गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. गुदगुदी
  3. व्हाट्‍स एप की दुनिया
  4. Whatsapp corner, jokes
Written By

व्हाट्सएप कॉर्नर : हैंडसम होने की समस्या

व्हाट्सएप कॉर्नर : हैंडसम होने की समस्या - Whatsapp corner, jokes
व्हाट्सएप की दुनिया के चुनिंदा मैसेज हम प्रस्तुत कर रहे हैं। इन मैसजों में कुछ तो हंसी ठहाके वाले मैसेज हैं तो कुछ जानकारी व भावों से भरपूर। 
महिला ने की पिटाई
 
डॉक्टर घायल मरीज से: जब कार एक महिला चला रही थी तो
तुम्हे सड़क से दूर चलना चाहिए था।
 
मरीज करहाते हुए : कैसी सड़क?
.
मैं तो खेत में लोटा ले कर बैठा हुआ था...!!
हैंडसम होने की समस्या  
 
साला हैंड्सम होना भी अपने आप में एक
बड़ी प्रॉब्लम है ……
.
कोई लड़की
लाइन ही नहीं मारती !!!!!!!
.
बस देखते ही कहती है पता
नहीं कमीने की
कितनी गर्लफ्रेंड्स होंगी??
जब कमला को किया पसंद 
 
कल्लू पानवाले और मुहल्ले की कमला का love चल
रहा था।
अब एक दिन कमला के पिताजी पानवाले की दुकान
पहुंच गए।
 
बोले कमलापसंद है?
.
.
.
.
.
.
.
.
कल्लू नीचे उतरा।
पिताजी के पैर छूकर बोला।
जी मुझे कमला पसंद है और कमला भी मुझे पसंद करती है।
बस फिर क्या, बवाल हो गया
............दे चप्पल...दे चप्पल,,,,दे चप्पल

 
दुनिया और मैं 
 
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया,
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
 
मुझे याद है मेरे घर से 'स्कूल' तक
का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, 
बर्फ के गोले, सब कुछ,
 
अब वहां 'मोबाइल शॉप', 
'विडियो पार्लर' हैं, 
फिर भी सब सूना है..
 
शायद अब दुनिया सिमट रही है…
.
.
.
जब मैं छोटा था, 
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं…
 
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े, 
घंटों उड़ा करता था, 
वो लम्बी 'साइकिल रेस',
वो बचपन के खेल, 
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
 
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है 
और सीधे रात हो जाती है।
 
शायद वक्त सिमट रहा है..
.
.
 
जब मैं छोटा था, 
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी।
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना, 
वो दोस्तों के घर का खाना, 
वो लड़कियों की बातें, 
वो साथ रोना… 
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहां है, 
जब भी 'ट्रेफिक सिग्नल'पर मिलते हैं 
'Hi'हो जाती है।
 
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं।
 
होली, दीवाली, जन्मदिन, 
नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं...
 
जब मैं छोटा था, 
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप।
 
अब internet, office, 
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है।
.
.
.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. 
जो अक्सर कब्रिस्तान के बाहर 
बोर्ड पर लिखा होता है…
'मंजिल तो यही थी', 
बस जिंदगी गुज़र गई मेरी 
यहां आते आते'
.
.
.
ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.. 
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में 
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त, 
और इस ज़िंदगी को जियो…।