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Written By वार्ता
Last Modified: वाराणसी , शनिवार, 11 अक्टूबर 2014 (16:40 IST)

खोखले हो रहे हैं वाराणसी के ऐतिहासिक गंगा घाट

खोखले हो रहे हैं वाराणसी के ऐतिहासिक गंगा घाट - खोखले हो रहे हैं वाराणसी के ऐतिहासिक गंगा घाट
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र उत्तरप्रदेश में वाराणसी के गंगा घाटों पर खतरा मंडरा रहा है और उनके किनारे बढ़ती गहराई एवं जगह-जगह नदी में बन रहे रेत के टीलों से घाट खोखले हो रहे हैं।
 

 
करीब 10 किलोमीटर के क्षेत्र में बने अर्द्ध चन्द्राकार गंगा घाटों के किनारे बनी सैकड़ों साल पुरानी ऐतिहासिक एवं पुरातत्व के महत्व की इमारतों को इससे गिरने का खतरा पैदा हो गया है।
 
कछुआ अभयारण्य के चलते गंगा में पिछले कई वर्षों से बालू के खनन पर रोक के चलते जहां नदी के दूसरी तरफ करीब 2 किलोमीटर तक बालू का ऊंचा टीला बन गया है, वहीं नदी में भी रेत के टीले बने हैं। इसके चलते घाट की तरफ गहराई बढ़ गई है।
 
गंगा पर शोध कर रहे नदी विशेषज्ञ डॉ. यूके चौधरी के अनुसार घाट दिनोदिन खोखले होते जा रहे हैं। इसके चलते घाटों के ऊपर बनी खूबसूरत इमारतों के गिरने का खतरा पैदा हो गया है। डॉ. चौधरी के अनुसार गंगा के भीतरी हिस्से में जल का रिसाव भी कम हो गया है और ऐसी स्थिति बनी रही तो कई घाट ध्वस्त भी हो सकते हैं।
 
गंगा घाटों पर बढ़ता अतिक्रमण, भैंसों का नहलाया जाना, लोगों द्वारा मलबा डाला जाना प्रमुख समस्या है।
 
प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की मुद्रा अर्जित करने वाले तथा सैकड़ों की जीविका का साधन देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र ऐतिहासिक घाट अपनी दुर्दशा पर कराह रहे हैं।
 
हर साल बाढ़ के बाद घाटों पर बड़ी मात्रा में सिल्ट जमा हो जाती है। सिल्ट के चलते कई घाट पूरी तरह से छुप जाते हैं लेकिन कुछ स्वयंसेव‍ी संस्थाओं के अलावा कोई इसकी सुध नहीं लेता है।
 
हिन्दुओं के तमाम धार्मिक कार्य गंगा किनारे होते हैं, वहीं पंडे-पुजारियों एवं पुरोहितों समेत नाविकों की जीविका भी इनके जरिए चलती है। गंगा के इन घाटों पर कभी वेद, पुराण पाठ के साथ ही रामायण की चौपाइयां एवं भजन गूंजते थे।
 
घाटों की सबसे बड़ी समस्या है कि इनके निकट शौचालय नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छता अभियान तो घाटों पर दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। घाटों के किनारे स्थित ऐतिहासिक इमारतें तेजी से होटलों में बदल रही हैं जिसके चलते यहां आध्यात्मिक माहौल खत्म होता जा रहा है।
 
स्थानीय लोगों का मानना है कि घाटों को संरक्षित एवं साफ-सुथरा रखने के लिए निजी संस्थाओं का सहयोग लिया जाए, साथ ही लोगों को जागरूक किया जाए। अवैध निर्माण करने वालों तथा गंदगी फैलाने वालों पर तगड़ा जुर्माना लगाया जाए।