शिक्षक दिवस के बदलते मायने
अश्लेषा सोनवलकर
शिक्षक दिवस यानी शिक्षकों का दिन, उनकी महत्ता बताने का दिन, समाज में जागृति, क्रांति तथा नई दिशा बताने वाले शिक्षक का गौरवशाली दिन। शिक्षक शब्द विस्तृत अर्थ रखता है। उसी को देखते हुए सर्वपल्ली के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का औचित्य केवल इतना था कि समाज में शिक्षक को एक पथ प्रदर्शक के रूप में देखा जाए। मां के बाद बच्चे की प्रथम पाठशाला शिक्षक ही होते हैं जो उसे एक नए ढांचे में ढालकर उसके जीवन के लिए उचित दिशा देते हैं।शिक्षक कभी अभिभाषक के रूप में, कभी दोस्त, भाई के रूप में या मां या बहन के रूप में होता है। विश्व में अनेक उदाहरण हैं जिसमें गुरु एक बड़े पथ प्रदर्शक के रूप में देखे गए। कई बच्चों के माता-पिता का कर्तव्य गुरु ने निभाया। जिसके कारण वे बच्चे समाज में एक उच्च स्थान, उच्च पद प्राप्त कर पाए हैं। कई बच्चों की फीस शिक्षकों ने भरी है, यहां तक कि घर की छत भी शिक्षक के कारण नसीब हुई है। कई शिक्षक समाज में हुए जिन्होंने अनाथ बच्चों को पालकर उन्हें योग्य बनाया।
भारतीय शास्त्रों में गुरु को ईश्वर से ऊंचा दर्जा दिया है। किंतु समाज के बदलते मापदंडों एवं प्रतिमानों के कारण इस दर्जे में तेजी से गिरावट देखी गई है। आज यह लिखते हुए बेहद अफसोस होता है कि क्या शिक्षक अपना वह फर्ज निभा पा रहे हैं, आप कहेंगे कोई भी नहीं निभा रहा है, फिर शिक्षक ही क्यों निभाए। नहीं! यह कहकर आप अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाते।