गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By WD

बड़े बजट से नहीं, बेहतर लेखन से कामयाब होता है सीरियल : राजेश दुबे

-आदिल कुरैशी

बड़े बजट से नहीं, बेहतर लेखन से कामयाब होता है सीरियल : राजेश दुबे -

छोटे पर्दे पर सर्वाधिक चर्चित सीरियलों में से एक, बालिका वधु प्रसारण के अपने छह साल पूरे कर चुका है। इस मौके पर शुरू से धारावाहिक के पटकथा लेखन को अंजाम दे रहे प्रसिद्ध टीवी लेखक रंगकर्मी राजेश दुबे ने वेबदुनिया के साथ खास बातचीत में साझा किए अपने विचार।


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धारावाहिक बालिका वधु का पहला एपिसोड कलर्स चैनल पर 21 जुलाई, 2008 को प्रसारित हुआ था। पहले अंक से ही आप इस सीरियल के लेखन से जुड़े हुए हैं। आज इसके प्रसारण को छह साल पूरे हो चुके हैं। पीछे पलटकर देखते हैं तो कौनसी चुनौतियां, कौनसी उपलब्धियां ज़हन में उभरकर आती हैं? किसी सीरियल के प्रसारण के छह साल पूरे होने का क्या मतलब है?
आज के सरपट भागते दौर में छह साल बीतने का मतलब होता है एक जनरेशन का बदल जाना। जिस बच्ची के साथ हमने सफर शुरू किया था वो आज फिल्मों में नायिका की भूमिका निभा रही है। हमारे लिए समय के साथ कदम मिलकर चलना एक बड़ी चुनौती थी। अगर जहां थे वहीं रुक जाते तो शायद लोग इतने लंबे समय तक नहीं देखते। हमने एक लड़की के माध्यम से बाल विवाह के दुष्परिणाम दिखाने से शुरुआत की थी और धीमे-धीमे समाज की दूसरी कुरीतियों को अपने धारावाहिक के विषय में सम्मिलित करके एक बड़े स्वरूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हमारी छह साल पुरानी दादी सा आज विधवा विवाह और परित्यक्ता के दूसरे विवाह की वकालत करती नज़र आती है। रूढ़िवादी वातावरण में जीवन बिताने वाली दादी सा ने अपने लाडले पोते का विवाह एक ऐसी लड़की से करना स्वीकार किया जो ना सिर्फ परित्यक्ता है बल्कि उसका अपने पहले पति से एक बच्चा भी है। मैं समझता हूं ये हमारा अचीवमेंट है। इन छह सालों ने हमारी पूरी यूनिट को सम्मान दिया, प्रसिद्धि दी, पैसा दिया और ढेर सारे अवार्ड दिए। यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि बालिका वधु आज तक का सबसे ज़्यादा अवार्ड पाने वाला धारावाहिक है। इस धारावाहिक को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली है। जापान में दुनियाभर के धारावाहिकों के बीच बालिका वधु को सर्वश्रेष्ठ धारावाहिक का अवार्ड मिल चुका है। नेशनल जियोग्राफी मैगज़ीन में बालिका वधु पर विशेष रूप से आर्टिकल छापा गया है।

बतौर लेखक, बालिका वधु की आपके लिए क्या अहमियत है?
ये छह साल मेरे जीवन के सबसे ज़्यादा संतुष्टि देने वाले रहे क्योंकि इस कहानी के माध्यम से हम समाज के कई सारे गंभीर मुद्दों पर लगातार अपनी बात रख सके। मसाला संस्कृति के बीच ऐसे विषयों पर लिखना और उसे दर्शकों का इतना प्यार मिलना अपने आपमें ऐसा मौका था जो ज़िंदगी भर ढूंढते रहने पर भी नहीं मिल पाता है।

हाल में शुरू हुए ज़िंदगी चैनल पर प्रसारित सीरियल काफी पसंद किए जा रहे हैं, इसी तरह हम भी कम एपिसोड के धारावाहिक नहीं बना सकते?
ज़िंदगी चैनल ने एक बार फिर से हमें हमारे टेलीविज़न के पुराने दौर की याद दिला दी है। दूरदर्शन और ज़ी टीवी पर 26 तथा 52 एपिसोड के ही धारावाहिक प्रसारित किए जाते थे। तब कहानियां भी बेहतर होती थीं और दर्शकों को अलग-अलग वेरायटी देखने को मिला करती थी। मुझे मौका मिले तो मैं भी चाहूंगा कि ऐसे धारावाहिक लिखूं। अच्छी क्वालिटी के कंटेंट के लिए ये बहुत अच्छा ट्रेंड है।

सोनी पर प्रसारित होने वाला युद्ध धारावाहिक बेहद महंगा है। इसके एक एपिसोड की निर्माण लागत 2-3 करोड़ रुपए बताई जा रही है। क्या महंगा सीरियल कामयाब होने की गारंटी है और क्या भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रति एपिसोड इतना पैसा लगाया जाना आर्थिक रूप से सही फैसला है?
इतने महंगे धारावाहिक बनाने में मुझे कोई तुक नज़र नहीं आती। छोटी स्क्रीन पर बड़े बड़े सेट्स या बड़े बड़े स्टंट दिखने का क्या मतलब है? टेलीविज़न में लोग अपने आस पास की ज़िंदगी देखना पसंद करते हैं। भारत में टेलीविज़न घरों में बैठकर परिवार के साथ देखा जाता है। यहां दर्शक रोज़मर्रा की ज़िंदगी देखना चाहते हैं। टेलीविज़न पर हमेशा नए चेहरे एक्सेप्ट किए जाते हैं। उसकी वजह है कि नए कलाकारों के साथ कोई इमेज बंधी नहीं होती। ये कलाकार कहानी का हिस्सा नज़र आते हैं। तभी तो दर्शक इनमें अपने आस पास के केरैक्टर तलाशते हैं। यही टेलीविज़न की आत्मा है। बड़े-बड़े स्टार लेकर महंगे धारावाहिक कभी सफल नहीं हो सकते क्योंकि वो स्टार अपने साथ अपनी इमेज लेकर आते हैं और कभी वास्तविक चरित्र नहीं बन पाते, फिर वो अमिताभ बच्चन ही क्यों ना हों। आज तक फिल्मों के जितने बड़े स्टार टेलीविज़न पर आए हैं असफल ही रहे हैं। करिश्मा कपूर, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, रवीना टंडन, श्रीदेवी आदि की एक लम्बी लिस्ट है जिनके धारावाहिक दर्शकों ने नकार दिए। रियलिटी शोज इसके अपवाद हैं क्योंकि वहां इन स्टार्स को कोई दूसरा करैक्टर नहीं निभाना होता है। सफल धारावाहिक के लिए सबसे ज़रूरी है अच्छी स्क्रिप्ट, ना कि बड़ा बजट।