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अमिताभ : कलकत्ता के वो साढ़े पाँच साल

नाटक के स्टेज मैनेजर से बड़े पर्दे के एक्टर तक

अमिताभ : कलकत्ता के वो साढ़े पाँच साल - Amitabh Bachchan, Amitabh in Kolkata
मुंबई जाने से पहले अमिताभ बच्चन ने 1963 और 68 के बीच साढ़े पाँच साल कलकत्ता में गुजारे। इस बीच उन्होंने दो प्राइवेट कंपनियों में एक्जीक्यूटिव के रूप में काम किया। नौकरी वे दिल लगाकर करते थे, लेकिन साथ ही मटरगश्ती और थिएटर सिनेमा का शौक भी चलता रहता। अमिताभ का कलकत्ता निवास नियति ने शायद उनकी अभिनय प्रतिभा निखारने की खातिर रचा था, क्योंकि वहाँ अमिताभ ने रंगकर्म में सक्रिय भागीदारी की। साथ ही वे खेलों का शौक भी पूरा करते रहे। कोयले का धंधा करने वाली 'बर्ड एंड हिल्जर्स' कंपनी में उनकी पहलीपगार 5सौ रुपए माहवार थी, जबकि दूसरी कंपनी ब्लैकर्स में उनकी अंतिम पगार 1680 रुपए। 

 
हीरो बनने की धुन में इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने के अमिताभ के निर्णय को उनके दोस्तों ने तब उचित नहीं माना था। अमिताभ के लिए वह किस्मत दाँव पर लगाने का सबसे अच्छा अवसर था। माता-पिता की तरफ से वे निश्चिंत हो चुके थे। केंद्र में श्रीमती गाँधी का शासन था और डॉ. बच्चन राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हो गए थे। भाई बंटी डेढ़ साल कलकत्ता में उनके साथ रह चुके थे और शॉ वॉलेस की नौकरी करते हुए वे कलकत्ता से मद्रास और फिर मुंबई पहुँच चुके थे। मुंबई में नर्गिस और सुनील दत्त का सहारा भी था, जो उनके पारिवारिक मित्र थे। 

अमिताभ पहली बार 1954 में माता-पिता के साथ कलकत्ता आए थे। तब वे 12 साल के थे। तब उन्होंने भरी बरसात में एक फुटबॉल मैच देखा था और वे इस शहर पर मुग्ध हो गए थे। अपना कर्म-जीवन शुरू करने के लिए 1963 में जब वे फिर इस शहर में आए तो नजारा काफी-कुछ बदला-बदला था। भागमभाग और चकाचौंध बढ़ गई थी। शुरू में कुछ दिन वे अपने पिताजी के मित्र के घर टालीगंज में ठहरे और नौकरी मिलने के बाद कार्यस्थल के आसपास ही पेइंगगेस्ट या यार-दोस्तों के साथ किराए के मकानों में समय गुजारा। शेरवुड में उन्होंने स्वतंत्रता की साँस ली थी, तो कलकत्ता में वे अपने पैरों पर खड़ा होने आए थे। इस बीच डेढ़ साल दोनों भाई साथ भी रहे। दोनों का रहन-सहन टीप-टॉप था। वे मित्रवत्‌ थे। 
 
अजिताभ अपने 'दादा' की अभिनय प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे। दोनों मुम्बइया (मसाला) सिनेमा के कटु आलोचक थे। अमिताभ की थिएटरबाजी के वे साक्षी थे और साथ ही दादा के भावी करियर के सपने भी बुन रहे थे। अभिनेता बनने के आकांक्षी अमिताभ बच्चन का पहला फोटो अलबम अजिताभ ने ही तैयार किया था और इस हेतु स्वयं उन्हीं ने कलकत्ता के विभिन्न स्थलों पर अमिताभ की तस्वीरें खींची थीं। 
 
साठ के दशक में गैर-सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कुछ नौजवानों ने, जो स्वयं को 'बॉक्सवाला' कहते थे, एक नाटक मंडली कायम की- 'द ऍमेचर्स।' अधिकारी-वर्ग के इन नौजवानों की विदेशी नाटकों में दिलचस्पी थी। उस समय कलकत्ता में 'द ड्रामेटिक क्लब' नामक एक अन्य नाटक मंडली भी अँगरेजी नाटक खेलती थी, लेकिन उसमें किसी भारतीय का प्रवेश-निषिद्ध था। द ऍमेचर्स क्लब इसी का प्रतिकार था। दिसंबर 1960 में जन्मी इस नाटक मंडली के काम की शुरुआत धीमी रही, लेकिन अगले वर्ष इसके दो नाटकों (ऑर्थर मिलर का 'ए व्यू फ्रॉम द ब्रिज' और शेक्सपीयर के 'जूलियस-सीजर' ने तहलका मचा दिया। 
 
ऍमेचर्स के संस्थापक सदस्यों में डिक रॉजर्स, दिलीप सरकार, जगबीर मलिक, विमल और कमल भगत जैसे आठ-नौ लोग ही थे। 1962-63 में यह आँकड़ा साठ के करीब पहुँच गया। अगले 3-4 वर्षों में सदस्य संख्या सौ तक हो गई। अमिताभ और उनके मित्र विजय कृष्ण 1965 में ऍमेचर्स में दाखिल हुए। उस समय अमिताभ 'बर्ड' की नौकरी छोड़कर 'ब्लैकर्स' में पहुँच चुके थे। विजय कृष्ण 'इंडिया स्टीमशिप' में थे। कुछ ही दिनों बाद किशोर भिमानी भी इस संस्था में दाखिल हुए और दो वर्षबाद (1967 में) उन्होंने 'द क्वीन एंड द रिबेल' नाटक का निर्देशन किया। अमिताभ ने इस नाटक के स्टेज मैनेजर की जिम्मेदारी निभाई थी। 
 
ऍमेचर्स के प्रदर्शनों में सुधार आया और अब उनका भी नाम होने लगा। कुछ ही दिनों बाद विक्टर बैनर्जी भी इस मंडली में शरीर हुए। वापसी के बाद अमिताभ और विजय ने कम खर्च में अपने ढंग के नाटक खेलने शुरू किए। एडबर्ड ऍल्बी के नाटक 'झू-स्टोरी' और हेरॉल्ड पिंटर के 'द डम्ब वेटर' के ड्रॉमेटाइज्ड प्ले-रीडिंग बहुत सराहे गए। इसी समय अमिताभ ने 'ए मैन फॉर ऑल सीजन्स' में आठवें हेनरी की भूमिका की। 1966 में अमिताभ ने 'हू इज ऍफ्रेड ऑफ वर्जीनिया वुल्फ' में निक की भूमिका निभाई। इस नाटक का निर्देशन राजेन ब्रजनाथ ने किया था। इसमें 'निक' की पत्नी 'हनी' का रोल करने के लिए रमोला चुगानी नाम की एक सिंधी युवती का चयन किया गया था। 
 
कुछ दिनों की रिहर्सल के बाद यह अनुभव किया गया कि रमोला से रोल जम नहीं रहा है, इसलिए उसकी जगह विमल भगत की बहन मीरा को ले लिया गया, जो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से कोर्स करके आई थीं। नाटक खूब जमा, लेकिन रमोला को नाटक से हटाए जाने की बात बहुत बुरी लगी। यही रमोला अजिताभ की प्रेमिका थी और बाद में दोनों ने विवाह किया। 1968 में अमिताभ ने कलकत्ता छोड़ा।
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