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Last Modified: मंगलवार, 24 नवंबर 2015 (16:37 IST)

दिनेश खन्ना की ऐतिहासिक कामयाबी के 50 साल पूरे

दिनेश खन्ना की ऐतिहासिक कामयाबी के 50 साल पूरे - Dinesh Khanna,  Asian Badminton champion
नई दिल्ली। बैडमिंटन में भारत के पहले एशियाई चैंपियन दिनेश खन्ना की इस ऐतिहासिक कामयाबी के 50 साल पूरे हो गए हैं लेकिन उनकी इस उपलब्धि पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। 
 
दिनेश खन्ना राजधानी के त्यागराज स्टेडियम में पीएनबी मेटलाइफ जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप के दूसरे सत्र के लिए बच्चों को अपना आशीर्वाद देने आए थे और इसी दौरान उन्होंने 1965 की उस ऐतिहासिक कामयाबी के अनुभव को साझा किया। 
 
खन्ना ने उस समय को याद करते हुए कहा, 'एशियाई चैंपियनशिप 1965 में लखनऊ में हुई थी जबकि एक साल पहले 1964 में मेरे घुटने का ऑपरेशन हुआ था। मैं चयन ट्रायल में उतरा था और चौथे स्थान पर रहा था। मुझे इस चैंपियनशिप में कोई वरीयता नहीं दी गई थी और उस समय नंदू नाटेकर और सुरेश गोयल जैसे दिग्गज खिलाड़ी हुआ करते थे।'
 
उन्होंने कहा, 'मुझे तो उम्मीद ही नहीं कि मैं दो राउंड से आगे भी जा पाऊंगा लेकिन टीम चैंपियनशिप में मलेशिया के एक-दो अच्छे खिलाड़ियों को हराने से मेरे अंदर आत्मविश्वास आया था कि मैं कुछ कर सकता हूं। व्यक्तिगत मुकाबलों में मैंने प्री-क्वार्टर से फाइनल तक चार वरीय खिलाड़ियों को हराकर खिताब जीता।'
 
पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे 72 वर्षीय खन्ना को 1965 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने क्वार्टर फाइनल मैच को सबसे मुश्किल बताते हुए कहा, 'मेरा मुकाबला तीसरी सीड जापान के वाई.इतागाकी से था। मैंने पहला गेम तो आसानी से जीत लिया लेकिन दूसरे गेम में लंबी रैलियां हुई। एक-एक रैली में 40-45 बार शटल नेट के आर-पार हुई।'
                    
उन्होंने कहा, 'हम दोनों ही बहुत थक चुके थे। जापानी खिलाड़ी थकावट से टूट गया लेकिन मैंने खुद को संभाले रखा और  मैच जीत लिया। उस समय चीफ रेफरी ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि यह मैच तीसरे गेम में गया तो यहां दो स्ट्रेचर मंगाकर रखने पड़ेंगे लेकिन ऐसी नौबत नहीं आई और मैंने दूसरे गेम में ही मैच समाप्त कर दिया।'
                       
खन्ना ने सेमीफाइनल में सातवीं सीड भारत के सुरेश गोयल को पराजित किया और फिर फाइनल में उनका मुकाबला दूसरी सीड थाईलैंड के सेंगोब रत्नासुरन से हुआ। फाइनल के लिए खन्ना ने कहा, 'मैंने पहला गेम आसानी से जीतने के बाद दूसरे गेम में 12-6 की बढ़त बना ली।

उस समय मुझे लगा कि मैं खिताब जीतने से सिर्फ तीन अंक दूर हूं। इससे मेरी एकाग्रता पर असर पड़ा और थाई खिलाड़ी मेरे नजदीक पहुंच गया। फिर मैंने खुद को संभाला और मैच को समाप्त किया।' खन्ना ने फाइनल 15-3, 15-11 से जीता।
                     
यह पूछने पर कि इस कामयाबी के 50वें साल में क्या उन्हें भारतीय बैडमिंटन संघ से कोई संदेश मिला है तो खन्ना ने कहा, 'मुझे ऐसा कोई संदेश तो नहीं मिला है और हो सकता है कि उन्हें यह याद भी न हो लेकिन मैं संघ का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा क्योंकि मैंने उनके साथ कई पदों पर काम किया है।' (वार्ता)