शिक्षक शारीरिक दण्ड क्यों देते हैं?
हमारे शिक्षक शारीरिक दण्ड क्यों देते हैं, इस पर कभी विचार नहीं किया जाता। इसका प्रमुख कारण है हमारी स्कूल व्यवस्था और उनमें लागू पाठ्यक्रम। स्कूल व्यवस्था इसलिए कि सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षकों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता। उन्हें कर्मचारी या नौकर के रूप में देखा जाता है। पाठ्यक्रम इसलिए क्योंकि यह बच्चों के अनुकूल नहीं है। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों के मनोविज्ञान के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार नहीं किए जाते। बच्चों को कोई भी विषय सिखाने के लिए उनके मनोविज्ञान के अनुसार शिक्षण पद्घतियां भी आकर्षक होनी चाहिए। आमतौर पर पाठ्यक्रम इस आधार पर तय होता है कि बारहवीं परीक्षा के बाद प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं में कितना ज्ञान होना चाहिए और उसको जल्दी से जल्दी बच्चों में किस प्रकार ठूंस दिया जाना चाहिए।
हम मानते हैं कि किंडर गार्टन का भी पाठ्यक्रम उच्च शिक्षा से तय होता है न कि किंडर गार्टन की उम्र के अनुसार। इसलिए शिक्षकों को जबरदस्ती बच्चों को सिखाना पड़ता है, जब वे इसमें सफल नहीं होते तो फिर अपनी कुंठा बच्चों पर निकालते हैं। अगर इस समस्या को खत्म करना है तो हमें स्कूल व्यवस्था में शिक्षकों को वह सम्मान देना होगा जिसके वे अधिकारी हैं और पाठ्यक्रम को बच्चों के अनुकूल बनाना होगा न कि प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं के अनुकूल। पिछले दो दशकों में तयशुदा नीतियां बनाकर शिक्षकों का सम्मान और गिराया गया है। उन्हें पैरा टीचर (अर्द्ध शिक्षक) बनाकर 1990 के पहले वाली स्थिति भी खत्म कर दी गई।
निजी स्कूलों में तो स्थिति और भी बुरी है। क्योंकि अमीर घरों के बच्चे जानते हैं कि उनकी भारी-भरकम फीस की वजह से ही शिक्षकों को तनख्वाह मिल रही है। यानी वे अपने लिए शिक्षक खरीद रहे हैं।