स्वामी विवेकानंद की भारतीयों के बारे में राय...
स्वामी विवेकानंद का पत्र
भारतीय जनता के बारे में अपनी अंतरंग जानकारी के आधार पर स्वामी विवेकानंद पूर्णत: आश्वस्त हो गए थे कि राष्ट्र की जीवनधारा नष्ट नहीं हुई है, वरन् अज्ञान एवं निर्धनता के बोझ से दबी हुई है।
भारत अब भी ऐसे संतों का सृजन करता रहा है, जिनके आत्मा का संदेश स्वीकार करने को पाश्चात्य जगत ने एक स्वस्थ समाज रूपी रत्नपेटिका का निर्माण तो किया है, परंतु उनके पास रत्न का अभाव है। फिर उन्हें यह समझते भी देर न लगी कि भौतिकवादी सभ्यता के भीतर ही उसके विनाश के बीज भी छिपे रहते हैं। उन्होंने पश्चिमी देशों को बारम्बार इस आसन्न आपदा से आगाह किया। पाश्चात्य क्षितिज का यह चमकीला आलोक एक अभिनव प्रभात का सूचक न होकर, एक बड़ी चिता की लपटों का भी सूचक हो सकता है। पाश्चात्य राष्ट्र अपनी निरंतर क्रियाशीलता के झोंक में निरुद्देश्य और अंतहीन क्रिया के जाल में फंस गए हैं।
एक आध्यात्मिक लक्ष्य तथा विश्वव्यापी सहानुभूति के अभाव में, पाश्चात्य राष्ट्रों की भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए अदम्य पिपासा, उनके बीच ईर्ष्या तथा घृणा में अभिवृद्धि करके, अंत में उनके सर्वनाश का साधन हो सकती है।स्वामी विवेकानंद मानवता के प्रेमी थे। वे मानव को ही ईश्वर की सर्वोच्च अभिव्यक्ति मानते थे और वही ईश्वर विश्व में सर्वत्र सताए जा रहे थे। इस प्रकार अमेरिका में उनका दोहरा मिशन था। भारतीय जनता के पुनरुत्थान हेतु वे अमेरिकी धन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की सहायता लेना चाहते थे और बदले में अमेरिकी भौतिक प्रगति को सार्थक बनाने के लिए उन्हें आत्मा का अनंत ज्ञान देना चाहते थे।