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तीन राज्यों से खेलने वाले इंदौर के कुणाल तेलंग टेटे के बिरले खिलाड़ी

तीन राज्यों से खेलने वाले इंदौर के कुणाल तेलंग टेटे के बिरले खिलाड़ी - Other Sports News, Kunal Telang, table tennis player
इंदौर में जन्मे कुणाल तेलंग टेबल टेनिस के ऐसे बिरले खिलाड़ी हैं, जो तीन राज्यों से खेले हैं। उनकी जीवटता देखिए कि मध्यप्रदेश में रहते वे हिन्दीभाषी थे। आंध्रप्रदेश की तरफ से जब चार साल खेले तो उन्होंने तमिल सीख ली और कर्नाटक जाने के बाद कन्नड़ भाषा। उनका कहना था कि आपको जिस जगह रहना है, वहां के होकर रहना पड़ेगा और भाषा भी सीख लेनी चाहिए ताकि आम जीवन में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े।
'अभय प्रशाल' में खेली जा रही सेंट्रल इंडिया टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में कर्नाटक टीम के कोच की हैसियत से इंदौर आए कुणाल ने 'वेबदुनिया' से विशेष बातचीत की। उन्होंने बताया कि मेरा जन्म 1969 में हुआ। मैंने 1978 में टेबल टेनिस खेलना तब प्रारंभ किया, जब नेहरू स्टेडियम में ग्रीष्मकालीन शिविर लगा करता था। 1978 में दाएं से खेलना शुरू किया लेकिन 1979 में बाएं से खेलना प्रारंभ किया। मेरे पिता कमलाकर तेलंग का ऐसा मानना है कि लेफ्टहैंड से जब भी कोई खेलता है तो देखने में अच्छा लगता है। इसलिए एक साल राइट हैंड से खेला और एक साल बाद लेफ्ट हैंड से खेलना प्रारंभ कर दिया। 
 
मध्यप्रदेश टेबल टेनिस में ऐतिहासिक उपलब्धि : मैं तीन बार मध्यप्रदेश राज्य विजेता रहा, दो बार जूनियर्स में और एक बार सब जूनियर में। 1984 और 1985 में लगातार दो साल अनबीटन रहा। मैं दोनों प्रसंगों पर एक भी मैच नहीं हारा था। 1981 से लेकर 1988 तक लगातार मध्यप्रदेश की तरफ से खेला करता था। 1983 में इंदौर में जब 'अभय प्रशाल' का उद्‍घाटन राष्ट्रीय स्पर्धा के साथ हुआ था, तब मैंने उसमें सब जूनियर में रजत पदक जीता था। बालकों में मध्यप्रदेश के टेबल टेनिस इतिहास में टीम पहली बार फाइनल खेली। राष्ट्रीय स्पर्धा में भी अनबीटन था और फाइनल में एक मैच हारा, पश्चिम बंगाल के गणेश कुंडू से..मैं दो-दो मैच जीतता था और प्रमोद गंगराड़े एक मैच। हम दोनों मिलकर टीम को जिताते थे...
 
एक घंटे में हाथ में थे नौकरी का ऑर्डर : 1988 में मुझे रेलवे ऑडिट की तरफ से कॉल आया। मैं सिकंदराबाद में सिलेक्शन ट्रायल्स में खेला और एक ही दिन में 12 मैच खेलकर सभी जीते। वहां के डायरेक्टर मैच देख रहे थे और वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा, 'इसके लिए आज के आज ही ऑर्डर निकाले जाएं।' मैंने रात साढ़े नौ बजे आखिरी मैच खेला और साढ़े 10 बजे मेरे हाथों में नौकरी के ऑर्डर थे, जिसमें डायरेक्टर की साइन भी थी। यह तारीख थी 10 सितम्बर 1988। 
 
रेलवे ऑडिट में जाकर बदली किस्मत : 9 सितम्बर 1988 के पहले हमारी टीम अमरावती में यूनिवर्सिटी खेल रही थी। जयेश आचार्य भी साथ थे। हम वहां मैच जीत चुके थे, वहां से हमें ऑल इंडिया खेलने के लिए जाना था। इसी बीच कॉल आया कि मुझे सिलेक्शन ट्रायल्स खेलना है। इस तरह मैं ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी तो खेलने नहीं जा पाया, लेकिन देखिए रेलवे ऑडिट में जाकर किस्मत ही बदल गई। हम लोग सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) के अंतर्गत आते हैं। मैंने आंध्रप्रदेश के लिए मुकाबले खेले और दक्षिण क्षेत्र में चैम्पियन बना। ऑल इंडिया में भी मैं फाइनल हारा, तब सिविल सर्विसेस टूर्नामेंट होते थे। मैंने 1989, 1990 और 1991 में तीनों साल आंध्रप्रदेश के लिए गोल्ड मैडल जीता। 
 
