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Written By WD

शिक्षक दिवस विशेष : तस्मैः श्री गुरुवेः नमः

Teachers Day Information Hindi | शिक्षक दिवस विशेष : तस्मैः श्री गुरुवेः नमः
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शिक्षक वह व्यक्ति है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। शिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है।

वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।

एक ऐसी परंपरा हमारी संस्कृति में थी, इसलिए कहा गया है कि "गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।" कई ऋषि-मुनियों ने अपने गुरुओं से तपस्या की शिक्षा को पाकर जीवन को सार्थक बनाया। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना मानस गुरु मानकर उनकी प्रतिमा को अपने सक्षम रख धनुर्विद्या सीखी। यह उदाहरण प्रत्येक शिष्य के लिए प्रेरणादायक है।

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाल्यकाल में अपना घर छोड़ते हुए शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को सार्थक बनाया। विद्या जैसा अमूल्य धन पाने के लिए हम हमेशा से ही एक अच्छे गुरु की तलाश करते आए हैं, क्योंकि एक अच्छा शिक्षक ही हमारे भविष्य का निर्माण कर सकता है।

छात्र अपने गुरु को जीवन के हर मोड़ पर याद करता है और उनकी विशेषताओं को अपने व्यक्तित्व में ढालने का प्रयास करता है। अच्छे शिक्षक से शिक्षा पाए बिना हमारे अंदर सद्विचार आना मुश्किल हैं। यह शिक्षा ही हमारे मानव जीवन में सद्विचारों को जन्म देती है। प्राचीन समय में शिष्य गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। आज यह शिक्षा गुरुकुल से लेकर आलीशान भव्य भवनों में आ गई है।

हमारे शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी को निभाना होगा, तभी राष्ट्र के यह कोमल फूल मजबूत हृदय से राष्ट्र को मजबूत करेंगे। विद्या ददाति विनयम्‌। अर्थात विद्या नम्रता देती है, जो जितना विद्वान होगा, वह सदैव नम्र होता है। शिक्षा के स्वरूप बदलते जा रहे हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा युग में मानव अपने दायित्वों को भूलता जा रहा है।

शिक्षा से ही मानव जीवन का कल्याण हो सकता है। बिना शिक्षा के मानव की सफलता की परिकल्पना करना असंभव-सा प्रतीत होता है।