मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खेल-संसार
  2. अन्य खेल
  3. समाचार
  4. Rio Olympics, India, Abhay Chhjlani,

खिलाड़ियों को 'राष्ट्र की संपत्ति' के रूप में देखना होगा : अभयजी

खिलाड़ियों को 'राष्ट्र की संपत्ति' के रूप में देखना होगा : अभयजी - Rio Olympics, India, Abhay Chhjlani,
इंदौर। मध्यप्रदेश टेबल टेनिस एसोसिएशन के आजीवन अध्यक्ष श्री अभय छजलानी रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि देश को दरअसल अपना विचार सोचना होगा, बनाना होगा। अगर हम खिलाड़ी बनाना चाहते हैं तो हमें उन्हें 'राष्ट्रीय संपत्ति' के रूप में देखना होगा। देश के नक्शे पर देखना होगा। देश के नक्शे पर, देश के नाम पर जब खिलाड़ी की महत्ता बढ़ेगी, तब देश में खेलने वाले भी बढ़ेंगे।
रियो ओलंपिक में भारत का 118 सदस्यीय दल गया था, जिसमें से केवल पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में रजत और साक्षी मलिक ने महिला कुश्ती में कांस्य पदक जीता था। एक विशेष साक्षात्कार में जब अभयजी से कहा गया, 'रियो ओलंपिक में भारतीय प्रदर्शन पर अपने विचार बताएं' तो उन्होंने कहा, 'आप मुझे क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं। क्या विचार बताऊं, क्या प्रदर्शन है? क्या हार है? क्या भारत में खेल है? पहले इस प्रश्न का उत्तर ढूंढिए। भारत के खिलाड़ी आगे क्यों नहीं आ पाते हैं? जरा विचार कीजिए कि किस आधार पर भारत के खिलाड़ी आगे आएं। पहले तो ये सोचें कि खेल की जरूरत क्या है? खिलाड़ी की जरूरत क्या है?' 
 
अभयजी के अनुसार खेल की जरूरत है कि जब खिलाड़ी को ढूंढें तो उसके माता-पिता के मन में विश्वास हो कि मेरा बच्चा देश का नाम रोशन करेगा तो ढूंढने का मतलब है लेकिन वही नहीं ढूंढता। वो इसलिए नहीं ढूंढता कि आजाद भारत के किसी भी शासन ने ये नहीं सोचा कि हम हिन्दुस्तान में खिलाड़ियों का भी एक संग्रह बनाएं। संग्रह इसलिए कि संग्रह में चीज इकट्ठी की जाती है और जीवनपर्यंत तक उस वस्तु को सहेजकर रखा जाता है, उसको आदर्श के रूप में रखा जाता है। क्या भारत में खिलाड़ियों के साथ यह व्यवहार है? या किसी की कोई सोच है? 
 
उन्होंने कहा कि खिलाड़ी का जीवन तब शुरू होता है, जब वो सातवीं-आठवीं कक्षा में पढ़ रहा होता है या फिर चौथी-पांचवीं कक्षा की उम्र में जो वो पहुंचा होता है, तब जो उसकी शक्ति है, तब जो उसका शरीर है, तब जो उसकी आशा है, उसमें खेल नहीं पिरोया जाता। मुझे ऐसा लगता है कि खिलाड़ी का जीवन 6-7 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो जाता है और उसका जीवन यदि वो अपने आपको अच्छा खिलाड़ी, बहादुर खिलाड़ी, जीतने वाला खिलाड़ी बनाना चाहता है तो उसको इ‍तना समय अपने आपको देना पड़ता है। खिलाड़ी का एक जीवन 25 वर्ष की उम्र में समाप्त हो जाता है, वहां से उसका दूसरा जीवन शुरू होता है। 
 
हम दूसरे देशों की बात करते हैं। दूसरे देशों के खिलाड़ियों को इन उम्र के साथ देखा जाता है और उसके बाद उनकी शेष उम्र अच्छी तरह से बीत सके, इसकी कोशिश राष्ट्रीय तौर पर की जाती है। हमारे यहां कौन करता है? माता-पिता अपने यहां जब बच्चों को बड़ा करते हैं, तब उनको ये चिंता होती है कि वह अपना जीवन अच्छा कैसे बनाएगा, जीवन मजबूत कैसे बनाएगा और तब उनको लगता है कि अगर मैंने इसे खिलाड़ी बना दिया तो वो 25 साल की उम्र के बाद क्या करेगा? 
 
अभयजी ने कहा कि अगर हम अपने देश में खिलाड़ियों को तैयार करना चाहते हैं तो हमको खेल को, देश की शान और देश की शक्ति बनाना पड़ेगा। अगर हम लोगों के मन में, परिवारों के मन में सरकार अपनी नीति को इस तरह पिरोने की कोशिश करें कि लोग अपने बच्चों को ये आश्वासन दिला सकें कि तुम देश के लिए खेलो, देश का नाम ऊंचा करो, देश को नक्शे पर लाओ तो ही खिलाड़ी बन सकता है, क्योंकि 25-30 साल के बाद खिलाड़ी की मुश्किल ये होती है कि उसने अपने अच्छा जीवन बनाने के वर्ष तो खेल में बिता दिए, अब जो शेष जीवन बचा है, उसे कैसे बनाएं?
 
देश को दरअसल अपना विचार सोचना होगा, बनाना होगा। अगर हम खिलाड़ी बनाना चाहते हैं तो खिलाड़ियों को देश की संपत्ति के रूप में देखना होगा। देश के नक्शे पर देखना होगा। देश के नक्शे पर, देश के नाम पर जब खिलाड़ी की महत्ता बढ़ेगी तो देश में खेलने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। खेल का जीवन पैसा कमाने का जीवन नहीं होता, पर जीवन की आवश्यकता पैसा कमाना भी होती है। जीवन कैसे अच्छा बने, इसके लिए साधन भी जुटाने होते हैं।

हम दुनिया के खेल नक्शे पर खिलाड़ी का नाम लेते हैं और जब खिलाड़ी अच्छा नहीं बनता है, जीतकर नहीं आता है तो उसको बदनाम करते हैं। यदि खिलाड़ी को नाम करना है, हमको उसे चमकाना है और देश को अच्छे खिलाड़ियों का क्षेत्र बनाना है तो खेल का सम्मान करें, खेल को 'राष्ट्रीय संपत्ति' बनाएं और खिलाड़ी को देश सम्पत्ति मानें।