10 बजे बायोडाटा दिया और 11 बजे अपाइंटमेंट ऑर्डर  : 1992 में मैंने आंध्रप्रदेश छोड़ दिया और कर्नाटक पहुंच गया। दरअसल, कैनरा बैंक वाले एक खिलाड़ी की भर्ती करना चाहते थे। उन्होंने खोज की और किसी ने बताया कि मुझमें काफी प्रतिभा है और यह इंडिया के लिए खेल सकता है। मैंने तो कैनरा बैंक में आवेदन भी नहीं किया था। मुझे कहा गया कि आप बायोडाटा लेकर पहुंचो, यह बात 29 जुलाई 1992 की है। यहां पर मैंने 10 बजे बायोडाटा दिया और 11 बजे अपाइंटमेंट ऑर्डर मेरे हाथों में था क्योंकि मेरी उपलब्धियां देखकर बैंक वालों ने यही कहा कि यह बहुत आगे जाने वाला खिलाड़ी है। 
 
माइग्रेशन के कारण मध्यप्रदेश से खेलना पड़ा : जब भी खिलाड़ी राज्य बदलते हैं, तब माइग्रेशन के लिए उन्हें अपने राज्य से खेलना होता है। आंध्रप्रदेश की तरफ से खेलने के पूर्व मुझे एक साल मध्यप्रदेश की तरफ से खेलना पड़ा। इसके बाद दो साल आंध्रप्रदेश की तरफ से खेला। इसी तरह कर्नाटक में खेलने के पूर्व फिर मध्यप्रदेश से खेला लेकिन कैनरा बैंक में ज्‍वाइन होने के बाद मैं 1994 से 2002 तक लगातार कर्नाटक के लिए खेला। 
 
सीनियर में क्वालीफाई करना ही सबसे बड़ा अचीवमेंट : 2009 तक मैं कर्नाटक के टॉप आठ खिलाड़ियों में रहा। तीन साल पहले भी मैंने कर्नाटक की तरफ से नेशनल खेला। मैं अपने करियर में तीनों राज्यों की तरफ से 32 राष्ट्रीय स्पर्धाओं में हिस्सा ले चुका हूं। 1998 से लेकर 2016 तक मैंने कुल 25 सीनियर नेशनल खेले। सीनियर में कमलेश मेहता, चन्द्रशेखर थे। ये टॉप के प्लेयर हुआ करते थे लेकिन मैंने सुनील बाबरस, मनमीत सिंह, मिहिर घोष को जरूर हराया। तब देश में 9 से 16 रैंक के जो प्लेयर्स रहे, मैंने सभी को शिकस्त दी है, यही मेरी नेशनल उपलब्धि है। मैं संघर्ष की स्थिति में बिना किसी कोच के खेलता था, इसलिए यह कहूंगा कि सीनियर में क्वालीफाई करना ही सबसे बड़ा अचीवमेंट होता है। 
 
कोचिंग के बाद कर्नाटक में आया बदलाव :  जाने के बाद मैंने कोचिंग देना शुरू किया। वहां पर टेबल टेनिस में एक ठहराव आ गया था, वे ऊंचे लेवल पर नहीं खेल रहे थे लेकिन मेरी कोचिंग के बाद कर्नाटक के खिलाड़ी इंडियन सर्किट में बढ़ना शुरू हुए। मैं 1994 में खेलता भी था और कोचिंग भी देता था। मेरी शिष्या आर. नव्या भारत की नंबर तीन खिलाड़ी थीं। यह सब मोटीवेट करने का नतीजा था। 10वीं करने के बाद उसने मेडिकल की पढ़ाई के कारण खेलना छोड़ दिया था। जब मैं कर्नाटक का कोच नियुक्त हुआ, तब 2002 में उसे 17 साल के बाद टेबल टेनिस रजत पदक मिला। 
 
