बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं। बुध के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता भगवान विष्णु हैं। इनकी महादशा 17 वर्ष की होती है। बुध ग्रह की स्थिति शुक्र से दो लाख योजन ऊपर है। बुध ग्रह प्रायः मंगल ही करते हैं, किंतु जब ये सूर्य की गति का उल्लंघन करते हैं, तब आँधी, पानी और सूखे का भय प्राप्त होता है। नवग्रह मंडल में इनकी पूजा ईशान कोण में की जाती है। इनका प्रतीक वाण है तथा रंग हरा है।
बुध ग्रह का स्वरूप बुध पीले रंग की पुष्पमाला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की कान्ति कनेर के पुष्प जैसी है। बुध अपने चार हाथों में तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा धारण किए रहते हैं। बुध के सिर पर सोने का मुकुट तथा गले में सुंदर माला है। बुध ग्रह का वाहन सिंह है। बुध का रथ श्वेत और प्रकाश से दीप्त है। बुध ग्रह के रथ में श्वेत, पिसंग, सारंग, नील, पीत, विलोहित, कृष्ण, हरित, पृष और पृष्णि नामक घोड़े जुते रहते हैं।
बुध ग्रह : कुछ और जानकारी बुध के पिता का नाम चंद्रमा और माता का नाम तारा है। ब्रह्माजी ने इनका नामकरण बुध किया क्योंकि इनकी बुद्धि बड़ी गंभीर थी। बुध ग्रह सभी शास्त्रों में पारंगत तथा चंद्रमा के समान ही कांतिमान हैं। सर्वाधिक योग्य जानकर ही ब्रह्मा ने बुध को भूतल का स्वामी तथा ग्रह बना दिया। बुध का विवाह राजा मनु की कन्या इला के साथ हुआ। इला और बुध के संयोग से महाराज पुरुरवा की उत्पत्ति हुई।
बुध ग्रह की शांति कैसे करें बुध ग्रह की शांति के लिए प्रत्येक अमावस्या को व्रत करना चाहिए। पन्ना धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को हाथी दाँत, हरा वस्त्र, मूँगा, पन्ना, सुवर्ण, कपूर, शस्त्र, फल, षट्रस भोजन तथा घृत का दान करना चाहिए।
बुध ग्रह उपासना मंत्र बुध ग्रह की उपासना के लिए निम्न में से किसी एक या सभी मंत्रों का नियमित एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप की कुल संख्या 9000 तथा समय 5 घड़ी दिन है। विशेष परिस्थितियों में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।
वैदिक मंत्र- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स गुं सृजेथामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
पौराणिक मंत्र- पियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