरॉयड के उपयोग से शरीर को पहुँचने वाला नुकसान मोटापे से होने वाले नुकसान से कहीं बड़ा हो सकता है, जिससे बचने के लिए लोग स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं।

झुर्रियों से बचाएगी कॉफी
झुर्रियों से छुटकारा पाने का नया फंडा है कॉफी पीने का! एक नामी कंपनी ने हाल ही में एक नए तरह की कॉफी लाँच की है जिसमें कॉलेजन मिला हुआ है। कॉलेजन शरीर में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है जिसकी कमी होने पर त्वचा ढीली पड़ने लगती है और झुर्रियाँ उभरने लगती हैं। कंपनी ने यह नुस्खा पेश किया है कि कॉफी के रसिकों को इसमें कॉलेजन भी परोस दिया जाए यानी पाउच में कॉफी,दूध और 200 ग्राम कॉलेजन पैक कर दिया जाता है। आप बस इसे खोलिए और गरम पानी व शकर मिलाकर पी जाइए। कॉफी का मजा भी लीजिए और झुर्रियों को बाय-बाय भी कीजिए। फिलहाल यह कॉलेजनमय कॉफी केवल सिंगापुर में लाँच की गई है।
और मिल गई संजीवनी बूटी
लक्ष्मण के मुर्च्छित होने पर भगवान हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए थे। पुराणों में वर्णि‍त वनस्पतियों में से मृतसंजीवनी सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैय्या से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है! इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरू और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर दो पौधों को चिह्नित किया है। उन्होंने सबसे पहले तो भारत भर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो।

उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने 'संजीवनी' या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। नतीजा? खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए।

रिसर्च के बाद मात्र 6 प्रजातियाँ शेष रह गईं। इन 6 में से भी 3 प्रजातियाँ ऐसी थीं जो 'संजीवनी' या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहाँ हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है।

सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या 'मृत' पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही 'पुनर्जीवित' हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?

सच्चे वैज्ञानिकों की भाँति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी।

प्यार करें, रचनात्मक बनें
एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि प्यार इंसान की सोच को बदल देता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि प्यार में पड़कर ही इंसान भावुक और विनम्र पड़ जाता है प्यार में ही पड़कर उसे कलात्मक काम करने की प्रेरणा आती है। जबकि इंसानी फितरत में यह बदलाव सेक्स करने से नहीं होता। शोधकर्ताओं का मानना है कि किसी से प्यार और लगाव इंसान को और भी ज्यादा काम करने के लिए प्रेरित करता है। ताजमहल जैसे वास्तुशिल्प कामों के पीछे अगर कुछ है तो वह सिर्फ प्यार है। ताजमहल प्यार का जीता जागता सबूत है । रोमियो जूलियट जैसा खूबसूरत नाटक प्रेम के कारण ही सृजित हुआ। अमेरिका के जर्नल साइंटिस्ट और मनोवैज्ञानिक द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि प्यार इंसान की सोच को बदलता है।

अपने अंग खुद बनाए
अगर वैज्ञानिकों के दावे पर यकीन करें तो वह दिन दूर नहीं जब किसी बुजुर्ग का दिल काम करना बंद होगा तो वह अस्पताल जाने के बजाए खुद ही इसे बना लेगा। जी हाँ, वैज्ञानिकों के अनुसार अगले पाँच सालों के दौरान इंसान खुद अपने शरीर का अंग विकसित कर सकेगा। जैसे ही उसका कोई अंग जैसे कि जो़ड़ों, रीढ़ और दिल खराब होगा वे खुद इन अंगों को बनाने में सक्षम हो जाएगा। लीडस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ऐसी ही योजना पर काम करने में लगे हैं।

यह योजना सफल हो जाने के बाद अगर किसी बुजुर्ग अपने खराब दिल या घुटने को खरीद सकेगा या उसे खुद ही विकसित कर लेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस योजना का अंतिम उद्देश्य लोगों के शरीर के हिस्से को अपने हिसाब से बदल देना है। इस अध्ययन का आधार ऊत्तकों की विधि और मेडिकल इंजीनियरिंग है।

ऊँटनी के दूध के नए फायदे
राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र' के वैज्ञानिक यह अध्ययन करने में जुटे हैं कि एलर्जी से छुटकारा पाने में कारगर ऊँटनी का दूध मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के लिए कहाँ तक उपयोगी है। केंद्र के निदेशक डॉ. के. एम. एल. पाठक ने बताया कि पंजाब के फरीदकोट में गैर सरकारी संगठन बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रेन द्वारा केंद्र के सहयोग से मानसिक बच्चों पर ऊँटनी के दूध संबंधी परीक्षण किए जा रहे हैं और इसके उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए हैं।

पिछले पखवा़ड़े से मानसिक बच्चों के लिए बीकानेर से रोजाना 30 लीटर दूध फरीदकोट भेजा जा रहा है। इसके अच्छे परिणाम को देखते हुए सेंटर के डॉ. प्रीतपाल सिंह ने 40 लीटर दूध की माँग की है। ब्राजील और इसराइल के वैज्ञानिकों ने फरीदकोट सेंटर के मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों को ऊँटनी का दूध देने की सलाह दी थी। इसराइल में किए गए एक शोध के अनुसार गेहूँ या इससे बने उत्पाद और गाय भैंस के दूध से एलर्जी रखने वाले बच्चों को ऊँटनी का दूध पिलाने से एलर्जी समाप्त हो जाती है। डॉ. पाठक ने बताया कि केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. गोरख मल मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों पर ऊँटनी के दूध के प्रयोग संबंधी अनुसंधान परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।

