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Written By WD

गुरु 'प्रोफेशनल',शिष्य भी 'प्रेक्टिकल'

बच्चों को पढ़ाने के नए विकल्प क्या हों

Teachers day 2013 | गुरु ''प्रोफेशनल'',शिष्य भी ''प्रेक्टिकल''
प्रो. यशपाल, शिक्षाविद्

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शिक्षक दिवस पर सालाना अनुष्ठान की तरह हम गुरु-शिष्य संबंधों के प्रति आदरभाव व्यक्त करते हैं। लेकिन बदलते समय के साथ इस पावन रिश्ते में भी बदलाव आया है। विद्यादान करने वाले गुरु 'प्रोफेशनल' हो गए हैं तो शिष्य भी 'प्रेक्टिकल' हो गए हैं। शिक्षादान को पहले से ज्यादा मानवीय दृष्टि से देखा जाने लगा है। पहले माना जाता था कि शिष्य को काबिल बनाने के लिए गुरु द्वारा उठाया गया कोई भी कदम विवाद से परे है। यहां तक कि छड़ी या संटी इस अध्यापन का अभिन्न अंग थे।

शिक्षक द्वारा शिष्य को दिए गए शारीरिक दंड पर कोई सवाल नहीं उठाता था। कई शिक्षकों की अब भी यह मान्यता है कि बच्चों को अनुशासित रखने और उद्दंडता से बचाने के लिए 'भय' जरुरी है। लेकिन समाज अब इस मानसिकता को क्रूरता की नजर से देखने लगा है।

गुरु द्वारा दिया गया कोई भी शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना बाल मन पर विपरीत असर डालती है। इस विचार के समर्थकों का मानना है कि बच्चों को सजा दी भी जाए तो वह प्रतीकात्मक हो।

सवाल यह है कि बच्चों को पढ़ाने के नए विकल्प क्या हों-


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पढ़ाई भी तभी अच्छी होगी, जब बच्चों को पढ़ने में मजा आए और शिक्षकों को पढ़ाने में। जिस शिक्षक को खुद पढ़ाने में आनंद नहीं मिल रहा, वह क्या पढ़ाएगा? यदि वह खुद मानसिक तनाव में होगा या किसी अवसाद से ग्रस्त होगा तो वह हिंसक होगा ही।

केवल अनुशासन बनाए रखने के लिए बच्चों को पीटने की बात सही नहीं ठहराई जा सकती। बच्चों को रुचिकर शिक्षा मिलेगी तो वह शिक्षक की बात कभी नहीं टालेगा।

हमने जो नेशनल करिक्युलम फ्रेमवर्क ( राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा) सुझाया था, उसमें इसी बात पर जोर था कि पढ़ाई भारी-भरकम सिलेबस की न हो। यह तो बच्चों के सवालों से जुड़ी होना चाहिए।

शिक्षकों को समझना होगा कि बच्चे किसी भी कक्षा में भले पढ़ें, लेकिन उनका ज्ञान और समझ छोटी होती है। वे अभी सीख रहे हैं और शिक्षक सिखा रहे हैं। शिक्षकों को बच्चों के स्तर पर जाकर ज्ञान देना होगा।

बच्चे सवाल करें तो वे जवाब दें। वे भी सवाल करें और बच्चों को सवाल करने के लिए प्रेरित करें। यही शिक्षा है। इसी आधार पर सिलेबस बनना चाहिए।

शिक्षक चाहे कितना मार लें अगर पढ़ाने का तरीका गलत होगा तो बच्चा नहीं सीख पाएगा। हमें शिक्षक को आजादी देना होगी कि वे वह पढ़ाएं जो उन्हें पढ़ाने में अच्छा लगे।