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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 1 मार्च 2014 (13:00 IST)

सिर्फ सरदार सिंह हो स्वर्णिम युग की टीम में: बलवीर

सिर्फ सरदार सिंह हो स्वर्णिम युग की टीम में: बलवीर -
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नई दिल्ली। भारतीय हॉकी की मौजूदा दशा से चिंतित तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और पूर्व कप्तान बलबीर सिंह सीनियर का मानना है कि मौजूदा भारतीय खिलाड़ियों में से सिर्फ सरदार सिंह स्वर्णिम युग की भारतीय टीमों में जगह पाने के हकदार होते।

बलबीर ने कहा कि सरदार सिंह उस स्तर का एकमात्र खिलाड़ी है। यदि बाकी खिलाड़ी भी सरदार के स्तर के होते तो भारतीय टीम शीर्ष में होती। इस महीने के आखिर में 90 बरस के होने जा रहे बलबीर के नाम ओलंपिक फाइनल में सर्वाधिक गोल का रिकॉर्ड है। उन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक फाइनल में हॉलैंड के खिलाफ पांच गोल किए थे।

ध्यानचंद के बाद सर्वश्रेष्ठ सेंटर फॉरवर्ड माने जाने वाले बलबीर ने कहा कि मौजूदा खिलाड़ियों में वैसा हुनर नहीं है जो उन खिलाड़ियों में था जिन्होंने भारत को आठ बार ओलंपिक चैम्पियन बनाया।

उन्होंने कहा कि यदि उनमें कौशल होता तो वे जीतते। वे फिर शीर्ष पर पहुंच जाते। सिर्फ योजनाएं, रणनीतियों या पैसे से कुछ नहीं होता। खिलाड़ियों को कठिन अभ्यास करके अपना खेल बेहतर करना होता है। हम ऐसा ही करते थे।

बलबीर ने कहा कि उन्हें लगता है कि मौजूदा खिलाड़ियों में बेहतरीन प्रदर्शन की ललक ही नहीं है। उन्होंने कहा कि आजकल खिलाड़ी पैसे के बारे में ज्यादा सोचते हैं लेकिन वह लाजमी भी है क्योंकि पैसा बहुत जरूरी है।

बलबीर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय हॉकी में खेलने के हालात में बदलाव से भारत को नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां हर जगह एस्ट्रो टर्फ नहीं है। भारत में काफी कम एस्ट्रो टर्फ है जबकि विदेशी टीमों के खिलाड़ी बचपन से ही कृत्रिम टर्फ पर खेलते हैं।

उन्होंने कहा कि हॉलैंड में कई कृत्रिम टर्फ हैं। खेलने के हालात, उपकरण आजकल बहुत महंगे हैं। महासंघों को ये उपकरण मुहैया कराने चाहिए। खेल की बारीकियों के बारे में बलबीर ने कहा कि मौजूदा खिलाड़ियों की सबसे खराब आदत मिडफील्ड में ड्रिबलिंग करते रहने की है जबकि उन्हें आगे जाकर गोल करने के लिए पास देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हम मिडफील्ड में ड्रिबल करने में समय गंवाते हैं। मिडफील्ड में ड्रिबल करना आसान होता है लेकिन लक्ष्य डी के भीतर पहुंचकर गोल करने की कोशिश होना चाहिए। यह पूछने पर कि क्या भारतीय खिलाड़ी बड़ी टीमों के खिलाफ खेलने के मानसिक गतिरोध से खराब प्रदर्शन करते हैं, उन्होंने कहा कि इसका कारण लापरवाही और दक्षता का अभाव है।

उन्होंने कहा कि परफेक्ट पास, गोल, कार्नर अभ्यास से आते हैं। यदि मैं कर सकता हूं तो कोई भी कर सकता है। इसके लिए मेहनत करनी होगी। शारीरिक, मानसिक, तकनीकी फिटनेस और मानसिक दृढ़ता जरूरी है।

उन्होंने कहा कि यदि हमारा आत्मविश्वास बरकरार है और हम सकारात्मक होकर खेलें तो शीर्ष पर पहुंच सकते हैं। यदि आपके पास आत्मविश्वास है तो कोई मानसिक दबाव नहीं होगा। (वार्ता)