मानव देह की कीमत 450 करोड़ रुपए
हाल ही में हुए एक अमेरिकी अध्ययन में बेशकीमती कही जाने वाली इस मानव देह की कीमत 450 करोड़ रुपए आँकी गई है।

दूध के दाँत से नया दाँत
दूध के दाँत में मौजूद स्टेम सेल से पूरे के पूरे नए दाँत विकसित किए जा सकते हैं। ब्रिटेन ने बच्चों के दूध के दाँतों से स्टेम सेल निकाल कर संरक्षित भी करने शुरू कर दिए गए हैं। 80 से 90 हजार रुपए तक खर्च कर कोई भी अपने बच्चे के दूध के दाँत में मौजूद स्टेम सेल को संरक्षित करवा सकता है।

हल्दी के नए चमत्कार
हल्दी को लेकर दो सालों में 500 से अधिक शोध प्रबंध (पीअर रिव्यू पब्लिकेशन) प्रकाशित किए गए हैं। दुनियाभर से आए नेत्ररोग विशेषज्ञों के सामने न्यूयॉर्क के डॉ. रॉबर्ट रिच ने शोध के बारे में बताया कि हल्दी मोतियाबिंद, काँचबिंद, मैक्यूलर डीजेनेरेशन, रेटीना मायोपैथी से बचाव में कारगर सिद्ध हुई है। हल्दी में करक्युमिन नामक रसायन होता है जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। साइटोकाइन्स तथा एंजाइम्स को नियंत्रित करता है।

आदिकाल से हल्दी को चोट और घाव भरने के लिए एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके अलावा अन्य कई रोगों के उपचार में इसकी भूमिका पर शोध किए जा रहे हैं। कई तरह के कैंसर से बचाव किया जा सकता है साथ ही यह रोग बढ़ने से रोका जा सकता है। सूजन और जलन कम होती है। हृदय की कार्यप्रणाली को दुरुस्त रखती है। मोतियाबिंद होने से रोकती है। फंगस और जहरीले कीट पतंगों के दंश के प्रभाव को नियंत्रित करती है। इसके अलावा हल्दी मल्टीपल स्क्लेरियोसिस तथा मधुमेह के पुराने रोग के संभावित इलाज के रूप में भी देखी जा रही है।

तीन सेब खाए वजन घटाए
वा‍शिंगटन स्थित आहार विशेषज्ञ टॉमी फिलम के अनुसार वजन कम करने के लिए तीन सेब खाने की योजना बनाई जा सकती है। उनका कहना है कि उनके एक मरीज ने दोनों समय भोजन/ब्रेकफास्ट से पूर्व नियमित रूप से एक सेब खाया और एक सप्ताह में उसका वजन आधा किलो कम हो गया। आहार विशेषज्ञ ने यह फार्मूला अपने अन्य मरीजों पर भी अपनाया। उनके वजन में पहले के मुकाबले तीन गुना अधिक कमी आई।

संगीत से सेहत
कई बीमारियों का इलाज भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों में छिपा है। मसलन राग दरबारी सिर दर्द और तनाव को दूर करता है और यह डिप्रेशन एवं ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियों से निजात दिलाने में सहायक है तो राग दीपक एसिडिटी की समस्या को खत्म करता है।

हाल ही में हुए एक अध्ययन से तथ्य सामने आया है कि गर्भवती महिला अगर नियमित रूप से शास्त्रीय संगीत सुनें तो इस दौरान होने वाले तनाव से बच सकती है। सियांग काओह मेडिकल यूनिवर्सिटी, ताईवान के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में गर्भवती महिलाओं को दो समूह में बाँटा। 116 महिलाओं को सुनने के लिए संगीत की सीडी दी जबकि 120 गर्भवतियों की सिर्फ देखभाल की गई उन्हें संगीत नहीं सुनाया गया। नौ रसों में बीमारी दूर भगाने की ताकत है। शास्त्रीय संगीत के विभिन्न राग इतने वैज्ञानिक हैं कि सही जानकारी एकत्र कर इन्हें मिजाज और शारीरिक एवं मानसिक व्याधि और लक्षणों के अनुरूप पिरोया जाए तो यह रोगनाशक का काम करेगा।

रोना सेहत के लिए जरूरी
वैज्ञानिकों ने एक बार फिर अपने अनुसंधानों से यह सिद्ध कर दिया है कि रोना सेहत के लिए लाभदायक होता है। उनके अनुसार अगर कष्टप्रद स्थिति में भी आँख से आँसू नहीं आते हैं तो तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए। क्योंकि यह एक असामान्य स्थिति है। अत: रोना कमजोरी की निशानी नहीं है बल्कि स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचने का उपाय है। अध्ययन में पाया गया है कि रोने के पश्चात् त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ जाती है और रोने वाले की साँसें गहरी चलने लगती है। यह दोनों बातें सेहत की दृष्टि से अच्छी मानी जाती है।

प्रस्तुति : स्मृति जोशी