एकेडमी के तीन खिलाड़ी इंडिया रैंकिंग में : मैं 2006 में लड़कियों की टीम लेकर गया। तब हमारे पास कोई नामी खिलाड़ी नहीं था लेकिन इसके बाद भी कर्नाटक रजत पदक जीतने में सफल रहा। दरअसल कर्नाटक में खिलाड़ियों की प्राथमिकता पढ़ाई होती है। वे इंडियन रैंकिंग में खेलते ही नहीं थे लेकिन अब धीरे-धीरे यहां भी बदलाव आ गया है। मेरी एकेडमी के तीन खिलाड़ी इंडिया रैंकिंग में हैं। इनमें से एक हैं विष्णु इंडिया कैडेट के टॉप 10 में हैं। खुशी विश्वनाथ टॉप 10 में हैं। श्रेयल तेलंग तो सब जूनियर से ही इंडियन रैंकिंग में है। वो भी इंजीनियरिंग कर रहा है, इसलिए इंडियन सर्किट में आता नहीं है। लेकिन श्रेयल इंडिया के नंबर वन से लेकर 16 तक के सभी खिलाड़ियों को हरा चुका है। हाल ही में उसने मानव ठक्कर को हराया है।
 
पढ़ाई के दबाव के कारण इंडिया रैंकिंग से दूर  : बेंगलुरु में मेरे पास जितने भी स्टूडेंट हैं वे या तो इंजीनियरिंग या फिर मेडिकल की लाइन से हैं। यही कारण है कि पढ़ाई के दबाव के कारण वे इंडिया रैंकिंग में खेल नहीं पाते हैं। सिर्फ खेल से आप करियर नहीं बना सकते क्योंकि खेल तो सिर्फ 25 साल तक ही रहेगा आपके साथ। 25 साल के बाद उम्र ढलान पर होती है लेकिन ज्ञान की तो कोई सीमा नहीं होती। वो आपके साथ ताउम्र रहेगा। मेरा ऐसा मानना है कि पढ़ाई के साथ ही खेल में भी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। 
 
कर्नाटक से ज्यादा सुविधा तमिलनाडु में : मेरा मानना है कि अगर चेतन बबूर सात बार नेशनल चैम्पियन बनता है, पढ़ाई के साथ ही इंजीनियरिंग करता है तो दूसरे भी पढ़ाई के साथ चैम्पियन बन सकते हैं। हमारा काम है टीचर की तरह गाइड करना लेकिन यह अभिभावकों पर‍ निर्भर करता है कि वह बच्चे को क्या बनाना चाहते हैं। तमिलनाडु में यह सुविधा है कि पढ़ाई के साथ खेलने भी दिया जाता है लेकिन कर्नाटक में ऐसी छूट नहीं है। इंजीनियरिंग कॉलेज काफी अनुशासित हैं। इन चीजों में सरकार का योगदान थोड़ा कम है। 
 
पढ़ाई के कारण इंडिया रैंकिंग नहीं खेली  टॉपर : देखा जाए तो कर्नाटक में उत्कृष्ट खिलाड़ियों की कमी नहीं है। अगर उन्हें मौका दिया जाए तो वे पढ़ाई के साथ ही खेलों में भी कामयाब हो सकते हैं। हमारे यहां खिलाड़ी केवल डेढ़ या दो घंटे खेलते हैं लेकिन वे क्वालिटी प्रेक्टिस करते हैं, इसीलिए पढ़ाई में भी अव्वल हैं। मेरी एक स्टूडेंट है ऐश्वर्या। वो पिछले साल तक कर्नाटक की नंबर एक खिलाड़ी थी लेकिन इंजीनियरिंग में भी वो टॉपर है लेकिन पढ़ाई के कारण इंडिया रैंकिंग नहीं खेली क्योंकि उसे पढ़ाई में टॉप रहना है।  तमिलनाडु सरकार का खिलाड़ियों को काफी सपोर्ट है। ऐसा सपोर्ट कर्नाटक सरकार की तरफ से नहीं है, इसलिए खिलाड़ियों को मुश्किल होती है।

कन्नड़ बोलने से बदल जाता है नजरिया : मुझे भाषा की दिक्कत नहीं आती। आंध्रप्रदेश के लोग बहुत ही मिलनसार हैं। मैं हैदराबाद में रहा हूं जहां सभी धर्मों के लोग रहते हैं। हैदराबाद में लोगों के घरों में बच्चों को तेलुगु नहीं आती। कर्नाटक के लोग मिलनसार हैं लेकिन वो चाहते हैं कि हम कन्नड़ भाषा सीखें। जब मैं कन्नड़ भाषा बोलता हूं तो उनका नजरिया ही बदल जाता है। मैं कैनरा बैंक बेंगलुरु में मार्केटिंग में रिलेशन मैनेजर हूं, इसलिए लोगों से संबंध बनाता रहता हूं। 
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